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ट्रैफिक जाम से पैदा हुआ ट्रैफलाइन

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो यह कह सके कि उसे आज तक ट्रैफिक में फंसने का अनुभव नहीं है. मुंबई के ट्रैफिक के कड़वे अनुभवों ने ब्रिजराज वाघानी और रवि खेमानी को इतना प्रेरित किया कि उन्होंने 2011 में एक ऐसी वेबसाइट और मोबाइल एप्प बनाया, जो ट्रैफिक से जुड़ी हर जानकारी को […]

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो यह कह सके कि उसे आज तक ट्रैफिक में फंसने का अनुभव नहीं है. मुंबई के ट्रैफिक के कड़वे अनुभवों ने ब्रिजराज वाघानी और रवि खेमानी को इतना प्रेरित किया कि उन्होंने 2011 में एक ऐसी वेबसाइट और मोबाइल एप्प बनाया, जो ट्रैफिक से जुड़ी हर जानकारी को अपने उपभोक्ताओं तक पहुंचाता है.

काफी समय अमेरिका में बिताने के बाद जब ब्रिजराज वाघानी और रवि खेमानी वर्ष 2008 में भारत लौटे, तो जो बात उन्हें सबसे ज्यादा चुभी, वह थी मुंबई में सड़कों व ट्रैफिक की खस्ता हालत. न तो वाहन चालकों और न ही ट्रैफिक पुलिस के जवानों को इस बात की जानकारी होती थी कि आगे रास्ता कैसा होगा. कोई तीन साल तक इन्हीं खस्ता हाल सड़कों और बेतरतीब ट्रैफिक से संघर्ष करते, बड़बड़ाते हुए परेशानी ङोलने के बाद वर्ष 2011 में उन्होंने तय किया कि वे इस विषय में कुछ करेंगे. इस प्रकार तैयार हुआ ‘ट्रैफलाइन’ www.traffline.com नामक एप्प.

क्या चीज सबसे ज्यादा खली
ब्रिजराज बताते हैं, ‘रवि और मैं अपने इंजीनियरिंग कोर्स के सिलसिले में क्रमश: नौ और छह साल तक अमेरिका में थे.’ इन दोनों ने जब मुंबई छोड़ी थी, तब आज की तरह लगभग हर घर में बड़ी-बड़ी कारें नहीं थीं और सड़कों पर भी गड्ढे कम और डामर ज्यादा नजर आता था. उस समय एफएम रेडियो पर हर घंटे ट्रैफिक अपडेट नहीं दिये जाते थे और आगे डायवर्जन होने के बारे में जानकारी देनेवाले इलेक्ट्रॉनिक साइन भी शुरू नहीं हुए थे. वापस आने पर दोनों दोस्तों को अचंभा हुआ कि किसी मार्ग पर ट्रैफिक की स्थिति के बारे में यहां जानकारी का पूर्णत: अभाव है. बकौल ब्रिजराज, ‘अमेरिका में हमें ट्रैफिक की पल-पल सूचना की आदत पड़ गयी थी. यहां आकर मैंने पाया कि मुंबई में ड्राइव करना एक बड़ी चुनौती है. वैसे भी, बचपन में मैं दक्षिण मुंबई में रहता था, जहां ट्रैफिक की स्थिति इतनी खराब नहीं थी. वापसी पर अंधेरी (मुंबई का एक पश्चिमी उपनगर) शिफ्ट होने पर मैंने उपनगरों में रहनेवाले लगभग एक करोड़ नागरिकों के दर्द को जाना. कभी मुङो मुंबई में ड्राइव करना अच्छा लगता था, लेकिन अब इससे सख्त नफरत होने लगी.’

क्या है ट्रैफलाइन का काम
ट्रैफलाइन एक वेबसाइट है और स्मार्टफोन अप्लीकेशन है. यह देश के चार महानगरों में रीयल टाइम ट्रैफिक इंफॉर्मेशन प्रदान करता है. ये शहर हैं- मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु और पुणो. इसे और सरल शब्दों में कहें, तो यह आपको बताता है कि आपके इलाके में ट्रैफिक की क्या स्थिति है, किन्हीं दो स्थानों के बीच सफर में करीब कितना समय लग सकता है. साथ ही दुर्घटना, अवरोध आदि के बारे में भी लाइव जानकारी देता है.

कब सामने आया एप्प
इस एप्प का पहला संस्करण अक्तूबर 2011 में जारी किया गया था. तब इसमें बहुत मूलभूत फीचर ही थे. इससे पहले दोनों मित्रों ने करीब एक वर्ष तक शोध किया और मुंबई पुलिस से लेकर निजी कंपनियों व राज्य सरकार के अधिकारियों को अपने विचार के बारे में बताया. आज स्थिति यह है कि मात्र दो वर्ष में इस एप्प को एक लाख से अधिक यूजर्स डाउनलोड कर चुके हैं. यहां तक कि वर्ष 2013 में गणपति विसर्जन के मौके पर ट्रैफिक को सुचारू रखने के लिए मुंबई पुलिस ने भी ट्रैफलाइन की टीम से सहायता मांगी थी. मैट्रिक्स पार्टनर्स इंडिया का ध्यान भी इस पर गया है और उसने ट्रैफलाइन में निवेश करके इसे भारत के अन्य शहरों में ले जाने का इरादा जताया है.

कैसे करता है काम
ब्रिजराज बताते हैं, ‘जैसे ही कहीं कोई दुर्घटना होती है या ट्रैफिक जाम की स्थिति बनती है, मुङो फोन पर मोबाइल एप्स द्वारा हमारे कंट्रोल रूम्स से जानकारी मिल जाती है. आम लोग भी हमें सूचना देते हैं. इस जानकारी को हम प्रोसेस करते हैं और हमें घटनास्थल की पूरी जानकारी अक्षांश और देशांतर सहित मिल जाती है.’ इस जानकारी की पुष्टि एक मिनट से भी कम समय में हो जाती है. फिर यह जानकारी ट्विटर, ट्रैफलाइन की वेबसाइट और मोबाइल वेबसाइट पर डाल दी जाती है. इस जानकारी को नक्शों अथवा शब्दों की शक्ल दे दी जाती है. ट्रैफिक की स्थिति की गंभीरता के हिसाब से कलर कोड भी रखे गये हैं. जैसे, भारी अवरोध के लिए लाल, धीमे ट्रैफिक को दर्शाने के लिए गुलाबी आदि. जानकारी जुटाने के लिए टीम के स्नेत हैं. इनमें खासतौर पर जीपीएसवाले वाहन और मदद करने को आतुर आम नागरिक हैं, जिनकी मुंबई में कोई कमी नहीं है. बर्ड आइ सिस्टम्स 599 और 899 के वार्षिक शुल्क पर ट्रैफिक अपडेट देता है. फिलहाल इसके 30 हजार सब्सक्राइबर हैं और करीब 20 एजेंसियों से इसे डाटा मुहैया कराया जाता है. इस वक्त कंपनी में 40 लोग काम करते हैं, जिन पर करीब 30 लाख रुपये महीने के खर्च होते हैं. कंपनी दावा करती है कि टैफलाइन सर्विस की मदद से रोज आने जानेवाले लोग कम से कम अपने 20 मिनट बचा सकते हैं. इतना ही नहीं कंपनी के संस्थापक बताते हैं कि वर्ष 2013 की शुरुआत में बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली में उन्होंने एसएमएस के माध्यम से पेड डेली ट्रैफिक अलर्ट की भी शुरुआत कर दी है.

आनेवाले समय में क्या होगा नया
भविष्य में ब्रिजराज और रवि अपने एप्प को देश के अन्य शहरों में भी ले जाना चाहते हैं. आखिर ट्रैफिक जाम की समस्या तो हर शहर में है. संभव है कि वर्ष 2014 में 10 और शहरों में यह एप्प उपलब्ध हो जाये.

टैफलाइन के कई हैं अप्लीकेशन
ट्रैफलाइन के एंड्रॉयड, आइओएस और ब्लैकबेरी के भी अप्लीकेशंस हैं. ब्रिजराज के अनुसार, इसमें मैट्रिक्स द्वारा किये गये निवेश से सबसे पहले इस अप्लीकेशन का और विस्तार का प्लान है. कोशिश की जा रही है कि वर्ष 2015 के अंत तक इसे सभी शहरों में पहुंचा दिया जाये. आनेवाले दिनों में हम इसे पूरी तरह से रोड इंफॉर्मेशन सर्विस प्रोवाइडर बनाना चाहते हैं. जिसके माध्यम से अन्य चीजों की भी जानकारी प्राप्त की जा सके. जैसे- पार्किग, गैस स्टेशंस, एटीएम आदि.

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