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गिरा हुआ पुल दिख रहा है, चकाचक सड़क नहीं
जब आपस में ही भिड़े दो पार्टी के समर्थक सेवक पुल पर हो रही थी बातचीत सिलीगुड़ी : विधानसभा चुनाव को लेकर आम लोगों की राय जानने के लिए मैंने सोचा कि चलो आज बस से पहाड़ की यात्रा की जाये. मेरी योजना सिलीगुड़ी से निकल कर सुकना से थोड़ा आगे जाने की थी. यही […]
जब आपस में ही भिड़े दो पार्टी के समर्थक
सेवक पुल पर हो रही थी बातचीत
सिलीगुड़ी : विधानसभा चुनाव को लेकर आम लोगों की राय जानने के लिए मैंने सोचा कि चलो आज बस से पहाड़ की यात्रा की जाये. मेरी योजना सिलीगुड़ी से निकल कर सुकना से थोड़ा आगे जाने की थी. यही विचार कर मैं पहाड़गामी बस पकड़ने के लिए जंक्शन के निकट पहुंच गया. काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी बस नहीं मिली. पूछने पर किसी ने बताया कि सभी बस को तो चुनाव के लिए पकड़ लिया है.
एकाध बसें ही आवाजाही कर रही हैं. यह सुनकर मैं अपनी योजना बदल रहा था. मैं सेवक रोड इलाके में चेकपोस्ट के करीब आ गया़ उसी समय डुवार्स के लिए एक बस आ गई. मैंने सोचा चलो डुवार्स के मालबाजार का चक्कर काट आते हैं. मालबाजार में भी इस बार चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प है. कभी माकपा के सिपाही रहे बुलुचिक बराइक ने तृणमूल का दामन थाम लिया है.
वह तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस समर्थित माकपा उम्मीदवार अगस्तुस करकेट्टा के साथ है. मैंने सोचा चलो माल सीट को लेकर ही चुनावी चरचा कर ली जाये. मैं डुवार्सगामी बस में सवार हो गया. बसें कम चलने की वजह से उसमें खचाखच भीड़ थी. बैठने की सीट नहीं थी. मैं खड़े-खड़े सालुगाड़ा पार कर गया. वहां भीड़ थोड़ी कम हुई और मौका देखते ही मैं एक सीट पर जम गया.
पास बैठे भाई साहब से मैंने बातचीत शुरू कर दी. वह अलगड़ा जाने वाले थे. मैंने पूछा इस बार चुनाव में क्या लग रहा है. वह बंगलाभाषी थे. टूटी-फूटी हिन्दी में बोले, लगना क्या है, राज्य में फिर से दीदी की सरकार बनना तय है. इसी क्रम में वह ममता बनर्जी की कुछ अधिक प्रशंसा कर गये. वह अपने लय में रम गये थे, मुझे चुप होना पड़ा था.
वह तृणमूल कांग्रेस तथा ममता बनर्जी की इतनी प्रशंसा कर रहे थे कि पास बैठे एक भाई साहब को यह सबकुछ जम नहीं रहा था. वह छुटते ही बोले, आबार परिवर्तन होबे. राज्य में खाली लूट-खसोट है, काम कुछ नहीं हो रहा है. सभी नेता-मंत्री पैसा ले रहे हैं. देखिए न, कोलकाता में पुल गिर गया. यह भ्रष्टाचार के कारण हुआ है. बातचीत का क्रम जारी था कि हमलोग सेवक पुल पार कर रहे थे. माकपा समर्थक दिख रहे वह भाई साहब छुटते ही बोले, देखिए यह पुल कितना साल का हो गया. अंग्रेजों के जमाने का पुल है और कोलकाता में पुल बनने से पहले ही ढह गया. आपको पता है, दो दर्जन लोग मारे गये हैं. इतना सुनते ही तृणमूल समर्थक सख्श भड़क गये. वह बोले, कोलकाता का गिरा हुआ पुल दिखता है, चकाचक सड़क नहीं.
दुर्घटना कहीं भी संभव है. देखिए न ममता बनर्जी सड़क को कितना चकाचक कर दिया. जिस सड़क से आप बस पर सवार होकर तेजी से जा रहे हैं, इसको दीदी ने ही बनाया है. तब तक एक अन्य यात्री भी इस बहस में कूद गये थे. वह छुटते ही बोले, यह सब दीदी ने नहीं किया है, सब सेंट्रल के फंड से हो रहा है. जितना सड़क देख रहे हैं, सब केन्द्र सरकार के पैसे से बना है. गली और मुहल्लों की सड़क देखिए, उसकी हालत कितनी खराब है. ममता बनर्जी की क्षमता होती, तो वह गली-मुहल्लों की सड़कों को भी बनवातीं. आप अगर पुल गिरने की बात करते हैं, तो पुल भ्रष्टाचार की वजह से गिरा है.
कमजोर लोहा लगायेंगे और सीमेंट के बदले खाली बालू भरेंगे, तो पुल टा तो गिरबे (पुल तो गिरेगा). इतना कहना था कि तृणमूल समर्थक भाई साहब उनसे भिड़ गये. आपस में कहा-सुनी शुरू हो गई. मैं मौका देखते ही माल बाजार जाने की बजाय मंगपंग में ही उतर गया. यहां बता दें कि सेवक पुल का निर्माण 1941 में हुआ. इस पुल में एक भी पाया नहीं है और इतने सालों के बाद भी यह पुल सही-सलामत है.
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