सिलीगुड़ी. जैसे-जैसे सिलीगुड़ी एक छोटे कस्बे से शहर और शहर से मेट्रो सिटी में तब्दील हुआ है वैसे-वैसे ही यहां की आबादी भी तेज रफ्तार से बढ़ी . आबादी बढ़ने के साथ ही सिलीगुड़ी में बेरोजगारी का ग्राफ भी काफी बढ़ा है. आलम यह है कि अब भूखमरी जैसी समस्याएं भी सामने आ रही है. इस तरह की समस्याएं सिलीगुड़ी के सड़कों पर दिनभर मंडराते नौनिहाल मासूम बच्चों को देखकर ‘सड़क पर भारत का भविष्य’ का एहसास होता है.ऐसे बेबस और लाचार बच्चें जिन्हें ‘सड़क का बच्चा’ भी कहा जाता है,कई तरह की समस्याओं से ग्रसित हैं.
सड़क के बच्चों पर न तो किसी की छाया होती है न ही छत और न ही कोइ ठिकाना. उछल-कूद करने, खेलने और पढ़ाई-लिखाई करने के समय में ये बेबस बच्चे अपना पेट पालने की चिंता में ही अपना बचपन गंवाने को मजबूर हैं. पापी पेट के लिए इन्हें दिनभर सड़कों पर भीख मांगते या कचरा बीनते देखा जा सकता है. हर दिन दो वक्त की रोटी के जुगाड़ हेतु इन बच्चों को कई तरह की चुनौतियों को झेलना पड़ता है. कड़ी धूप हो या बारिश,सड़क के ये बच्चे दिनभर दो पैसे के लिए लोगों से गुहार लगाते हर कहीं देखे जा सकते हैं.
समाज हो या फिर सरकार सभी इन्हें देखकर भी अनदेखी कर देते हैं. इन नौनिहालों पर न तो किसी को माया आती है और न ही ममता. अधिकतर जगहों पर ऐसा भी देखने को मिलता है जैसे ही ये बच्चे लोगों के पास भीख मांगने जाते है दुत्कार दिये जाते हैं या फिर धक्का देकर सड़कों पर गिरा दिये जाते हैं. आज देश काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है. आज भारत आर्थिक रूप से हो या फिर सामरिक हर दृष्टि से विश्व को चुनौती दे रहा है. ऐसा भी नहीं है कि सरकार इन मासूमों को लेकर कोई कल्याणकारी योजनाएं नहीं बना रखी हैं. बाल विकास, सर्व शिक्षा मिशन, सबूज साथी जैसे कई कल्याणकारी योजनाएं भी केंद व राज्य सरकार की ओर से चलाये जा रहे हैं. इन योजनाओं के प्रचार-प्रसार हेतु प्रत्येक वर्ष सरकारें करोड़ों-अरबों रूपये पानी के तरह बहाती है. लेकिन इन योजनाओं का सीधा लाभ सड़क के इन बच्चों को नहीं मिलता. हर सुख-सुविधाओं से ये बच्चे वंचित रहते हैं.
इन असहाय और लाचार बच्चों के विकास और संरक्षण हेतु देश में कई सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाएं व होम भी हैं जो इन बेबस बच्चों के सहारे अपना नाम और कमाई का धंधा चला रहे हैं. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं व हरेक सुविधाओं से ये सड़क के बच्चे आखिर क्यों वंचित हैं, क्यों शिक्षा से दूर किया जा रहा है, क्यों इनका बचपन छीना जा रहा है इस ओर सोचनेवाला कोई नहीं. अगर इन बेसहारा बच्चों पर जरा सा भी ध्यान दिया जाये तो इन्हीं में से संभवतः कोई भारत का भविष्य भी बन कर उभर सकता है.
परिवार की गरीबी सबसे बड़ी परेशानी
श्री साहा ने बताया कि अधिकांश सड़क के बच्चे बेसहारा नहीं है. अधिकतर का परिवार है. वह अपने मां-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ही यहां रहते है. लेकिन सड़क पर भिक्षाटन करना उनके परिवार की आर्थिक कमजोरी है. ऐसे गरीब परिवार के लिए भी सरकार की ओर से एक बाल कल्याणकारी योजना है. जिसके तहत बच्चों के लालन-पालन, खेल-कूद और शिक्षा के साथ-साथ रोजगार का काम भी सिखाया जाता है. यह योजना सरकार की 100 दिन रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत आता है. इस योजना को जो परिवार लेता है सरकार से उस परिवार कई तरह का लाभ और सुविधा भी मुहैया होती है. लेकिन इस योजना का लाभ और सुविधा अधिकांश परिवार लेने से ही इंकार कर देते हैं. श्री साहा ने बताया कि सिलीगुड़ी के हाकिमपाड़ा स्थित उनसे संस्थान के होम में फिलहाल कुल 35 बच्चियों का देखभाल एक परिवार की तरह 24 घंटे हो रहा है.
क्या कहना है एनजीओ सिनी के शेखर साहा का
गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) चाइल्ड इन निड इंस्टिट्यूट (सिनी) के उत्तर बंगाल के यूनिट हेड शेखर साहा का कहना है कि सड़क के बच्चों को लेकर केंद्र व राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाएं लागू हैं. कुछ योजनाएं सिलीगुड़ी में चल रही है तो कुछ योजनाएं शहर में अभी तक चालू ही नहीं हुई है. श्री साहा ने बताया कि सरकार की एक योजना रेसिडेंसियल स्कूल फॉर स्ट्रीट चिल्ड्रेन लागू है. जो फिलहाल सिलीगुड़ी में शुरू नहीं हुई है. यह योजना कोलकाता में चल रही है. इस योजना के तहत बेसहारा बच्चों को सरकारी होम में रखकर भरण-पोषण, खेल-कूद, शिक्षा आदि की समस्त सुविधा मुहैया करायी जाती है. सरकार की एक योजना के तहत बेसहारा बच्चों को अगर कोई अपने पास रखकर उसका लालन-पालन करना चाहता है और उसे शिक्षा दिलवाना चाहता है तो उस परिवार को सरकार की ओर से हर तरह का सहयोग मिलेगा. एक अन्य योजना के तहत बेसहारा बच्चों को गोद लेने की है. निःसंतान पति-पत्नी बेसाहरा व असहाय बच्चों को गोद लेना चाहते हैं तो वे कानूनन केवल होम से ही बच्चों को गोद ले सकते है. बच्चों को गोद लेने से पहले कई आवश्यक सरकारी खानापूर्ति करने की जरूरत पड़ती है.