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पीड़ित बेटी को मौत के मुंह से निकाला, लाख में एक को होती है मायसथेनिया ग्रेविस
सिलीगुड़ी : निरोगी काया होना इस दौर में काफी कम संभव है. फिर भी लोग अपने आपको स्वस्थ्य और तंदरुस्त बनाये रखने के लिए हर उपाय करते हैं. लेकिन शरीर भी रोग से तब ही लड़ाई कर पाता है जब जीने की इच्छा शक्ति प्रबल हो. धरती पर डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना […]
सिलीगुड़ी : निरोगी काया होना इस दौर में काफी कम संभव है. फिर भी लोग अपने आपको स्वस्थ्य और तंदरुस्त बनाये रखने के लिए हर उपाय करते हैं. लेकिन शरीर भी रोग से तब ही लड़ाई कर पाता है जब जीने की इच्छा शक्ति प्रबल हो. धरती पर डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना गया है.
जब डॉक्टर जवाब दे तो रोगी को बचाना काफी मुश्किल हो जाता है. लेकिन सिलीगुड़ी की एक मां ने अपनी बेटी को काल की गोद से छीन निकाला है. अपने संतान को काल की गोद में समाते देख हिम्मत हारने के बजाए अपना और अपनी बेटी की इच्छा शक्ति को और मजबूत कर एक नयी मिशाल पेश की है. लगातार पांच वर्ष की लड़ाई के बाद मायसथेनिया ग्रेविस की शिकार वह बच्ची दूसरे मरीज को जीने की इच्छा शक्ति जगाने की सलाह देती है.
वहीं बच्ची का इलाज व बीमारी के बारे में जानकारी हासिल करते-करते मां आधी डॉक्टर बन गयी है. मायसथेनिया ग्रेविस एक गंभीर बीमारी है. दस लाख लोगों में से एक को होने वाली यह बीमारी सिलीगुड़ी के सुकांतपल्ली निवासी संचिता देवनाथ की बेटी तपश्रुति देवनाथ को है. यहां बता दें कि संचिता देवनाथ डा. राजेंद्र प्रसाद गर्ल्स हाई स्कूल की प्राध्यापिका है. इनके पति भी केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक हैं. इनकी दो बेटियां है. बड़ी बेटी तपश्रुति बारहवीं व छोटी देवोस्तुती ग्यारहवीं की छात्रा है. वर्ष 2013 में तपश्रुति को मायसथेनिया ग्रेविस नामक बीमारी हो गयी. हांलाकि इस बीमारी के लक्षण काफी पहले से ही दिखने लगे थे.
जानकारी के अभाव में उसे नजरअंदाज किया गया. बीमारी के लक्षण के अनुसार वर्ष 2013 में तपश्रुति की आंख की पलकें अपने आप बंद होने लगी. चेहरा टेढ़ा होने लगा. गांठ में दर्द,मांसपेशियों में शिथिलता आदि होने से उसे शहर के एक न्यूरोलॉजिस्ट से दिखाया गया. हांलाकि उपकरण आदि के अभाव की वजह से मूल बीमारी का इलाज ही शुरू नहीं हुआ. शारीरिक अवस्था में लगातार गिरावट देखकर संचिता देवनाथ अपनी बेटी के इलाज के लिए बैंगलुरू, दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में गयी.
लेकिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. इसके बाद भी संचिता देवनाथ ने हार नहीं मानी और सिलीगुड़ी में ही एक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. स्वयं प्रकाश को ढूंढ़ निकाला. इन्होंने तपश्रुति की बीमारी को ठीक तरह से पकड़ा और फौरन इलाज शुरू किया. जब इन्होंने इलाज शुरू किया तब तपश्रुति की हालत एक नवजात बच्चे की तरह थी. तीन महीने के इलाज ने रंग दिखाना शुरू किया. फिलहाल तपश्रुति चल-फिर पा रही है. हांलाकि दवाइयों के साथ उसका नाता जीवन भर को हो गया है.
बेटी के इलाज के लिए संचिता देवनाथ ने मायसथेनिया ग्रेविस बीमारी के बारे में काफी जानकारी हासिल की है.इस रोग से पीड़ित मरीज को सुबह से लेकर रात तक अलग-अलग तरह की शिकायतें होती है. प्रत्येक हरकत के लिए अलग दवा व विशेष प्रकार की देखरेख की आवश्यकता होती है. संचिता देवनाथ नर्व, मांसपेशियों के बारे में इतनी जानकारियां हासिल कर चुकी है कि आधी डॉक्टर बन चुकी हैं.
अपने विद्यालय की छात्राओं की हर गतिविधि पर निगरानी रखकर कईयों की बीमारी का इलाज भी इन्होंने कराया है. इन्होंने बताया कि मायसथेनिया ग्रेविस भी एक न्यूरो बीमारी है. इसकी जानकारी काफी कम लोगों को हैं. यहां तक कि अधिकांश डॉक्टरों को भी इसके बारे में पता नहीं है. इस बीमारी को लेकर जागरूकता की काफी आवश्यकता है.
मायसथेनिया ग्रेविस एक गंभीर बीमारी है
सिलीगुड़ी में अब तक मायसथेनिया ग्रेविस के सिर्फ चार मरीज पाये गये हैं. जिसमें तपश्रुति दूसरी मरीज है. मायसथेनिया ग्रेविस का एक मरीज फिलहाल शहर से सटे माटीगाड़ा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती है. इस बीमारी में शरीर से रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है. शरीर के अंदर ही खराब एंटी बॉडी तैयार होने लगते हैं.
मस्तिष्क के साथ शरीर के भागों का संपर्क टूट जाता है. नर्व व मांसपेशियो के बीच का संपर्क टूट जाने की वजह से मांसपेशियां शिथिल होने लगती है. रोग के अंतिम चरण में सांस लेने वाली सहायक मांसपेशियां भी शिथिल होने लगती है. शुरूआती दौर में मरीज का जुबान लड़खराना, मांसपेशियों में जकड़न, चलने-फिरने में लड़खड़ाना, किसी वस्तु यहां तक कि कलम, पेन्सिल आदि को पकड़ने में दिक्कत, आंख की पलकें अचानक बंद होना आदि लक्षण दिखाई देती है.
क्या कहते हैं डॉ स्वयं प्रकाश
वहीं तपश्रुति का इलाज कर रहे डॉ. स्वयं प्रकाश ने बताया कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने की वजह से यह बीमारी काफी घातक है. यह बीमारी लाख में एक से भी कम लोगों में पायी जाती है. इस बीमारी से ग्रसित लोगों का दवाइयों से नाता करीब जीवन भर का होता है. यह पब्लिक हेल्थ समस्या नहीं है. इसी वजह से इस बीमारी को लेकर जागरूकता आदि सरकार की तालिका में नहीं है. वैसे भी हमारा देश आवश्यक बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा है. हांलाकि मायसथेनिया ग्रेविस को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है.
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