कोलकाता से अजय विद्यार्थी
इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में भी पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनाव में दीवार लेखन का जलवा बरकरार है. राज्य के शहरी इलाके हों या फिर ग्रामीण इलाके सर्वत्र ही राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के समर्थन में दीवार लेखन दिखायी देता है. हालांकि पहले की तुलना में इसमें कमी आयी है.
राजनीतिक दल के नेता मानते हैं कि दीवार लेखन अब भी जनमानस को लुभाने का व्यापक हथियार है और यह जनमानस पर व्यापक असर डालता है. कार्टून, व्यंग्य, नारे, उम्मीदवारों के नाम व पार्टी के चुनाव चिह्न से भरे दीवार लेखन के माध्यम से वोटरों को लुभाने की राजनीतिक पार्टियां पूरी कोशिश करती हैं.
दीवार लेखन का है पुराना इतिहास
पश्चिम बंगाल का दीवार लेखन से पुराना नाता है. जैसे नक्सल आंदोलन के दिनों में ‘आमार बाड़ी, तोमार बाड़ी नक्सलबाड़ी-नक्सलबाड़ी’, वियतनाम युद्ध के समय ‘आमरा नाम तोमार नाम, वियतनाम’, और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के समय ‘ज्योति बसुर दुई कन्या, खरा आर वन्या’ आदि नारे व दीवार लेखन काफी लोकप्रिय हुए थे.
पुरानी परंपरा : कब्जे में ले लेते हैं दीवार
दीवार लेखन की यहां पुरानी परंपरा रही है. चुनाव घोषणा के पहले ही विभिन्न राजनीतिक दल दीवारों को अपने कब्जे में ले लेते हैं और उन पर अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न का मार्क लगा देते हैं ताकि दूसरा उस दीवार पर कुछ न लिख सके. चुनाव और उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के बाद वे उन दीवारों का इस्तेमाल अपने उम्मीदवारों के समर्थन में दीवार लेखन के लिए करते हैं.
शिथिल हुई है दीवार लेखन की परंपरा
वर्ष 2006 के विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने वेस्ट बंगाल प्रिवेंशन ऑफ प्राॅपर्टी डिफेसमेंट एक्ट, 1976 के तहत दीवार लेखन पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन बाद में इसे शिथिल भी किया गया. इस कारण पूर्व की तुलना में दीवार लेखन में कमी आयी है. राजनीतिक विशेषज्ञ पार्थ मुखर्जी का कहना है कि दीवार लेखन में कमी की वजह सोशल मीडिया और इंटरनेट का बढ़ता प्रभाव भी है, लेकिन अभी भी दीवार लेखन की चमक बंगाल में बरकरार है.