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और इस दौर में: ढिंक चिका ढिंक चिका ढिंक चिका ढिंक चिका ए ए ए ए. 12 महीने में 12 तरीके से तुझको प्यार सिखाऊंगा रे.
संगीत जगत के मशहूर दिग्गज, हिंदी फ़िल्मी संगीत में आए बदलाव को कुछ इसी तरह से बयां करते हैं.
समय बदला और समय के साथ साथ संगीत भी. एक वक़्त था जब युवाओं को रिझाती थीं ग़ज़लें.
80 के दशक में हिंदी फ़िल्म संगीत में छा जाने वाले दो गायक जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने ग़ज़ल गायकी में ही अपना हुनर दिखाया.
(ग़ज़लों के ‘पतन’ पर अनूप जलोटा)
‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ हो या ‘तुमको देखा तो ये ख्याल आया’ जैसी ग़ज़लों ने धूम मचा दी थी.
इसके बाद बाद तलत अज़ीज़ और पंकज उधास जैसे नाम भी ग़ज़ल गायकी में उतरे.
इस बीच एक और नाम आया, जिसे ग़ज़ल गायक के तौर पर अपनी पहचान बनाने में काफी वक़्त लगा, वो थे हरिहरन.
हरिहरन यूं तो दक्षिण भारतीय हैं पर ग़ज़ल गायकी की ओर उनका रुझान शुरू से रहा.
ज़ाकिर-हरिहरन की जुगलबंदी
हाल ही में वो अपने एक नए ग़ज़ल एलबम ‘हाज़िर 2’ के लॉ़न्च पर मीडिया से मिले.
1992 के हिट ग़ज़ल एलबम ‘हाज़िर’ के 22 साल बाद हरिहरन ने एक बार फिर तबला वादक ज़ाकिर हुसैन के साथ ‘हाज़िर 2’ में काम किया.
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बीबीसी से बात करते हुए हरिहरन ने कहा, "ये मेरी ग़ज़लों को एक बार फिर से ज़िंदा करने की कोशिश है. जिन्होंने हाज़िर सुनी और आज भी सुनते हैं उन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम आज भी ग़ज़लें गा सकते हैं."
80 के दशक को याद करते हुए हरिहरन कहते हैं, "तब ग़ज़ल गायकी इतनी मशहूर थी कि हर कोई ग़ज़ल गायक बनना चाहता था. मुझे ख़ुद को एक ग़ज़ल गायक के रूप में अपनी छाप छोड़ने में काफी मेहनत करनी पड़ी. शुरू में मेरा नाम नहीं हुआ. मुझे पहचान गुलफ़ाम से मिली, लोगों को लगा कि मैं अलग गा रहा हूं."
कहां है आज ग़ज़लें?
हरिहरन के मुताबिक़ 80 के दशक के बाद से ग़ज़लों ने दम तोड़ना शुरू कर दिया.
हरिहरन बताते हैं, "80 के दशक में ग़ज़ल गायकी इतनी हो गई कि ग़ज़लों को ग़ज़लों ने ही मार डाला. अब सुनने वाले कुछ नया चाह रहे थे. फिर फ़िल्म म्यूज़िक और पॉप कल्चर शुरू हुआ. ग़ज़ल से हट कर अब युवा तेज़ और पेपी संगीत में सुकून पाने लगा."
इसी मौक़े पर युवा गायक अरमान मलिक भी मौजूद थे. 18 साल के अरमान ने हाल ही में सलमान ख़ान की एक फ़िल्म के तीन गाने गाए हैं.
ग़ज़ल गायकी के सवाल पर अरमान कहते हैं, "मुझे ग़ज़लें सुनना पसंद है. ये एक अलग ही दुनिया में ले जाती है और हर एक के दिल को छूती हैं."
‘मर गई हैं ग़ज़लें’
ख़ुद को ‘भारत का जस्टिन बीबर’ कहलाना पसंद करने वाले अरमान कहते हैं, "ग़ज़ल गायकी एक मेच्योर सिंगिंग है. लेकिन मैं आगे ग़ज़लें करना चाहूंगा. आजकल संगीत बहुत बदल गया है और यूथ कनेक्ट बहुत ज़रूरी है. जो युवा सुन रहे हैं वो ही चल रहा है. चाहे वो डांस म्यूजिक हो या ‘तुम ही हो…’ जैसे गाने, जो बस युवाओं से जुड़ें."
क्या ग़ज़लें युवाओं को रिझा सकती हैं? इस सवाल के जवाब में अरमान कहते हैं, "मेरे ख़्याल से अब ग़ज़लें मर चुकीं हैं. उन्हें वापसी करने में समय लगेगा, लेकिन ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम उन्हें वापस लाएं."
हरिहरन के बेटे अक्षय हरिहरन मानते हैं कि ग़ज़ल के शौक़ीन आज भी बड़ी तादाद में हैं, लेकिन ग़ज़लों को पुनर्जीवित करने के लिए मीडिया के प्रोत्साहन की सख़्त ज़रूरत है. ग़ज़लों की कोई बात नहीं करता तो कोई ग़ज़ल गायक बनना भी नहीं चाहता.
‘मीडिया ज़िम्मेदार’
हरिहरन का हौसला बढ़ाने आए एक और मशहूर ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़, हरिहरन की बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते. वो कहते हैं, "कौन कहता है कि युवा वर्ग ग़ज़ल नहीं सुन रहा है. मैं एक रेडियो प्रोग्राम करता हूं जिसके रिसर्च से पता चला है कि ग़ज़लें सुनी जा रही हैं और युवा उन्हें सुनते हैं."
तलत ये ज़रूर मानते हैं कि ग़ज़ल गायकों की कमी हो गई है और सिर्फ़ तीन-चार ही युवा गायक हैं, जो ग़ज़लें भी गा रहे हैं.
तलत ग़ज़लों के पतन के लिए मीडिया को ज़िम्मेदार ठहराकर अपनी बात ख़त्म करते हैं. "मीडिया ग़ज़लों के बारे में बात ही नहीं करता क्योंकि उसे चाहिए कंट्रोवर्सी, हीरो-हीरोइन का अफ़ेयर और बॉलीवुड, बस. जब ग़ज़ल की बात ही नहीं होगी तो युवा इससे कैसे जुड़ेगा?"
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