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हजारीबाग के चौपारण में मिले ढाई हजार साल पुराने अवशेष, पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है क्षेत्र

हजारीबाग जिले का चौपारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के एक बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो सकता है. रविवार को एक बार फिर पूरा इलाका अति प्राचीन पुरातात्विक अवशेषों से भरे पड़े होने का गवाह बना. जांच के दौरान चौपारण में ढाई हजार साल पुराना NBPW अवशेष मिला है.

Hazaribagh news: हजारीबाग जिले का चौपारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के एक बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो सकता है. रविवार को एक बार फिर पूरा इलाका अति प्राचीन पुरातात्विक अवशेषों से भरे पड़े होने का गवाह बना. दरअसल, विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांति निकेतन पश्चिम बंगाल और आईएसएम धनबाद के वैज्ञानिकों ने प्रखंड के दैहर, सोहरा, हथिंदर एवं मानगढ़ के सभी पौराणिक स्थलों का भू-वैज्ञानिक सर्वे किया. बकायदा जीपीआर से सभी स्थलों का स्कैनिंग किया गया. इसमें प्रथम चरण में कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. जांच के दौरान इन गांवों के भूमि के बडे इलाके में सैकड़ों साल पुराने पौराणिक अवशेष दबे पड़े होने की साक्ष्य सामने आए हैं.

जांच के दौरान मिला ढाई हजार साल पुराना NBPW

जांच के दौरान मानगढ़ में लगभग ढाई हजार साल पुराने एनबीपीडब्ल्यू (NBPW) बरामद किए गए. जांच का नेतृत्व विश्व भारती विश्वविद्यालय के डॉक्टर अनिल कुमार तथा आईआईटी आईएसएम धनबाद के डॉ संजीत कॉल डॉ. अंशु माली की टीम संयुक्त रूप से कर रहे थे. जांच के दौरान दैहर के कमला माता मंदिर के आसपास इलाके का वैज्ञानिक तरीके से ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार के माध्यम से पूरे इलाके के जमीन का स्कैन किया गया. इसमें भूतल में दबे हुए बड़े मलबे की जानकारी हुई है.

सोहरा में भी इसी तरह के साक्ष्य आये सामने

सोहरा में भी इसी तरह के साक्ष्य सामने आए हैं.सबसे चौंकाने वाला परिणाम हथिंदर से आया है.जहां 100 फीट से अधिक के इलाके में बड़ा मलबा दबा होने का प्रमाण मिला है. मानगढ़ में पाए गए बौद्ध स्तूप के नीचे भी बड़े इलाके में धरा के नीचे बडे मलबे होने विशेष की जानकारी मिली है. इन गांवों की विशेषता यह है कि सभी बडे माउंट पर स्थित है.

3 सालों तक विशेष परीक्षण किया जाएगा

इस संबंध में जानकारी देते हुए डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि केंद्र सरकार के विज्ञान और तकनीक विभाग के द्वारा साइंटिफिक हेरिटेज रिसर्च इनोवेशन परियोजना के तहत पीएमओ के निर्देश पर नए प्रोजेक्ट के तहत मुहाने नदी के आसपास के इलाकों के वैज्ञानिक तरीके से परीक्षण करने की योजना संचालित हो रही है. इसमें इटखोरी मुहाने नदी से बोधगया तक लगातार 3 सालों तक विशेष परीक्षण किया जाएगा. इस परीक्षण के तहत ही भू भौतिकी विभाग और इतिहासकार सभी पौराणिक तथा पुरातात्विक महत्व के स्थलों का निरीक्षण कर केंद्र सरकार को सौंपेंगे. इसमें तकनीक का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक तरीके से जांच हो रहा है.

पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की संभावना

सहयोगी के रुप में रिसर्च स्कॉलर देवासीष साहू, मनीष यादव, देवाजित घोष लागातार सक्रिय रहे है. धीरे-धीरे इन इलाकों के पौराणिक महत्व का दायरा बढ़ता चला जा रहा है. इसी कड़ी में दिल्ली से भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम ने दौरा किया. बाद में इन स्थलों में भरे पड़े पुरातात्विक अवशेषों की महत्ता से जगत को परिचय कराया. ऐसे में इन क्षेत्रों के पर्यटन स्थल पर विकसित होने की संभावना है. हालांकि सभी साक्ष्य तथा जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाने हैं.

कैसे होता है भू-भौतिकी सर्वेक्षण

मिट्टी के नीचे दफन पुरातात्विक अवशेषों की जानकारी प्राप्त करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने नई तकनीक का सहारा लिया है. इस नई तकनीक के तहत जीपीआर मशीन से भू-भौतिकी सर्वेक्षण किया जाता है. आईआईएम विश्वविद्यालय धनबाद में भू-भौतिकी विभाग के विभागीय प्रमुख संजीत कुमार पाल ने बताया जीपीआर मशीन से इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सिग्नल तथा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी जमीन के नीचे भेजी जाती है. जीपीआर मशीन से सिग्नल भेजने के बाद नीचे से रिफ्लेक्शन प्राप्त होता है. संबंधित स्थल में जमीन के अंदर अगर कोई प्राचीन स्ट्रक्चर मौजूद है. तो जीपीआर मशीन को हाई रिफ्लेक्शन प्राप्त होता है. जिसकी विभिन्न तकनीकों से जांच होती है. बताया गया है कि इस तकनीक के सहारे कम खर्च में जमीन के नीचे दफन पुरातात्विक अवशेषों का पता आसानी से लगा लिया जाता है.

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