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एक सड़क के लिए जब 300 लोग बन गए ‘मांझी’

बिहार के दशरथ मांझी तो याद ही होंगे आपको, जिन्होंने पहाड़ तोड़कर सड़क बना दी थी. कुछ इससे मिलता-जुलता झारखंड में भी हुआ है. वह अलसायी-सी सुबह थी. लातेहार के शहरी इलाक़े में रहने वाले लोग अभी जगे भी नहीं थे. तभी रांची-लातेहार हाइवे से सटे केंद्रीय विद्यालय के पास ट्रैक्टर पर सवार कुछ लोग […]

बिहार के दशरथ मांझी तो याद ही होंगे आपको, जिन्होंने पहाड़ तोड़कर सड़क बना दी थी. कुछ इससे मिलता-जुलता झारखंड में भी हुआ है.

वह अलसायी-सी सुबह थी. लातेहार के शहरी इलाक़े में रहने वाले लोग अभी जगे भी नहीं थे. तभी रांची-लातेहार हाइवे से सटे केंद्रीय विद्यालय के पास ट्रैक्टर पर सवार कुछ लोग पहुंचे. फिर दूसरा ट्रैक्टर आया, फिर तीसरा, चौथा और यह गिनती बढ़ती चली गई.

देखते ही देखते वहां सैकड़ों ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई. इन लोगों ने आपस में बातचीत की. हंसी-ठहाके लगे और फिर शुरू हो गया वह अभियान, जिस कारण यहां की तीन पंचायतों के लोग इन दिनों चर्चा में हैं.

दरअसल, लातेहार प्रखंड की मोंगर, डेमू और पेशरार पंचायतों के अधीन आने वाले एक दर्जन गांवों के लोगों ने श्रमदान की बदौलत लातेहार-रिचुगुटू सड़क की मरम्मत सिर्फ़ एक दिन में कर ली. इस दौरान भोज भी हुआ. वह तारीख़ थी चार अक्टूबर, दिन-बुधवार.

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कैसे चला अभियान

इस काम में लगने वाले लोग निंदिर, हरखा, मोंगर, सेमरी, पेशरार, रिचुगुटू, कुदाग, तुरीडीह, बारीहातू, रेहलदाग आदि गांवों के थे. यह सड़क इन्हीं गांवों से गुज़रती है.

मुखिया जी के उपनाम से प्रसिद्ध मोंगर के राजेंद्र साह ने बीबीसी को बताया कि ग्रामीण अभियंत्रण विभाग (आरइओ) ने सालों पहले लातेहार-रिचुगुटू सड़क का निर्माण कराया था.

यह लातेहार को लोहरदगा ज़िले से जोड़ने का सबसे संक्षिप्त रूट है. रांची-लातेहार हाइवे के बगल में स्थित केंद्रीय विद्यालय से शुरू होने वाली यह सड़क 13 किलोमीटर लंबी है.

इससे रोज़ हज़ारों लोगों का आवागमन होता है, क्योंकि इस सड़क से लोहरदगा जाने मे समय और पेट्रोल दोनों की बचत होती है, लिहाज़ा इस पर ट्रैफिक अधिक है.

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सबने सहयोग किया

पंचायत समिति के सदस्य पिंटू रजक ने बीबीसी से कहा, "कुछ सालों से यह सड़क काफ़ी ख़राब हो चुकी थी. बार-बार आग्रह के बाद भी जब सरकार ने इसकी मरमम्त नहीं कराई तो हम लोगों ने पिछले सप्ताह इसकी मरमम्त ख़ुद कराने का निर्णय लिया.

दो दिन गांव वालों की बैठक हुई. इसमें श्रमदान की तारीख़ तय कर ली गई. फिर हमलोग जुटे और टुकड़ियों में बंटकर सड़क पर मोरंग, सुरखी आदि भरकर इसे चलने लायक बना दिया."

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निंदिर गांव के सरफ़ुद्दीन मियां ने बताया कि ग्रामीणों की बैठक के दौरान ही सहयोग की बात तय हो गई. जिसके पास जो था, उन्होंने वो दिया. तुरीडीह के अनिल गुप्ता ने चार जेसीबी मशीन और 23 ट्रैक्टरों की व्यवस्था करा दी.

गांव वाले कुदाल और टोकरी लेकर आ गए. मोरंग और सुरखी (पक्की ईटों का बुरादा) का इंतज़ाम हुआ और सड़क मरम्मत का काम शुरू हो गया. सबके खाने का इंतजाम भी गांव वालों ने आपसी सहयोग से किया.

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300 मज़दूर, 12 घंटे

मैंने इस सड़क पर पूरे 13 किलोमीटर तक सफ़र कर इसका हाल जाना. इस दौरान मिले उमानाथ सिंह और कन्हाई सिंह ने मुझे बताया कि इस अभियान में 300 ग्रामीणों ने एक साथ श्रमदान किया.

क़रीब 12 घंटे के अभियान के दौरान इस सड़क के टूट चुके हिस्सों को मोरंग, सुरखी, मिट्टी आदि से भरकर समतल कर दिया गया.

औरंगा नदी इस सड़क को मोंगर गांव में दो हिस्से में बांटती है. इस पर बना पुल का कुछ हिस्सा धंस गया है. यहां मिले मथुरा प्रजापति ने बीबीसी को बताया कि इस पुल की मरम्मत अति आवश्यक है. यह कभी भी टूट सकता है. ऐसे में इस सड़क की मरम्मत का कोई फ़ायदा नहीं मिल सकेगा.

सरकार बनवाएगी सड़क

लातेहार के उप विकास आयुक्त अनिल कुमार सिंह ने कहा कि वो ग्रामीणों के अभियान की सराहना करते हैं, लेकिन लातेहार-रिचुगुटू सड़क की मरमम्त का डीपीआर तैयार कराया जा चुका है. बहुत जल्दी हम इसका टेंडर करने वाले हैं. इसके बाद इसका निर्माण शुरू करा देंगे.

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