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नरम दिल सहिया व कड़क मुखिया हैं पानो

वीरेंद्र कुमार सिंह सिंहभूम पूर्वी जिले के पोटका प्रखंड अंतर्गत पोटका पंचायत की मुखिया पानो सरदार को संपूर्ण प्रखंड क्षेत्र के लोग जानते हैं. पानो सरदार को लोग इसलिए नहीं जानते कि वह एक मुखिया हैं. बल्कि मुखिया से ज्यादा लोग उन्हें सहिया के रूप में जानते हैं. हालांकि पानो सरदार सरमंदा ग्राम पंचायत की […]

वीरेंद्र कुमार सिंह

सिंहभूम पूर्वी जिले के पोटका प्रखंड अंतर्गत पोटका पंचायत की मुखिया पानो सरदार को संपूर्ण प्रखंड क्षेत्र के लोग जानते हैं. पानो सरदार को लोग इसलिए नहीं जानते कि वह एक मुखिया हैं. बल्कि मुखिया से ज्यादा लोग उन्हें सहिया के रूप में जानते हैं. हालांकि पानो सरदार सरमंदा ग्राम पंचायत की सहिया हैं. परंतु प्रखंड की किसी भी पंचायत की सहिया व उनके क्षेत्रों के मरीजों की कोई समस्या हो तो उसके समाधान के लिए वे आगे रहती हैं. यही कारण है कि प्रखंड क्षेत्र के लोग उन्हें सहिया दीदी के नाम से पुकारते हैं. जिस पंचायत की ये मुखिया हैं उसी पंचायत के सरमंदा गांव में इनका घर है, तथा सरमंदा ग्राम की ही ये सहिया हैं.

पानो सरदार ने 2005 में मैट्रिक तथा 2007 में स्थानीय इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. पढ़ाई के दौरान ही वे समाज सेवा से जुड़ गयीं. 2006 में वे सर्वप्रथम ट्राइबल कल्चरल सोसाइटी से जुड़ कर वैसे लोगों के बीच शिक्षा का प्रकाश फैलाती रहीं, जिनके पास साधन कुछ भी नहीं था. समाज के ड्रॉप आउट युवा एवं वृद्धों को वे शिक्षित करती रहीं. मैट्रिक तक के ड्राप आउट छात्रों को वे पढ़ाती रहीं.

2006-2007 में सरमंदा के ग्रामीणों ने पानो सरदार को ग्रामसभा के द्वारा सहिया के रूप में चयनित किया. तब से अभी तक सहिया के रूप में सरमंदा के ग्रामीणों को वे सेवा दे रही हैं. सरमंदा गांव में लगभग 300 परिवार हैं. स्वास्थ्य संबंधी सेवा देकर ग्रामीणों के बीच पानो सरदार ने एक अलग पहचान बनायी है. वे कहती हैं कि मेरा लक्ष्य है कि अपने गांव को बीमारी से दूर भगाना है. प्रसव के लिए महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने में उनकी भूमिका अहम रहती है. कभी-कभी तो अस्पताल प्रबंधन से उनकी झड़प भी हो जाती है. चूंकि अस्पताल के कर्मचारी कभी नहीं चाहते कि कोई मरीज देर रात में आये. लेकिन मरीज के प्रसव के मामले में वे समय का इंतजार नहीं करती हैं. ममता वाहन को वे झट से खबर करती हैं व मरीज को लेकर अस्पताल में हाजिर हो जाती हैं. अगर यह कहा जाए कि अस्पताल प्रबंधन भी इनसे परेशान रहता है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

पानो बताती हैं कि सहिया के कार्य के लिए मुङो मेहमान घर भी छोड़ना पड़ता है. मैं अपने कर्म के प्रति उत्तरदायी हूं. इसलिए पहले प्रसूता महिला को अस्पताल पहुंचाना मेरा कर्तव्य बनता है. अगर ट्रेनिंग के लिए प्रखंड या जिले में जाना पड़ता है, तो किसी दूसरी महिला को इस कार्य के लिए उत्तरदायित्व देती हैं. किसी भी सरकारी कार्यक्रम में इन्हें अनुपस्थित नहीं देखा गया. सहियाओं को जब भत्ता भुगतान में विलंब होता है, तो तुरंत इसकी शिकायत वे प्रभारी से करती हैं. प्रखंड की सभी सहिया इन्हें सहिया नेता मानते हैं.

तीन साल पूर्व जब मुखिया का चुनाव हुआ, तो पंचायत के लोगों ने पानो सरदार को मुखिया के रूप में चयनित किया. बारह उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. तीन सौ दस मतों के फासले से वे चुनाव जीत गयीं. मुखिया में चयन क्या हुआ, इनके अंदर दोगुणी ऊर्जा आ गयी. जिस तरह सहिया का कार्य वे जिम्मेवारी से निभाती थीं, मुखियागिरी भी बिना तनाव के करने लगीं. मुखिया बनने के बाद सर्वप्रथम पानो सरदार ने महिलाओं का ध्यान रखा. प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय के प्रांगण का समतलीकरण कराया. इसके बाद टांगरसाई में स्थित आंगनबाड़ी केंद्र के समीप एक गड्ढे का समतलीकरण कराया. गड्ढा में हमेशा पानी भरा रहता था.

पंचायत के अंतर्गत विद्यालय, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य उपकेंद्र की भी जांच समय-समय पर वे करती हैं. सरमंदा गांव स्थित मध्य विद्यालय में एक मुखिया के पति की हाजिरी काटने में उन्होंने जरा भी कोताही नहीं बरती. वे मुखिया-उपमुखिया समन्वय समिति की पदाधिकारी भी हैं. इतना ही नहीं जिस मुखिया के पति की हाजिरी उन्होंने काटी, वह मुखिया भी पानो सरदार की सहेली हैं. जब पानो सरदार के पति ने इस मामले में हस्तक्षेप किया तो उनका स्पष्ट जवाब था कि गलती कोई भी करे उसे बरदाश्त नहीं किया जायेगा. इस तहर पोटका पंचायत की मुखिया पानो सरदार मुखिया के साथ-साथ जुझारू सहिया भी हैं.

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