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प्लास्टिक की जगह नारियल खोल में उगाये जा रहे पौधे

सिलीगुड़ी : डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी ने पौध तैयार करने के लिए एक नयी इको-फ्रेंडली तकनीक को अपनाया है. यहां प्लास्टिक बैग की जगह नारियल के खोल में बीज डालकर पौधे उगाये जा रहे हैं. राज्य में पहली बार वन विभाग की ओर से इतने बड़े पैमाने पर नर्सरी बनायी गयी है. डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी ने […]

सिलीगुड़ी : डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी ने पौध तैयार करने के लिए एक नयी इको-फ्रेंडली तकनीक को अपनाया है. यहां प्लास्टिक बैग की जगह नारियल के खोल में बीज डालकर पौधे उगाये जा रहे हैं. राज्य में पहली बार वन विभाग की ओर से इतने बड़े पैमाने पर नर्सरी बनायी गयी है.
डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी ने उत्तर बंगाल के जंगलों से विलुप्त हो रहे पेड़-पौधों को फिर से लाने की ओर कदम बढ़ाया है. डाबग्राम-2 नंबर ग्राम पंचायत के अधीन 16 एकड़ जमीन को भू-माफिया के हाथों से बचाकर सिलीगुड़ी वन सृजन विभाग ने यह नर्सरी तैयार की है. इस नर्सरी में खुले बाजार से काफी कम कीमत पर पौधे उपलब्ध हैं.
एक तरफ जंगल सिकुड़ने से पर्यावरण संकट पैदा हो गया है, तो दूसरी तरफ भू-माफिया वन विभाग की जमीन तक नहीं छोड़ रहे. अपनी जमीन दखल होने की भनक लगते ही सिलीगुड़ी वन सृजन विभाग ने सिलीगुड़ी के निकट डाबग्राम-2 नंबर ग्राम पंचायत के अधीन फकदईबाड़ी व हाथियाडांगा के बीच ढाकेश्वरी काली मंदिर के पास 16 एकड़ जमीन पर 80 लाख रुपये की लागत से डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी बनायी है. तीन महीना पहले राज्य के वन मंत्री विनय कृष्ण वर्मन, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वनपालउत्तर बंगाल एमआर बालोच, अन्य अधिकारियों ने इस नर्सरी का उद्घाटन किया था.
36 प्रजातियों के ढाई लाख पौधे
वर्तमान में इस नर्सरी में 36 प्रजातियों के कुल ढाई लाख पौधे हैं. इसमें इमारती लकड़ियों, फल-फूल व औषधीय वनस्पतियों के पौधे उपलब्ध हैं. बहुमूल्य लकड़ियों में आकाशमनी, चंदन, गोकुल, कदम, चिकराशी, साल, सागौन, शीशम, मेगुन, पानीसाज, मेहोगनी, जारूल, अर्जुन आदि हैं. फलों में आम (आम्रपाली, दशहरी, हिमसागर, लक्ष्मणभोग, लंगड़ा), अमरूद, आंवला, बहेरा हैं. सजावटी व औषधीय वनस्पतियों में अशोक, नागेश्वर, गोकुल धूप, कर्पूर, कृष्णचूड़ा, स्पेनालू, सिंदूर, कानीजल, स्टीविया, वैशाल्यकरणी (संजीवनी) आदि के पौधे उपलब्ध हैं. इस नर्सरी में बीजों को अत्याधुनिक हर्डेनिंग शेड, मिक्स्ड चेंबर में रखकर अंकुरण कराया जाता है. जैविक खाद व हाइड्रो पॉट आदि के जरिए पौधों को तैयार किया जाता है.
भू-माफिया से बचाकर 16 एकड़ जमीन पर नर्सरी बनायी गयी
प्लास्टिक को नियंत्रित करने के लिए अंकुरण के लिए डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी ने एक नया तरीका अपनाया है. नारियल में खोल में मिट्टी व खाद डालकर उसमें बीज डालकर पौधा तैयार किये जाने की प्रक्रिया शुरू की है. आमतौर पर प्लास्टिक के डब्बे या बैग में पौधे तैयार किये जाते है. पौधा रोपण के समय प्लास्टिक के आवरण को हटाकर मिट्टी सहित पौधा जमीन में गाड़ा जाता है. लेकिन कभी-कभी अनजाने में प्लास्टिक सहित ही पौधे को जमीन में लगा दिया जाता है. इस प्लास्टिक की वजह से पौधे का जीवन दीर्घायु नहीं हो पाता, वहीं मृदा प्रदूषण भी बढ़ता है.
इसलिए वन विभाग ने नारियल के खोल में अंकुरण करा पौधा तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की है. रोपणी के समय नारियल को खोल सहित जमीन में पौधा लगाया जायेगा. बाद में नारियल को खोल मिट्टी के भीतर ही सड़ कर खाद में तब्दील हो जायेगा. इससे पौधा दुर्घायु होने के साथ मृदा प्रदूषण भी कम होगा. यह प्रक्रिया गुजरात में काफी कारगर साबित हुई है.
इसके अलावा डाब पीने के बाद जो खोल फेंक दिये जाते हैं, उनकी साफ-सफाई भी एक मुश्किल काम है. कई जगह ये खोल जमा रहते हैं और इनमें भरे पानी में डेंगू के मच्छर पनपते हैं. डाब के खोल के नर्सरी में इस्तेमाल से इस समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है. इसके अतिरिक्त प्लास्टिक के डिब्बे व बोतलों की वजह से प्रदूषण बढ़ता है. प्लास्टिक के बेकर डिब्बों व बोतलों में भी विभिन्न प्रकार की लताएं लगाकर हरियाली को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है.
विलुप्तप्राय प्रजातियों को लौटाने की कोशिश
उत्तर बंगाल के जंगलों से विलुप्त हो रहे कई पेड़-पौधों को लौटाने की कवायद भी डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी ने शुरू की है. वन विभाग के डीएफओ दावा शेरपा ने बताया कि उत्तर बंगाल से आगर, मालागीड़ी, गोकुल धूप आदि लुप्त होने के कगार पर हैं. इनके बीजों से पौधा तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की गयी है. देहरादून व दक्षिण भारत के भी विभिन्न इलाकों के पौधों को यहां लाये जाने की योजना है. उन्होंने बताया कि अरण्य सप्ताह के दौरान नर्सरी में आनेवाले सभी लोगों को एक-एक पौधा मुफ्त प्रदान किया जायेगा. डाबग्राम सेंट्रल नर्सरी में सेल्प-हेल्प ग्रुप व नागरिकों के लिए हरियाली लाने के लिए प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है.

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