देश के विवादास्पद संगठनों में शामिल विश्व हिंदू परिषद इस वर्ष अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के सबसे मुखर एवं मजबूत स्वर के बतौर परिषद अयोध्या में विवादित बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि परिसर में मंदिर निर्माण के लिए चल रहे आंदोलन का भी अगुआ है. परिषद के पिछले 50 वर्षो के उतार-चढ़ाव, मौजूदा चुनौतियों और आगे की योजनाओं पर इसके अंतरराष्ट्रीय महासचिव चंपत राय से बात की प्रकाश कुमार रे ने..
विश्व हिंदू परिषद की स्थापना के पचास वर्ष पूरे हो रहे हैं. देश में इस तरह के संगठन की आवश्यकता क्यों पड़ी थी?
स्वतंत्रता के समय यह अनुभव किया गया कि हिंदुओं का एक संगठन बनना चाहिए. ऐसा अनुभव करने की पृष्ठभूमि भारत के बंटवारे की त्रसदी थी. लाखों लोग मारे गये, करोड़ों लोगों को अपना घर-बार छोड़ कर शरणार्थी बनना पड़ा. प्रश्न स्वाभाविक है कि विभाजित भारत के हिस्से में, जिसे पाकिस्तान कहा गया, हिंदू क्यों नहीं रह सकता था. वे कौन थे जिन्होंने हिंदुओं को वहां से भागने पर मजबूर किया? पाकिस्तान या भारत में रहनेवाले मुसलमानों और हिंदुओं का खून अलग-अलग है क्या? ये तो सभी हिंदुओं के ही वंशज हैं, जिनके एक हिस्से एक विशेष कालखंड में जोर-जबर्दस्ती से और तलवार के बल पर इसलाम में चले गये. अब जब देश दासता से मुक्त हो चुका था, तो उन्हें यह अनुभूति कराने की आवश्यकता थी कि उनके पूर्वज हिंदू थे. आखिर उन्होंने धर्म ही तो बदला था, अपने पूर्वज तो नहीं बदले थे! यह धरती तो यहां रहनेवाले सारे लोगों की माता है और सभी इसके पुत्र हैं. ऐसा विचार हुआ कि यदि इस भावना को लेकर कुछ वर्षो तक काम किया जाये तो स्थिति बदल सकती है.
जब कोई समाज अंदर से कमजोर होता है तभी बाहर से बीमारी का आक्रमण होता है. गुलामी के दौर में ऐसी सामाजिक बुराइयां घर कर गयी थीं, जो पहले नहीं थीं. परिषद का यह मानना था कि इनसे मुक्ति पाने का काम सिर्फ सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता है, बल्कि समाज को भी यह जिम्मेवारी लेनी चाहिए. जो सबसे बड़ी बुराई थी, वह थी- अस्पृश्यता. तीसरी बात, स्वतंत्रता के बाद विदेशों में पढ़ने और रोजगार के लिए जानेवाले भारतीयों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है, जो वहीं बस जाते हैं. यह चिंता स्वाभाविक थी कि ऐसे भारतीयों की आनेवाली पीढ़ियां तो बिना किसी तलवार या बल-प्रयोग के अपनी धरती, अपने पूर्वजों और सभ्यता-संस्कृति-संस्कारों से कट जायेगी. इन भारतीयों को इस धरती से जोड़े रखने के लिए कोशिश की आवश्यकता थी. मेरे विचार से विश्व हिंदू परिषद के निर्माण की पृष्ठभूमि इन तीन बातों के साथ बनती है.
परिषद 50 वर्ष की अपनी इस यात्र में इन उद्देश्यों को कहां तक पूरा कर पाया है?
अगर इन तीन आधारभूत बातों की कसौटी पर देखें तो हम इन पर खरे उतरे हैं. हमने एक ऐसा हिंदू समाज खड़ा किया है जिसने स्वाभिमान से जिंदा रहना सीखा है और इस स्वाभिमान के कारण उसमें ताकत आयी है. इसी ताकत के चलते सीमा-पार से आनेवाली धमकियों और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हुए हैं. 50 वर्षों के विकास के पड़ाव बहुत संतोषजनक और स्थायी हैं.
आनेवाले समय में विश्व हिंदू परिषद के सामने मुख्य चुनौतियां क्या-क्या हैं ?
अभी देश के पचास-पचपन हजार गांवों के लोगों में यह भावना स्थापित हो चुकी है कि वे विश्व हिंदू परिषद के हैं और विश्व हिंदू परिषद उनका है. सुदूर बसे हजारों गांवों में, जिनमें पहाड़ और समुद्र के पास तथा नक्सल-प्रभावित गांव भी शामिल हैं, हम गरीबों में साक्षरता अभियान चला रहे हैं. लेकिन यह देश बहुत बड़ा है. भारत के भूगोल की तुलना में हमारे संगठन का काम थोड़ा है. हमारी पूरी कोशिश है कि हम पूरे देश में अपने काम, विचार और मिशन को ले जा सकें. संगठन से जुड़े व्यक्तियों और परिवारों की संख्या बढ़ाने के लिए काम करना है. भौगोलिक, सांख्यिक और विचारधारात्मक स्तर पर विस्तार के लक्ष्य हमारे सामने हैं.
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण का एजेंडा पिछले कई दशकों से विश्व हिंदू परिषद का मुख्य लक्ष्य रहा है. आप इस प्रयास के मुख्य रणनीतिकारों में शामिल रहे हैं. कभी मंदिर को लेकर सक्रियता बहुत तेज हो जाती है और कभी ऐसा लगता है कि अब यह कोई महत्वपूर्ण लक्ष्य नहीं रहा. अभी राम जन्मभूमि आंदोलन किस मुकाम पर खड़ा है?
हमारे देश के बारे में कहा जाता है कि हम एक संप्रभुतासंपन्न राष्ट्र हैं. संप्रभुता का अर्थ होता है- स्वाभिमान. लेकिन ऐसा देश बनाने के लिए पहले ऐसे समाज का होना जरूरी है जो अपने निर्णय लेने के लिए सक्षम और स्वतंत्र हो. एक आजाद देश में गुलामी के चिह्न भी नहीं रहने चाहिए. अंगरेजों की गुलामी के चिह्न हटे, इंडिया गेट से ब्रिटिश शासक की मूर्ति हटी, चांदनी चौक से विक्टोरिया की मूर्ति हटी, इमारतों और शहरों के नाम बदले गये. अगर अंगरेजों की दासता को याद करानेवाले प्रतीक हटे, तो अंगरेजों से पहले की इसलामी दासता के प्रतीक भी हटने चाहिए. इसका प्रारंभ सरदार पटेल ने किया था. राम जन्मभूमि आंदोलन कोई नयी बात नहीं है, इसकी एक परंपरा चली आ रही है. यह लड़ाई तो तबसे चली आ रही है, जब बाबर ने वहां मंदिर तुड़वाया. इतना सतत संघर्ष किसी और समाज ने नहीं किया है, जितना अयोध्या के समाज ने किया है. 1528 से चले आ रहे संघर्ष का ही परिणाम है कि आज अदालत को भी यह कहना पड़ा है कि वहां जन्मभूमि थी, एक मंदिर था और उसे तोड़ा गया. यह बहुत बड़ी विजय है. मंदिर के स्थान पर जो मसजिद बनायी गयी, वह इसलाम की मान्यताओं के विपरीत थी और वह संपत्ति बाबर की नहीं थी. ये सारी बातें अदालत को लिखनी पड़ी. यह बड़ी महत्वपूर्ण उपलब्धि है. इस संदर्भ में जो विश्व हिंदू परिषद के प्रयास रहे, वे तो सारे हिंदू समाज के रहे. किसी भी आंदोलन में नेतृत्व की आवश्यकता होती है, बस उतनी भूमिका परिषद ने निभायी. अब हम यह चाहते हैं कि मुसलिम समाज स्वेच्छा से वह जमीन हिंदुओं को सौंप दे. यह उनकी वचनबद्धता भी है. सरकार एक कानून बना कर यह जगह हमें सौंप दे, ताकि मंदिर बन सके. भारत सरकार ने भी यह वचन दिया हुआ है कि मंदिर तोड़ने के अगर प्रमाण मिलते हैं तो हम ऐसा करेंगे. अगर इस तरह से इस विवाद का निर्णय होगा, तो देश में शांति और समृद्धि का वातावरण और बेहतर होगा.
क्या आपकी तरफ से इस संबंध में मुसलिम समुदाय तक पहुंचने का कोई प्रयास हुआ है, ताकि समस्या का समुचित और शांतिपूर्ण ढंग से समाधान हो सके?
नहीं, हमारी ओर से ऐसी कोई पहल नहीं हुई है क्योंकि यह हमारा काम नहीं है. यह काम सरकार का है. अब यह उस पर है कि वह क्या करती है.
केंद्र में नयी सरकार कार्यभार संभालने जा रही है. नयी सरकार से हिंदुओं का प्रमुख संगठन होने का दावा करनेवाले विश्व हिंदू परिषद को क्या अपेक्षाएं हैं?
सबसे पहली अपेक्षा है कि देश का सम्मान दुनिया भर में बढ़ना चाहिए. देश का सम्मान और हिंदू का सम्मान समानार्थी बातें हैं. महंगाई पर नियंत्रण सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. आज महंगाई से गरीब और मध्यम वर्ग बुरी तरह त्रस्त है. देश को और देश के युवाओं को ऐसी बातों को पढ़-सुन कर बहुत गुस्सा आता है कि कश्मीर में कोई सीमा-पार से आया और भारतीय सैनिकों का सिर काट कर ले गया. शासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई हमारी सीमा में एक कदम भी रखने की हिम्मत न करे. हम चाहते हैं कि देश आतंकवाद से मुक्त हो. देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. कश्मीर से भागने के लिए विवश कर दिये गये हिंदू सम्मान के साथ अपने घरों में लौट सकें, यह व्यवस्था सरकार को करनी होगी. जम्मू-कश्मीर में वर्षो से रह रहे जिन हिंदुओं की विधानसभा चुनावों में अभी कोई भूमिका नहीं है, उन्हें उनका राजनीतिक अधिकार मिलना चाहिए.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के चुनावी अभियान में विश्व हिंदू परिषद की क्या भूमिका रही?
विश्व हिंदू परिषद ने हिंदू समाज के प्रबुद्ध वर्ग और युवाओं को मतदान के लिए प्रेरित किया तथा कोशिश की कि इस समाज का शत-प्रतिशत मतदान हो. हमने किसी व्यक्ति या पार्टी के पक्ष में नहीं, देश के बेहतर भविष्य के लिए मताधिकार का प्रयोग करने का निवेदन किया.