महंगाई के दौर में पुरखों का व्यवसाय जीवित रखना बनी चुनौती
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दुर्गोत्सव करीब आने के साथ ही बढ़ी मूर्तिकारों की व्यस्तता
महंगाई के दौर में पुरखों का व्यवसाय जीवित रखना बनी चुनौती कालियागंज : शरद काल के आगमन के साथ ही मैदानों में कास के फूल दिखने लगे. बंगाल में हर उम्र के लोगों में इसका अलग महत्व है. इस समय दुर्गोत्सव की तैयारी हर दिशा में जोर से चलने लगती है. इस उत्सव की तैयारी […]
कालियागंज : शरद काल के आगमन के साथ ही मैदानों में कास के फूल दिखने लगे. बंगाल में हर उम्र के लोगों में इसका अलग महत्व है. इस समय दुर्गोत्सव की तैयारी हर दिशा में जोर से चलने लगती है. इस उत्सव की तैयारी में लगे कालियागंज के पालपाड़ा में मूर्तिकार इन दिनों चरम व्यस्तता में है. उनका कहना है कि महंगाई के कारण मुनाफा ज्यादा नहीं होता है, लेकिन पुरखों के व्यवसाय को बंद भी तो नहीं कर सकते हैं. साथ ही इस काम के साथ उनका विशेष लगाव भी है.
मूर्तिकार रामनाथ पाल ने कहा है कि मिट्टी से लेकर बांस व अन्य सामग्रियों की कीमत दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. ऐसे में मूर्ति बनाना काफी खर्चीला काम हो गया है. लेकिन विभिन्न क्लबों से मूर्ति की कीमत उतनी नहीं मिल पाती है. इनलोगों की बनायी मूर्तियां आसपास के जिलों में भी भेजी जाती है.
वहीं एक अन्य मूर्तिकार राम पाल ने कहा कि पैतृक व्यवसाय वे छोड़ नहीं पा रहे हैं. पूरे साल तक वह विभिन्न मूर्तियां बनाते हैं. इसी समय कुछ ज्यादा मुनाफा की उम्मीद रहती है. दुर्गा प्रतिमाएं 20 से 25 हजार के दर से बिकती है, लेकिन खर्चा इतना अधिक रहता है कि मुनाफा ज्यादा नहीं होता है. उनका पूरा परिवार इसी पेशे से जुड़ा हैं. इन सबके बावजूद अपने दुख दर्द को छिपाते हुए अपने लगाव के कारण ही वह आज भी इस पेशे से जुड़े हैं.
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