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मैं हमेशा से ही अपनी चित्तियों को लेकर बेहद संकोची रही हूं.
मुझे आज भी वो चिलचिलाती गर्मियों के दिन याद हैं जब मैं आठ साल की थी और मेरे दादा बगीचे में बैठे थे. बेहद गर्मी होने के बावजूद मैंने अपना कार्डिगन हटाने से इंकार कर दिया था क्योंकि मेरे बाएं कंधे पर चॉकलेट के रंग की चित्तियां थीं जिससे न जाने क्यों मैं घृणा करती थी.
एक और याद जो मेरे साथ है, जब मैं 14 साल की थी तब एक गणित की कक्षा में मेरे पीछे एक लड़की बैठी थी जो ये कह रही थी, "अरे, कान के पीछे इन चित्तियों को देखो! ये कितने अजीब हैं." तब मैंने जल्दी से अपना सिर हिला दिया ताकि वो चित्तियां मेरे बालों से, जो पहले बंधे हुए थे, ढक जाएं.
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जब से मेकअप के लायक बड़ी हुई, मैंने वैसे फाउंडेशन, कंसीलर और ब्रॉन्ज़र को ढूंढना शुरू कर दिया जो सबसे गाढ़े हों और जो मेरी इन चित्तियों को छुपा सकें. सालों तक मैं अपने चेहरे पर चारों ओर फैले धब्बों को छिपाने के लिए फाउंडेशन, कंसीलर और ब्रॉन्ज़र की कई परतें लगाती रही.
बॉयफ़्रेंड बड़ी समस्या थे; मैं कैसे अपने मेकअप को हटा कर उनके सामने सहज महसूस करती? मैं अक्सर केवल अपने आंखों के मेकअप ही हटाती, ताकि उन्हें लगे कि यही मेरी सामान्य त्वचा है.
फ़ोटोग्राफ़र ब्रॉक एल्बैंक इन चित्तियों को बिल्कुल ही अलग अंदाज में देखते हैं. उन्होंने अपने सिम्पली फ़्रेकल्स (केवल चित्तियां) नाम के प्रोजेक्ट के लिए लोगों को चित्तियों के साथ फ़ोटो देने को कहा, जिसमें वो अपने शरीर पर छोटे से छोटे तिल, दाग, धब्बे का जश्न मनाते हुए दिखें.
सफ़ल व्यावसायिक और फ़ैशन फ़ोटोग्राफ़र ब्रॉक ने ऑस्ट्रेलिया में रहते हुए 2012 में इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया. उनका यह प्रोजेक्ट उनके दोस्त के बेटे से प्रेरित है, जिन्हें असाधारण चित्तियां थीं.
जैसे ही इस प्रौजेक्ट की ख़बर फ़ैलना शुरू हुई, लोग अपनी इच्छा से हज़ारों की संख्या में इसमें भाग लेने के लिए पहुंचने लगे.
ब्रॉक कहते हैं, "6000 से अधिक आवेदन थे और मैंने कुल 177 लोगों की तस्वीरें खींचीं. उनमें से बहुतों ने कहा कि जैसे वो दिखते हैं उन्हें उससे नफ़रत है."
उनकी इस भावना से मैं खुद को जुड़ा हुआ पाता हूं. एक साल पहले ही मुझमें इतना साहस आया कि मैं बिना मेकअप रह सकूं. पिछले साल सितंबर में छुट्टियों के पहले दिन फ़्लोरिडा में चिपचिपाती गर्मी को नज़रअंदाज करते हुए मैंने उसी फ़ाउंडेशन का इस्तेमाल किया जो मैं करता आया हूं.
जैसे ही मैं बाहर निकला मुझे पसीने आने लगे और एक घंटे के भीतर मुझे लगा कि मेरा मेकअप चेहरे से फ़िसल रहा था. मैं इसे सहन नहीं कर सका. मुझे चिपचिपाहट और चेहरे पर कुछ जमा हुआ सा महसूस हुआ.
इसके बाद मैंने इस तथ्य को स्वीकारा कि मुझे मेकअप छोड़ देना चाहिए.
जैसे सुबह बिना कपड़ों के उठने पर हम महसूस करते हैं, ये कुछ उसी प्रकार था जब मैंने अपने होटल के कमरे से बिना मेकअप बाहर कदम रखा.
मुक्त होने जैसा महसूस हो रहा था. अपने गालों पर सन स्क्रीन लगाने की चिंता किए बगैर. सप्ताह ख़त्म होते-होते मेरी चित्तियां बढ़ गईं. मानो वो सूरज की रोशनी के साथ खेलने के लिए बाहर निकल आई हों.
पिछले 10 सालों के दौरान मैंने कभी बिना पूरा फ़ाउंडेशन लगाए घर के बाहर कदम नहीं रखा. मैंने इसके बाद से अपनी चित्तियों को दिखाने का फ़ैसला किया.
मैं काम पर गया और इंतजार किया कि लोग इसे देखें और अपनी चीखें निकालें, मेरे पीठ पीछे बोलें. लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ.
रात को घर पर सोते हुए मैंने यह सोचा कि भला इतने लंबे अरसे तक मैंने इन चित्तियों को क्यों छुपाया.
ऐसा लगता है कि मुझे ब्रॉक एल्बैंक की सिरीज़ पहले देखनी चाहिए थी.
ब्रॉक कहते हैं, "मुझे चित्तियां हमेशा पसंद थीं, ये मुझे अपनी ओर खींचती रही हैं. मैंने 3 साल से लेकर 73 साल तक के बुजुर्ग की तस्वीरें लीं."
हालांकि, इनमें से कइयों ने कहा कि चित्तियों को स्वीकार करना एक चैलेंज के समान है.
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