केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद राजभवनों में बदलाव की आहट सुनाई देने लगी है. इस सिलसिले में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया.
जोशी के इस्तीफ़े के अलावा मीडिया में कुछ और राज्यों के राज्यपालों के इस्तीफ़े की चर्चा गर्म है.
जिन राज्यपालों पर गाज गिरने के संकेत हैं, उनमें महाराष्ट्र के राज्यपाल के शंकर नारायणन, केरल की शीला दीक्षित, पश्चिम बंगाल के एमके नारायणन और गुजरात की कमला बेनीवाल शामिल हैं.
सरकार के इस कदम को कांग्रेस और माकपा ने असंवैधानिक और अनैतिक बताया है, जबकि भाजपा नेताओं का कहना है कि इस फैसले में कुछ भी गलत नहीं है.
राज्यपालों की नियुक्ति और उनके हटाने की बात पर पहले भी विवाद रहे हैं.
वर्ष 2004 में भी जब यूपीए सत्ता में आई थी तब भी गुजरात, गोवा, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के राज्यपालों को हटाया गया था. उस वक़्त कैलाशपति मिश्रा गुजरात, विष्णुकांत शास्त्री उत्तर प्रदेश, और बाबू परमानंद हरियाणा के राज्यपाल थे.
हलांकि इस विवाद पर मिलीजुली प्रतिक्रिया आ रही है. कुछ सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला दे रहे हैं जिसमें कहा गया है कि राज्यपालों को हटाया नहीं सकता है.
सवाल ये है कि सत्ता बदलते ही क्या राज्यपालों को हटाया जाना सही है.
क्या राज्यपाल के संवैधानिक पद की गरिमा को राजनीतिक दलों के प्रति निष्ठा से जोड़ा जाना चाहिए.
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