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नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री व्यक्तित्व एवं राजनीतिक जीवन

-सेंट्रल डेस्क- अप्रैल-मई, 2014 के दौरान पांच राज्यों (तेलंगाना और सीमांध्र को अलग करते हुए) में विधानसभा चुनाव हुए हैं. चुनावी नतीजे के बाद पवन चामलिंग ने सिक्किम में पांचवीं बार, तो नवीन पटनायक ने ओड़िशा में चौथी बार और नबाम तुकी ने अरुणाचल प्रदेश में सत्ता संभाली है. पांचों राज्यों के नये या संभावित […]

-सेंट्रल डेस्क-

अप्रैल-मई, 2014 के दौरान पांच राज्यों (तेलंगाना और सीमांध्र को अलग करते हुए) में विधानसभा चुनाव हुए हैं. चुनावी नतीजे के बाद पवन चामलिंग ने सिक्किम में पांचवीं बार, तो नवीन पटनायक ने ओड़िशा में चौथी बार और नबाम तुकी ने अरुणाचल प्रदेश में सत्ता संभाली है. पांचों राज्यों के नये या संभावित मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक जीवन पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..

ओड़िशा

नवीन पटनायक

ओड़िशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के बारे में कहा जाता है कि वे भुवनेश्वर की सड़कों पर अकसर रिक्शे पर यात्र करते हुए पाये जाते थे. आपसी सद्भाव और अहिंसा के मामले में इस राज्य का कोई सानी नहीं था. उन्हीं के बेटे नवीन पटनायक ने हालिया विधानसभा चुनावों में एक बार फिर से अजेय बहुमत हासिल करते हुए लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी पायी है. साथ ही राज्य में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी इनके नाम दर्ज हो गया है. देहरादून के प्रसिद्ध दून स्कूल से पढ़ाई करनेवाले और 1967 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करनेवाले नवीन पटनायक का राजनीतिक करियर उस समय शुरू हुआ था, जब उन्होंने 1997 में जनता दल के टिकट पर अस्का लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता था. दरअसल, यह उनके पिता की पारंपरिक सीट थी. इसके तकरीबन सालभर बाद इन्होंने अपने पिता के नाम पर बीजेडी का गठन किया. बतौर एनडीए के घटक दल 1998 में नवीन केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल में खनन मंत्री रह चुके हैं.

राज्य विधानसभा के लिए वर्ष 2000 के चुनावों में भाजपा-बीजेडी गंठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला और नवीन ने पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद 2004 में हुए चुनावों में भी इस गंठबंधन को बहुमत हालिस हुआ और नवीन एक बार फिर मुख्यमंत्री चुने गये. हालांकि, कंधमाल सांप्रदायिक दंगों के की वजह से 2008 में राज्य में यह गंठबंधन टूट गया और उसके बाद 2009 के विधानसभा चुनावों में बीजेडी ने अकेले ही चुनाव लड़ा. इस चुनाव में बीजेडी अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब रही और नवीन तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 2014 के राज्य विधानसभा चुनावों में फिर से बीजेडी को बहुमत मिली और चौथी बार इन्हें मुख्यमंत्री चुना गया.

16 अक्तूबर, 1946 को कटक में जन्मे और अब तक अविवाहित नवीन पटनायक ने हैंडलूम उद्योग में भारतीय डिजाइन को एक नयी पहचान दिलाने में अपना योगदान दिया है. हालांकि, नवीन पटनायक की सरकार कई विवादों से भी घिरी रही. खासकर खनन घोटाला और चिटफंड घोटाला. साथ ही राज्य में बिगड़ी कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर भी विरोधियों ने इन पर आरोप लगाये, इन सब के बावजूद भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के मामले में नवीन की छवि देश में बहुत अच्छी मानी जाती है.

सीमांध्र

नारा चंद्रबाबू नायडू

हैदराबाद को देश की साइबर राजधानी के तौर पर ख्याति दिलानेवाले एन चंद्रबाबू नायडू किसी राजनीतिक परिवार से नहीं थे. एक किसान के बेटे नायडू का जन्म चित्तूर जिले के नरवारी गांव में हुआ था. मध्यवर्गीय किसान परिवार में पैदा हुए नायडू के पिता के पास महज पांच एकड़ खेती लायक जमीन थी. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के चलते इन्हें बचपन में ही कठिन मेहनत करने की आदत पड़ गयी, जिसने इन्हें राजनीतिक तौर पर काफी आगे बढ़ाने में मदद की. आचार्य एनजी रंगा और पातुरी राजगोपाल को इनका राजनीतिक गुरु समझा जाता है. वर्ष 1972 में बीए करने के बाद इन्होंने अर्थशास्त्र विषय से एमए में दाखिला लिया था.

20 अप्रैल, 1950 को जन्मे नायडू पहली बार राज्य विधानसभा के लिए चांदगिरी सीट से 1978 में चुने गये थे और कांग्रेस की सरकार में सबसे कम उम्र के युवा मंत्री बनाये गये थे. इस बीच नायडू की मुलाकात एनटी रामाराव से हुई. एनटीआर नायडू से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने नायडू को अपना दामाद बना लिया. रामाराव की बेटी भुवनेश्वरी से इनकी शादी हुई. बाद में ये कांग्रेस छोड़ कर अपने ससुर रामाराव की तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गये. 1989 के विधानसभा चुनावों में नायडू कुप्पम सीट से जीते थे. लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आने की वजह से इन्हें विपक्ष में बैठना पड़ा था. 1994 के विधानसभा चुनावों में तेलुगु देशम की जीत हुई और नायडू को वित्त एवं राजस्व मंत्री बनाया गया. एक सितंबर, 1995 को इन्होंने अपने ससुर से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार अपने हाथों में ले लिया. सत्ता हस्तांतरण की इस घटना में एनटी रामाराव के दो पुत्र समेत अन्य कई पारिवारिक सदस्यों ने भी चंद्रबाबू नायडू का साथ दिया था.

वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए गंठबंधन सरकार के लिए इन्हें ‘खलनायक’ और ‘नायक’ दोनों ही भूमिकाओं में देखा जाता है. जहां 1998 में एनडीए सरकार के अल्पमत में आने के पीछे नायडू का भी योगदान रहा, वहीं 1999 के आम चुनावों में एनडीए की जीत में भी इनका योगदान रहा. 1999 में वाजपेयी के नेतृत्व में इन्होंने एनडीए गंठबंधन में कई बार संकटमोचक की भूमिका निभाते हुए केंद्र की सत्ता में अपनी धाक जमायी.

अक्तूबर, 1999 के राज्य विधानसभा चुनावों में इन्हें बहुमत मिला और एक बार फिर नायडू सत्ता में आये. 2004 के राज्य विधानसभा चुनावों में तेलुगु देशम की हार से इन्हें हटना पड़ा. आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद सीमांध्र के नाम से नये बनाये जानेवाले राज्य में तेलुगु देशम को राज्य विधानसभा की 175 में से 102 सीटों पर जीत हासिल हुई है. इस राज्य के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर चंद्रबाबू को मुख्यमंत्री बनाया जायेगा.

तेलंगाना

के चंद्रशेखर राव

आं ध्र प्रदेश का विभाजन करते हुए एक अलग राज्य तेलंगाना के निर्माण के लिए केसीआर के नाम से जाने जाने वाले के चंद्रशेखर राव ने 2004 में तेलंगाना राष्ट्र समिति नाम से एक अलग पार्टी गठित की. अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बूत केसीआर 29 नवंबर, 2009 को अलग तेलंगाना राज्य के समर्थन में आमरण अनशन पर बैठे. 11 दिनों के अनशन के बाद भारत सरकार ने तेलंगाना के गठन की प्रक्रिया शुरू करने की पहल की और इन्होंने अपना अनशन खत्म किया. इनका राजनीतिक कैरियर 1985 में उस समय सुर्खियों में आया, जब ये पहली बार तेलुगु देशम पार्टी से विधायक चुने गये. आंध्र प्रदेश में इन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. सिद्धीपेट विधानसभा क्षेत्र से ये लगातार चार बार- 1985, 1989, 1994 और 1999 में- चुने गये. बाद में अलग तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर इन्होंने राजनीति शुरू की. 15वीं लोकसभा में ये महबूबनगर से सांसद चुने गये और मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में श्रम एवं रोजगार मंत्री बने. आंध्र प्रदेश के विभाजन से बने तेलंगाना राज्य के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर के चंद्रशेखर राव को नियुक्त किया जायेगा. राज्य विधानसभा में इनकी पार्टी (तेलंगाना राष्ट्र समिति) को 119 में 63 सीटें हासिल हुई हैं.

अरुणाचल प्रदेश

नबाम तुकी

देश के सबसे पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी हाल ही में दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री नियुक्त किये गये हैं. 16वीं लोकसभा के साथ हाल ही में आयोजित किये गये राज्य विधानसभा के चुनावों में इनके नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस को 60 में से 42 सीटों पर जीत हासिल हुई है.

सात जुलाई, 1964 को इस सूबे के सागाली सब-डिवीजन के सुदूर इलाके में स्थित ओमपुली गांव में पैदा हुए तुकी की रुचि छात्र जीवन से ही राजनीति में थी. 1983 से 1986 तक ये अरुणाचल प्रदेश एनएसयूआइ के अध्यक्ष रह चुके हैं. इसके बाद ये एनएसयूआइ समेत यूथ कांग्रेस के कई राष्ट्रीय पदों पर जिम्मेवारियों का निर्वहन कर चुके हैं. राज्य की राजनीति में इनकी सक्रियता 1995 के बाद से बढ़ी, जब पहली बार राज्य विधानसभा के लिए नबाम चुने गये और कृषि समेत कई अन्य विभागों में उप-मंत्री के पद पर रहे. 1999 में दोबारा विधायक चुने गये और वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाये गये. इसके बाद 2004 और 2009 में भी विधानसभा चुनाव जीत कर आये और मंत्री बनाये गये. वर्ष 2011 में 30 अप्रैल को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गयी. उसके बाद राज्य की राजनीति ने करवट ली और जोरबाम गामलिन को सूबे का मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, कुछ ही माह बाद राज्य में एक बार फिर से राजनीतिक संकट की स्थिति पैदा हुई और नबाम तुकी को एक नवंबर, 2011 को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया गया. और उसके बाद से ये इस पद पर काबिज हैं. 18 मई को इन्होंने दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. शपथ ग्रहण के बाद अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ही दिन इन्होंने लोकायुक्त अधिनियम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए उसे कानून में तब्दील कर दिया.

सिक्किम

पवन कुमार चामलिंग

हाल ही में सिक्किम राज्य को एक खास प्रकार की उपलब्धि हासिल हुई है. पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रलय द्वारा महज चंद माह पूर्व सिक्किम को देश का पहला ऐसा राज्य घोषित किया गया है, जहां सभी घरों में शौचालय की सुविधा मौजूद है. दुनियाभर में जो देश स्वास्थ्य और साफ-सफाई के मामले में निचले पायदान पर हो, उस देश के किसी राज्य के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है. इस राज्य से जुड़ी एक दूसरी उपलब्धि यह देखने में आयी है कि यहां के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग को जनता ने लगातार पांचवीं बार चुना है. दरअसल, अब तक लगातार पांच बार (23 वर्षो तक लगातार) मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड पश्चिम बंगाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत ज्योति बसु के नाम है. यदि चामलिंग अपने पांचवें कार्यकाल को पूरा कर लेंगे, तो यह रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हो जायेगा. राज्य की उपरोक्त दोनों उपलब्धियों को आपस में जोड़ कर देखा जाये, तो पहली उपलब्धि (सभी घरों में शौचालय की सुविधा) का श्रेय चामलिंग को भी दिया जा सकता है.

बताया जाता है कि 22 सितंबर, 1950 को यानगांग में जब चामलिंग का जन्म हुआ था, गांव के पुजारी ने उनके होनहार होने की भविष्यवाणी की थी. उनके पिता को तब इसका अर्थ समझ में आया, जब लंबे सामाजिक -राजनीतिक संघर्ष के बाद पवन ने 12 दिसंबर, 1994 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.

साहित्यिक गतिविधियों में माहिर

चामलिंग की आरंभिक शिक्षा यानगांग में ही हुई थी. छात्र जीवन में वे अकादमिक तौर पर दक्ष होने के साथ खेल, संस्कृति और साहित्यिक गतिविधियों में भी माहिर थे. राजनीति में उनकी कामयाबी के पीछे शायद यही वजह हो सकती है कि इससे पहले वे सरकारी ठेकेदार के तौर पर काम कर चुके थे. इस दौरान उन्हें अनेक सड़कों, पुलों, मकानों समेत सिंचाई के नहरों को बनाने का जमीनी स्तर पर अनुभव हासिल हुआ. इससे उन्हें जमीनी स्तर पर विकास के मामलों की व्यावहारिक समझ हासिल हुई. ग्रामीणों और कामगारों की समस्याओं की समझ उनमें होने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है. हालांकि, उन्होंने वर्ष 1973 में ही राजनीति ज्वाइन कर ली थी, लेकिन वास्तविक राजनीतिक यात्र की शुरुआत 1977 से कही जा सकती है, जब वे सिक्किम प्रजातांत्रिक कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और उपाध्यक्ष बने. सिक्किम में कोऑपरेटिव आंदोलन की शुरुआत में इनका व्यापक योगदान माना जाता है. 1982 में यानगांग ग्राम पंचायत के अध्यक्ष चुने जाने तक चामलिंग ने बतौर सचिव और अध्यक्ष अपनी सेवाएं दीं. वर्ष 1985 में ये पहली बार विधायक चुने गये और सूचना एवं जनसंपर्क व उद्योग मामलों के मंत्री बनाये गये.

राज्य में सियासी हलचल

1990 के दशक में राज्य में राजनीतिक हलचल का दौर कायम हुआ, जिसके चलते चामलिंग ने 4 मार्च, 1993 को सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट का गठन किया. लोकतंत्र को बढ़ावा देने के मूल सिद्धांत और विकास के मोरचे पर लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप खरे उतरने की नीति के तहत इस पार्टी का गठन किया गया. 1994 के विधानसभा चुनाव में चामलिंग के प्रखर नेतृत्व में पार्टी को बहुमत मिली और यह सिलसिला आगामी (1999, 2004 और 2009) विधानसभा चुनावों में भी जारी रहा. हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों में भी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को राज्य की 32 में से 22 सीटें हासिल हुई हैं और एक बार फिर से चामलिंग के नेतृत्व में जनता ने भरोसा जताया है. इस पार्टी को 2014 के राज्य विधानसभा के चुनावों में 55 फीसदी वोट मिले हैं. सिक्किम क्रांतिकारी मोरचा चामलिंग के खिलाफ सबसे मजबूत विपक्षी दल था. इस दल को 10 सीटों पर जीत मिली है और कुल वोटों का तकरीबन 41 फीसदी वोट हासिल हुआ है.

विधानसभा के प्रमुख मुद्दे

सिक्किम प्राकृतिक संपदा के मामले में समृद्ध राज्य है. यहां पर्यावरण और पारिस्थितिकी से जुड़े मामले प्रमुख राजनीतिक मसले हैं. पिछले दो दशकों के दौरान चामलिंग के नेतृत्व में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रं ट ने पर्यावरण सुरक्षा के मोरचे पर अनेक काम किये हैं. साथ ही राज्य में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देते हुए वन्य क्षेत्रों में भी इस दौरान बढ़ोतरी हुई है. राज्य में ऊर्जा संयंत्रों के बढ़ते निर्माण कार्यो के बीच विपक्षी दलों का यह आरोप है कि इससे राज्य की तीस्ता ओर रंगीत जैसी प्रमुख नदियों और बांधों पर व्यापक असर पड़ेगा.

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