बेगम एयाज रसूल (1908-2001)
इनके पिता ने इनके राजनीति में आने का समर्थन किया. जबकि परिवार के अन्य लोग इस बात के खिलाफ थे. जब 1935 में इन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की, तो वह उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में एक सदस्य बन गयीं. तब उनके खिलाफ एक फतवा जारी हुआ कि ने सार्वजनिक जीवन में नहीं जा सकतीं, लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया. बाद में बेगम और उनके पति दोनों 1935 के बाद मुस्लिम लीग में शामिल हो गये और 1937 में बेगम एयाज रसूल को एक गैर आरक्षित सीट से अपना पहला चुनाव जीतने में कामयाबी मिली. लेकिन संविधान सभा के बहस में उनकी उपस्थिति से उनकी राष्ट्रीय प्रमुखता साबित की.
भारत के विभाजन के साथ, मुस्लिम लीग के कुछ ही सदस्य भारत की संविधान सभा में शामिल हुए. बेगम एयाज रसूल को प्रतिनिधिमंडल के उप नेता और संविधान सभा में विपक्ष के उप नेता के तौर पर चुनी गयी थीं.