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‘अपने बच्चे को देखेंगे मंजीत तो उनके हाथ में मेडल होगा’

<p>उस दिन हरियाणा के नरवाना में पशु व्यापारी रणधीर सिंह का घर अतिथियों से भरा हुआ था. </p><p>उनके 28 वर्षीय बेटे मंजीत चहल ने जकार्ता में चल रहे एशियाई खेलों की 800 मीटर दौ़ड़ में गोल्ड मेडल जीता है. </p><p>परिवार को बधाई देने पहुंचे मेहमानों का स्वागत देसी घी के लड्डू और चाय से किया […]

<p>उस दिन हरियाणा के नरवाना में पशु व्यापारी रणधीर सिंह का घर अतिथियों से भरा हुआ था. </p><p>उनके 28 वर्षीय बेटे मंजीत चहल ने जकार्ता में चल रहे एशियाई खेलों की 800 मीटर दौ़ड़ में गोल्ड मेडल जीता है. </p><p>परिवार को बधाई देने पहुंचे मेहमानों का स्वागत देसी घी के लड्डू और चाय से किया जा रहा था. परिवार ने तीन दिनों तक लड्डू बनवाने के लिए हलवाई को काम पर लगाया है. </p><h1>’उम्मीद नहीं छोड़ी'</h1><p>मंजीत के पिता रणधीर ख़ुद प्रदेश स्तर के कबड्डी खिलाड़ी रहे हैं. उन्हें इस बात की अतिरिक्त ख़ुशी है कि जब मंजीत अपने चार महीने के बेटे अबीर के लिए घर आएंगे तो उनके हाथ में मेडल होगा. </p><p>रणधीर बताते हैं, &quot;मंजीत किसी ख़ास धातु का बना है. 2013 की एशियन चैम्पियनशिप के बाद किसी अंतरराष्ट्रीय इवेंट के लिए उसके नाम पर विचार नहीं हुआ, लेकिन उसने उम्मीद नहीं छोड़ी और अभ्यास करता रहा.&quot;</p><p>वह बताते हैं कि मंजीत स्कूल के स्तर से ही खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहे हैं. वह कहते हैं कि उसने इतने पदक जीते हैं कि उनका कुल वज़न दस किलो से ज़्यादा हो गया है. </p><p>रणधीर बताते हैं कि मंजीत ने 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ खेलों में भी हिस्सा लिया था, लेकिन वह पदक नहीं जीत सके.</p><p>इसके बाद उन्हें पटियाला के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में प्रवेश मिल गया और वह 2013 में एशियन चैंपियनशिप खेले और चौथे स्थान पर रहे.</p><p>रणधीर बताते हैं, &quot;इतना ही नहीं, उसकी उंगली में चोट लग गई और वह एशियाड, एशियन चैंपियनशिप जैसे बड़े खेलों में हिस्सा नहीं ले सका. 2015 में हमने उसकी शादी करा दी.&quot;</p> <ul> <li>पढ़ें: <a href="https://www.bbc.com/hindi/sport-45333002">मनजीत ने लगाई 800 मीटर की स्वर्णिम रेस</a></li> </ul><h1>आख़िरी कोशिश के लिए परिवार से दूर गए</h1><p>अपने चार महीने के बच्चे को गोद में लिए हुए मंजीत की पत्नी किरण चहल कहती हैं कि यह उनके पति की लगन थी कि जब वह गर्भवती थीं, तभी प्रैक्टिस के लिए वह परिवार से दूर चले गए.</p><p>ख़ुशी के कुछ आंसू आंखों में लिए किरण बताती हैं, &quot;मेरी डिलिवरी को एक महीना बचा था और वो प्रैक्टिस के लिए पहले ऊटी और फिर भूटान चले गए. उन्होंने कहा कि मैं एशियाई खेलों में मेडल लाकर इसकी भरपाई करूंगा.&quot;</p><p>वह कहती हैं कि जब उन्होंने टीवी पर अपने पति को मेडल जीतते देखा तो वह नि:शब्द हो गईं थीं. </p><h1>’दूध और घी का कमाल'</h1><p>मंजीत की मां बिमला देवी बताती हैं कि उनके बेटे का शरीर मुर्रा नस्ल की भैंस के दूध और घी से मज़बूत बना है.</p><p>मुस्कुराती हुई बिमला कहती हैं, &quot;जब उसे खेलने का मौक़ा नहीं मिला, मैंने उससे कहा कि बेटा हार मानने से पहले एक बार और कोशिश कर. इसके बाद वह प्रैक्टिस के लिए ऊटी चला गया.&quot;</p><h1>संघर्ष के दिन</h1><p>29 अगस्त को जब हम नरवाना-जींद हाइवे के पास स्थित नवदीप स्टेडियम पहुंचे तो वहां जेसीबी की मशीन मिट्टी के ट्रैक को सिंथेटिक ट्रैक में बदलने के काम में लगी हुई थी. </p><p>यहां पांच साल से काम कर रहे खुशप्रीत सिंह ने बताया कि मंजीत रोज़ यहां प्रैक्टिस किया करते थे, तीन घंटे सुबह और तीन घंटे शाम.</p><p>उन्होंने बताया, &quot;वह सबसे पहले आकर सबसे बाद में जाते थे. यहां कोई एथलेटिक्स का कोच नहीं है लेकिन मंजीत अकेले ही प्रैक्टिस में जुटे रहते थे.&quot;</p><p>मंजीत के पैतृक गांव उझाणा के सरपंच सतबीर सिंह बताते हैं कि 2010 में जब उस वक़्त की कांग्रेस सरकार ने कॉमनवेल्थ खिलाड़ियों के लिए ग्राम पंचायत को 11 लाख रुपये की राशि दी थी तो खिलाड़ियों ने इसे गांव के स्टेडियम के विकास के लिए दान कर दिया था.</p><p>रणधीर सिंह बताते हैं कि मंजीत ने प्रदेश और केंद्रीय स्तर पर नौकरियों के लिए कई आवेदन किए थे, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली. उन्हें ओएनजीसी में एक अस्थायी नौकरी मिली जो उन्होंने 2015 में छोड़ दी.</p><p>रणधीर के मुताबिक, मंजीत के भीतर पदक जीतने की ऐसी भूख थी कि ऊटी की तीन महीनों की प्राइवेट कोचिंग के लिए उन्होंने अपनी जेब से पैसे ख़र्च किए.</p> <ul> <li>पढ़ें: <a href="https://www.bbc.com/hindi/sport-45347689">स्वप्ना और अरपिंदर सिंह ने भारत को दिलाया गोल्ड</a></li> </ul><h1>18 साल की मेहनत</h1><p>मंजीत को हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ खेलों में भारत की नुमाइंदगी के लिए नहीं चुना गया था. हालांकि उन्हें भूटान में हुए एक भारतीय कैंप में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला था.</p><p>उनके पिता बताते हैं कि सामान्य पृष्ठभूमि के बावजूद परिवार मंजीत के लिए तीस से पचास हज़ार रुपये देता था, ताकि उनकी तैयारी ठीक तरह से चले.</p><p>परिवार के लोगों को भरोसा था कि इस बार मंजीत मेडल लेकर ज़रूर आएंगे. रणधीर कहते हैं, &quot;हमें पूरा भरोसा था क्योंकि वह 800 मीटर दौड़ की प्रैक्टिस पिछले 18 साल से पूरी लगन से कर रहा था. &quot;</p><p>महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक के खेल विभाग के निदेशक डॉ. देविंदर ढुल ने बताया कि मंजीत उनके स्टेडियम में भी प्रैक्टिस करते थे.</p><p>उनके मुताबिक, &quot;छुट्टी के दिनों में भी वो घर नहीं जाते थे और हर रोज़ चैम्पियन की तरह प्रैक्टिस में लगे रहते थे.&quot;</p><p>पढ़ें: <a href="https://www.bbc.com/hindi/sport-45277141">विनेश फोगाट से क्यों प्रेरित हो रहे हैं चीनी</a></p><p>पढ़ें: <a href="https://www.bbc.com/hindi/sport-45259121">16 की उम्र में सोना पर निशाना लगाने वाले सौरभ कौन हैं? </a></p><p>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप <a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a> कर सकते हैं. आप हमें <a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a>, <a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a>, <a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a> और <a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) </p>

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