।।पंकज कुमार पाठक।।
हमारे आसपास कभी ना कभी कुछ न कुछ गलत होता है. पर, हममें से बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं. कई लोग हैं, इस समाज में जो सोचते हैं कि बेकार में हम क्यूं इस लफड़े में पड़ें.
जिनकी परेशानी है वो समङों. लेकिन इस साधारण व्यवहार से इतर एक महिला ने कभी भी अपने आसपास कुछ गलत होने पर पुरजोर आवाज उठायी, रोका, विरोध किया. वह महिला है निर्मला एक्का. निर्मला बचपन से अपने इस स्वभाव के कारण गांव में पहचानी जाती थीं. कहीं भी किसी के घर में कोई परेशानी हो, अनबन हो, मर्दो के बीच भी झगड़ा हो तो सबसे पहले पहुंच कर उन्हें रोकने की कोशिश करती थी. कई बार उन्हें गुस्से का शिकार होना पड़ा पर लोग उनकी बात मानते थे और झगड़े बंद हो जाते थे.
बचपन के स्वभाव ने बनाया समाज सेविका
गुमला जिले के एक छोटे से गांव गमहइर टोली की रहने वाली निर्मला बचपन से कुछ गलत होता नहीं देख पाती थीं. अपने इस स्वभाव के कारण उन्हें गांव में अलग पहचान मिली. गांव के लोग उनकी बात मानते थे, क्योंकि सभी जानते थे कि निर्मला के स्वभाव में छल-कपट जरा भी नहीं है. उसका स्वभाव तो सबकी भलाई चाहने वाला है. गांव में पढ़ाई के बाद निर्मला की शादी रांची में रहने वाले पीटर एक्का से हो गयी.
शादी के बाद भी नहीं बदला स्वभाव
शादी के बाद कुछ दिनों तक निर्मला मजबूरन परिवार की जरूरत बन कर रहीं. निर्मला कहती हैं : मैं ज्यादा दिनों तक घर के अंदर बंद नहीं रह सकती थी, क्योंकि मैं कुछ करना चाहती थी. लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां भी सिर पर थीं, लेकिन एक समय के बाद मुङो चहारदीवारी में बंद रहना बिल्कुल रास नहीं आ रहा था. मैं आसपास की महिलाओं से मिल कर उन्हें अपने हक के लिए आवाज उठाने की प्रेरणा देती रहती थी. 2007 में मैं कैथलिक महिला संघ की कडरू सचिव चुनी गयी. वे कहती हैं : मैं जो काम करना चाहती थी, उसे फिर एक रास्ता मिल गया. इस संघ के जरिये हम महिलाओं को मजबूत करने की कोशिश करते थे. मैंने इस संघ के जरिये कई काम किये, जिससे मुङो काफी संतोष मिला.
वीडियो वोलेंटियर से जुड़ाव
निर्मला 2012 में वीडियो वोलेंटियर तैयार करने वाली संस्था से जुड़ीं. निर्मला कहतीं है कि मुङो पता नहीं था कि कैसा काम मिलने वाला है. लेकिन उस वक्त मैं किसी भी तरह का काम चाहती थी इसलिए मैंने फार्म भर दिया. लेकिन समाज की सेवा करने का मेरे अंदर जो जज्बा था, उसने वीडियो वोलेंटियर के रूप में मेरे हाथ में एक हथियार दे दिया. अब मैं अपने आसपास कुछ गलत होता देखती हूं, तो उसकी वीडियो फिल्म बना लेती हूं और हक की आवाज उठाती हूं.
धमकी मिलने से बढ़ती है हिम्मत
निर्मला कहती हैं कि उन्होंने पहला वीडियो आंगनबाड़ी केंद्र पर बनाया था. एक ही क्षेत्र में दो आंगनबाड़ी चल रहे थे. उसकी पूरी स्थिति पर मैंने फिल्म बनायी और संबंधित अधिकारी को दिखाया. इसका असर हुआ और तुरंत जांच करने के लिए टीम आंगनबाड़ी पहुंची. जिसके नाम से आंगनबाड़ी केंद्र था, उसने मुङो फोन करके कहा कि तुम्हें सिर्फ मेरा आंगनबाड़ी केंद्र दिखा है और थोड़ी धमिकयां भी दी. लेकिन इससे हमें काफी हौसला मिला. लगा कि हम कुछ सही कर रहे हैं. ऐसी कई घटनाएं मेरे साथ हो चुकी हैं. एक बार छिप कर वीडियो लेने के कारण मुझ पर बंदूक भी तन गयी थी, पर हौसला कभी नहीं डगमगाया. आपको यह तो मानना पड़ेगा कि एक पत्र से व्यवस्था की जर्जर हालत का उतना अंदाजा नहीं लगता, जितना एक वीडियो बना कर दरसाया जा सकता है. हमारा प्रयास भी यही रहता है कि लोगों की समस्याओं को उनकी भाषा में रिकार्ड करके संबंधित अधिकारी को अवगत कराया जाये. निर्मला जैसे लोग जो वीडियो के जरिये समाज में बदलाव की कोशिश लाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें एक सफल वीडियो बनाने के लिए 2500 रु पये मिलते हैं.
महिला हिंसा के खिलाफ काम करने की है इच्छा
महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा निर्मला के मन को कचोटता है. वे चाहती हैं कि समाज से नारी हिंसा खत्म हो जाये और महिलाओं को भी पुरुषों के बराबद दर्जा व अधिकार मिले. वे कहती हैं कि आज भी हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा होती है और गौर करने वाली बात यह है कि समाज में इतनी जागरूकता लाये जाने के बाद भी लोगों में जागरूकता की बेहद कमी है. एक पुलिस वाला अपनी पत्नी को इस कदर पीटता है, जैसे वो उसकी बहुत बड़ी दुश्मन हो. उसका नौ साल का बेटा और सात साल की बच्ची है. पीड़ित महिला इतनी डरी हुई है कि कहीं शिकायत नहीं करती और ना ही किसी महिला से मिलती है. हर समय उसके शरीर पर चोट के निशान होते हैं. ये सब देख कर बहुत दुख होता है. पिछले दिनों एक और मामला देखने को मिला, जिसमें एक पिता ने अपनी बेटी के साथ र्दुव्यवहार की कोशिश की. घर वालों को मैंने शिकायत करने की सलाह दी और सही-गलत का फर्क समझाया. चार-पांच दिनों तक मैं उनके संपर्क में रही और अब वे कह रहे हैं कि हमने शिकायत वापस लेने का फैसला किया है. ऐसे में कोई क्या कर सकता है हम तो बस उनकी लड़ाई में मदद कर सकते हैं. आगे आकर लड़ नहीं सकते. मेरी कोशिश है कि पीड़ितों के अंदर जो डर है, उसे दूर करने की कोशिश करूं, उन्हें हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दे सकूं. एक महिला होने के नाते मैं उनके दर्द को समझती हूं और इतनी कोशिश तो कर सकती हूं. यह घटना बताती है कि महिला के खिलाफ होने वाले र्दुव्यवहार को उसके परिवार वाले भी ढकने का प्रयास करते हैं.
राजनीति से भी रखतीं है लगाव
बंधु तिर्की की राजनीति से निर्मला विशेष लगाव रखती हैं. निर्मला कहतीं है कि मेरी कभी इच्छा नहीं हुई कि मैं चुनाव लड़ू. हालांकि पार्षद के चुनाव के लिए मुङो कहा गया था, पर मैं परदे के पीछे रह कर आम लोगों के बीच काम करने की इच्छा रखती हूं. मैं कभी चुनाव नहीं लड़ूंगी. मैं बंधु तिर्की की राजनीति को इसलिए समर्थन देती हूं, क्योंकि वे स्थानीय नीति की बात करते हैं. मेरा भी मानना है कि आदिवासियों को उनका हक मिलना चाहिए.