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यंत्र और गांधीजी का जंतर

अमूमन हम किसी मशीन या उपकरण को यंत्र कहते हैं जो विभिन्न कामों में हमारे मददगार होते हैं. संस्कृत में ‘यन्त्र्’ क्रिया का अर्थ है- नियंत्रण में करना, दमन करना, रोकना, बांधना, कसना, बाध्य करना. यन्र्त् से संज्ञा बनती है यन्त्र. यन्त्र में मूल रूप से नियंत्रण और बल का अर्थ है. लेकिन इसे विशिष्ट […]

अमूमन हम किसी मशीन या उपकरण को यंत्र कहते हैं जो विभिन्न कामों में हमारे मददगार होते हैं. संस्कृत में ‘यन्त्र्’ क्रिया का अर्थ है- नियंत्रण में करना, दमन करना, रोकना, बांधना, कसना, बाध्य करना. यन्र्त् से संज्ञा बनती है यन्त्र. यन्त्र में मूल रूप से नियंत्रण और बल का अर्थ है. लेकिन इसे विशिष्ट अर्थ मिलता है ऐसी युक्ति या उपकरणों से, जो किसी खास काम को साधने में हमारी मदद करें.

विभिन्न किस्म के बाजे हों या चीर-फाड़ के औजार या बंदूक या फिर छप्पर को थामनेवाली थूनी या खंभा, सभी यंत्र हैं. कसने या बांधने के लिए इस्तेमाल होनेवाली पट्टी, तस्मा, बेड़ी भी यंत्र हैं. किसी चीज को मजबूती से बंद करने के लिए इस्तेमाल होनेवाला ताला, चटकनी वगैरह भी यंत्र हैं. लेकिन, यंत्र सिर्फ बिल्कुल ठोस मशीनी शक्ल में हो, यह जरूरी नहीं. उदाहरण के लिए, विभिन्न कार्य सिद्ध करने के लिए तांत्रिक लोग यंत्र बनाते हैं. इसमें विशिष्ट प्रकार से बने हुए आकार या कोष्ठक होते हैं जिनमें कुछ अंक या अक्षर आदि लिखे रहते हैं. इनमें देवताओं का निवास माना जाता है और इन्हें ताबीज के रूप में हाथ या गले में पहना जाता है. आम जबान में लोग ऐसे यंत्र को जंतर भी कहते हैं. गांव-देहात में जादू-टोना करने को जंतर मारना भी कहते हैं. इसका मकसद किसी को अपने वश या नियंत्रण में करना अथवा उसका दमन करना होता है. गौरतलब है कि ‘यन्त्र’ क्रिया का अर्थ भी यही है.

गांधी जी ने हमें ‘अंतिम आदमी’ को याद करने का एक जंतर दिया था जो आज भी एनसीइआरटी की किताबों के आवरण पर छपता है. यहां उनका जंतर उस यंत्र के रूप में है जो किसी संशय की स्थिति से पार पाने में हमारी मदद करता है. गांधी जी का यह जंतर हमें भौतिकता से निकाल कर लोक -कल्याण के लिए प्रेरित करता है. लेकिन, आज जब समाज में भौतिकता चरम पर है, टेलीशॉपिंग के विज्ञापनों में भांति-भांति के बाबा तरह-तरह के यंत्र दिन-रात बेचते नजर आते हैं. कोई श्री-यंत्र बेच रहा है, कोई धनवर्षा-यंत्र, तो कोई मनोकामनापूर्ति-यंत्र.

दिल्ली समेत कई शहरों में बने जंतर-मंतर, वेधशालाएं हैं. इनका रिश्ता शुद्ध रूप से खगोल विज्ञान से है. लेकिन जंतर-मंतर शब्द भ्रम पैदा करता है. यह यंत्र-मंत्र का तद्भव रूप है और यंत्र-मंत्र का इस्तेमाल जादू-टोना के लिए होता है. लेकिन यहां यंत्र से आशय खगोलीय उपकरणों से है. वेधशाला के लिए प्राचीन ग्रंथों में यंत्रगृह शब्द भी मिलता है. जंतर-मंतर नाम के पीछे पुराने समय में ज्योतिष और खगोल शास्त्र का घाल-मेल हो सकता है. ज्योतिष को लोभी पंडितों ने टोने-टोटके के बराबर ही तो बना कर छोड़ा है!

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