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वाराणसी में मुकाबला अब केजरीवाल व मोदी के बीच

वाराणसी : आध्यात्मिक नगरी वाराणसी में इस बार राजनीतिक मुकाबला दिलचस्प है. मैदान में एक ओर भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हैं, तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल. कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय भी मैदान में हैं. इसलिए मुकाबला त्रिकोणीय होने की बात कही जा रही थी, लेकिन चढ़ते राजनीतिक पारे […]

वाराणसी : आध्यात्मिक नगरी वाराणसी में इस बार राजनीतिक मुकाबला दिलचस्प है. मैदान में एक ओर भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हैं, तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल. कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय भी मैदान में हैं. इसलिए मुकाबला त्रिकोणीय होने की बात कही जा रही थी, लेकिन चढ़ते राजनीतिक पारे से स्पष्ट हो गया है कि मुकाबला संभवत: मोदी व केजरीवाल के बीच ही है.

पिछले तीन सप्ताह से यहां केजरीवाल समर्पित कार्यकर्ता की तरह डेरा डाले हैं. यही वजह है कि ह्यआपह्ण नेता के समर्थकों में बढ़ोतरी में हुई है. मुसलमानों के एक अग्रणी संगठन जमात-ए-इसलामी-ए-हिंद ने भी केजरीवाल को समर्थन देने का एलान किया है. संगठन के अमीर-ए-जमात (मुखिया) मौलाना सैय्यद जलालुद्दीन उमरी ने कहा, हमने यह निर्णय जमीनी हकीकत पर गहन विचार- विमर्श के बाद लिया है. हम विघटनकारी ताकतों की साजिश को नाकाम करने के लिए यह जरूरी मानते हैं कि सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतें यहां केजरीवाल का साथ दें.

कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय की क्षेत्र पर पकड़ मजबूत है, पर अचानक पीछे हो गये हैं. वैसे इसके कई कारण हो सकते हैं. मसलन जाति व समुदाय, भारतीय चुनाव को जानने के पारंपरिक तरीके आदि. मुसलिम वोट बैंक का एकतरफा होना, सीमांत वर्ग के लोगों का असंतुष्ट होने के साथ ही मध्य वर्ग के लोगों की मोदी के प्रति शिथिलता कुछ और ही बयां कर रही है. शायद यही वजह है कि केजरीवाल ने कहा कि खेल अब शुरू हुआ है.

आप के समर्थन में देश के विभिन्न हिस्सों से पेशेवर, छात्र, गृहणियां व सामाजिक कार्यकर्ता धर्मशालाओं, होटलों और परिचितों के घरों में पिछले एक सप्ताह से डेरा जमाये हुए हैं. ये कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल द्वारा दिल्ली में किये गये प्रयोग के मुताबिक शहर की सड़कों व गलियों समेत गांवों में भी परचे, टोपी वितरित करने के साथ मोदी के प्रति लोगों को आगाह कर रहे हैं.

केजरीवाल द्वारा अक्सर कहे जाने वाले वाक्य कि आम आदमी पार्टी शिव की बारातह्ण है, यहां यह देखने को मिल रहा है. सारी बातों के बाद मोदी की चर्चा भी कम नहीं है. वैसे वाराणसी किसे स्वीकार करता है, यह तो 16 मई को ही पता चलेगा, पर कौन इनकार कर सकता है कि बनारस में ऐसा टकराव पहले नहीं देखा था.

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