<p>उत्तर प्रदेश के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) का दावा है कि उसने 10 ऐसे भारतीयों को गिरफ़्तार किया है जो पाकिस्तानी चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर काम कर रहे थे और कथित तौर पर भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए पैसे के लेनदेन में शामिल थे.</p><p>यूपी एटीएस के चीफ़ असीम कुमार अरुण ने बीबीसी को बताया है, "टेरर फ़ंडिंग के मामले में पिछले साल कुछ लोग गिरफ़्तार हुए थे, जो आईएसआई के लिए जासूसी करते थे.'</p><p>आगे वे बताते हैं, ‘उनको पैसा जिस तरह से आता था और जिन नंबरों से उन्हें फ़ोन आते थे, उनकी हम छानबीन कर रहे थे. 24 मार्च को जो गिरफ़्तारियां हुई हैं, वो पिछली साल हुई गिरफ़्तारियों का ही एक अंश है."</p><h1>पिछले मामलों से कैसे जुड़े हैं तार?</h1><p>साल 2016 में आईएसआई एजेंट तरसेम लाल और सेना की गुप्त सूचनाएं पाकिस्तान को देने वाले सतविंदर और दादू जम्मू में गिरफ़्तार हुए थे.</p><p>बलराम नाम का एक शख़्स उनकी आर्थिक मदद करता था जिसे मध्य प्रदेश से गिरफ़्तार किया गया था.</p><p>यूपी एटीएस का दावा है कि इन दोनों प्रकरणों में पाकिस्तानी हैंडलर वही था जो इस बार प्रतापगढ़ के संजय और रीवा के उमा प्रताप सिंह के संपर्क में था.</p><p>असीम अरुण ने बताया है कि गिरफ़्तार किए गए 10 लोगों में से चार लोग (उमा प्रताप, संजय, नसीम और नईम) ऐसे हैं जिन्हें सीधे पाकिस्तान से ऑर्डर मिलता था कि वो फ़र्ज़ी बैंक अकाउंट खोलें और टेरर फ़ंडिंग के लिए भारत में पैसा जमा करें.</p><p>छह लोग ऐसे हैं जो पाकिस्तान से सीधे संपर्क में नहीं थे. लेकिन वो फ़र्ज़ी बैंक खातों में पैसे का लेनदेन कर रहे थे. उन्हें लगता रहा होगा कि वो किसी मनी सप्लाई रैकेट के लिए काम कर रहे हैं लेकिन उनका पैसा भी आतंकवाद के लिए ही इस्तेमाल होना था.</p><h1>पुलिस को ये सब बरामद हुआ</h1> <ul> <li>बड़ी संख्या में एटीएम कार्ड, कई बैंकों की चेकबुक और पासबुक</li> <li>लगभग 42 लाख रुपये नगद</li> <li>6 स्वाइप मशीनें, मैग्नेटिक डेबिट कार्ड रीडर</li> <li>3 लैपटॉप, कई मोबाइल फ़ोन</li> <li>एक देसी पिस्टल और दस कारतूस</li> </ul><h1>एटीएस सही साबित कर पाएगी अपने दावे?</h1><p>भारत के अलग-अलग राज्यों में एटीएस बड़े दावों के साथ कई गिरफ़्तारियाँ करती रही है, लेकिन कोर्ट में जाकर एटीएस के दावों को कई दफ़ा ग़लत भी पाया गया या उन्हें साबित नहीं किया जा सका.</p><p>इसपर यूपी एटीएस के चीफ़ असीम कुमार अरुण ने कहा, "हम जिन चार लोगों की बात कर रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ हमारे पास पूरे सबूत हैं. हमारे पास रिकॉर्डिंग हैं. कई संदेश मिले हैं जो बताते हैं कि वो चारों पैसे के लेनदेन में शामिल थे. अगर सवाल उठता है कि क्या ये पैसा आतंकवाद के लिए ही इस्तेमाल होना था? तो हम ये दावा कर सकते हैं कि इन लोगों को पता था कि वो पैसा देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल होना है. पाकिस्तान से जो उन्हें संदेश दिए गए थे, वो भी हमें मिले हैं."</p><p>असीम अरुण ने आगे कहा कि यूपी एटीएस ने अब तक जितने मुक़दमे दायर किए हैं और जिन अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया, उनके ख़िलाफ़ पक्के सबूत पेश किए हैं और उन्हें सज़ा दिलाई है.</p><hr /><h3>अभियुक्तों की आर्थिक हालत?</h3><p>यूपी एटीएस का दावा है कि चारों मुख्य अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति बीते कुछ दिनों में काफ़ी बेहतर हुई है. इसके कुछ दूसरे कारण भी हो सकते हैं लेकिन पुलिस फ़िलहाल ये मान रही है कि उन्होंने आपराधिक माध्यमों से पैसा कमाया है.</p><p>वरिष्ठ पत्रकार कुमार हर्ष ने टेरर फ़ंडिंग मामले के मुख्य अभियुक्तों में से एक नसीम की पत्नी नाज़नीन से बात की और इस गिरफ़्तारी को लेकर नसीम के परिजनों का पक्ष जाना.</p><hr /><h3>बीते 10 सालों में कैसे बदली दो अभियुक्तों की ज़िंदगी</h3><p>नाज़नीन ने कहा, "गिरफ़्तारी एकदम ग़लत है. मेरे पति बिज़नेस करते हैं. वो काम के बाद सीधे घर आने वाले आदमी हैं. कुछ लोगों ने बिज़नेस में मिली तरक्की से जलकर मेरे पति और देवर को फंसाया है. हम उन लोगों को जानते हैं लेकिन अभी उनका नाम नहीं बता सकते."</p><p>साल 2003 में नाज़नीन की नसीम से शादी हुई थी. उनका कहना है कि परिवार को नसीम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही. पुलिस ने उन्हें अज्ञात जगह पर क़ैद कर रखा है.</p><p>गोरखपुर में रहने वाले नसीम अहमद और उनके छोटे भाई नईम अरशद के बारे में उनके कुछ संबंधियों ने बताया कि बीते 10 सालों में दोनों भाइयों ने सभी पुराने परिचितों और करीबी रिश्तेदारों से दूरी बना ली थी.</p><p>2002 में गोरखपुर के मियां बाज़ार इलाक़े में नसीम ने एक इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स की दुकान खोली थी.</p><p>बाद में 2008 में दोनों ने गोलघर के बलदेव प्लाज़ा में मोबाइल का कारोबार शुरू किया.</p><p>क़रीब तीन साल पहले रेती रोड के सुपर मार्केट में नईम ने 6 दुकानों का एक बड़ा शोरूम भी खोला. दोनों भाइयों के पास शहर में एक अपार्टमेंट के अलावा कई और प्रॉपर्टी भी थीं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43083022">समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट: कब-कब क्या-क्या हुआ</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42771454">’कभी इंजीनियर था, फिर बन गया बम एक्सपर्ट'</a></li> </ul><p>पिछले दिनों शहर की एक पॉश कॉलोनी हरि ओम नगर में वह एक आलीशान मकान बनवा रहे थे जिसका फ़िलहाल नक्शे (लेआउट) के ख़िलाफ़ बनाए जाने के आरोप में प्राधिकरण द्वारा काम रोक दिया गया था.</p><p>नसीम की दुकान के आसपास के लोग उनके बारे में बात करने से बच रहे हैं.</p><p>हालांकि उनमें से कुछ का कहना है कि जिस तरह ये दोनों भाई चाइनीज़ मोबाइल सेट को बेहद कम क़ीमत पर बेचते थे उससे समझ में नहीं आता था कि आख़िरकार उनकी कमाई होती कैसे है.</p><p>लग्ज़री गाड़ियों और विदेश यात्राओं के दौरान ली गई तस्वीरें उनके फ़ेसबुक अकाउंट में मौजूद हैं. इनसे दोनों भाइयों के शौक़ीन होने का अंदाज़ा मिलता है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक </a><strong>करें. आप हमें </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</strong></p>
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लश्कर से संबंध के आरोप में गिरफ़्तार- उमा, संजय, नीरज और ये सात
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