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गोरखालैंड आंदोलन से बैकफुट पर आयी भाजपा

सिलीगुड़ी: दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में 26 दिनों से जारी गोरखालैंड आंदोलन को लेकर गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) और मां-माटी-मानुष की तृणमूल कांग्रेस (तृकां) की सरकार के बीच भिड़ंत बनी हुई है. वहीं, मोरचा का समर्थन प्राप्त भाजपा अलग-थलग पड़ती नजर आ रही है. पहाड़ पर जारी आंदोलन को लेकर अब केंद्र सरकार की भूमिका पर […]

सिलीगुड़ी: दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में 26 दिनों से जारी गोरखालैंड आंदोलन को लेकर गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) और मां-माटी-मानुष की तृणमूल कांग्रेस (तृकां) की सरकार के बीच भिड़ंत बनी हुई है. वहीं, मोरचा का समर्थन प्राप्त भाजपा अलग-थलग पड़ती नजर आ रही है. पहाड़ पर जारी आंदोलन को लेकर अब केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं.

पहाड़ और समतल की राजनीति के माहिरों की माने तो अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर मोरचा केंद्र में एनडीए का एक घटक दल है और भाजपा को पूर्ण समर्थन दे रही है. लेकिन मोरचा के आंदोलन के 26 दिन बीत जाने के बाद अबतक पहाड़ पर भाजपा के केंद्रीय नेता और मंत्री के आने के दूर की बात मोरचा समर्थित दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र के भाजपा सांसद एसएस अहलुवालिया ने भी पहाड़ की जनता का हालचाल तक नहीं लिया.

राजनीति के जानकारों की मानें तो अलग राज्य गोरखालैंड के मुद्दे पर भाजपा का रुख साफ नहीं है. और यही वजह है कि भाजपा के सांसद अहलुवालिया हो या फिर अन्य बड़े नेता-मंत्री कोई भी अब पहाड़ पर आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे. पहाड़-समतल की राजनीति के वर्षों के तजुर्बेकार राजनैतिक विश्लेषक बिंदेश्वर सिंह का दावा है कि पहाड़ पर गोरखालैंड आंदोलन को ममता सरकार ने ही जानबूझ कर हवा दी है. यह ममता की कुटनीतिक चाल है. उनके अनुसार ममता सरकार की मुस्लिमों के प्रति विशेष उदारता और अल्पसंख्यकों के सरकार को एकतरफा समर्थन मिलने से पश्चिम बंगाल में भाजपा की शक्ति में काफी इजाफा हुआ. साथ ही आगामी राज्य विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के केंद्रीय स्तर के हेविवेट नेता-मंत्रियों का इन दिनों राज्य में लगातार दौरा भी शुरु हो चुका था. भाजपा इन चुनावों को लेकर अभी से ही राज्य में सांगठनिक स्तर पर मजबूत करने में जुटी थी. यही वजह है कि राज्य में भाजपा के बढ़ते जनाधार से तृकां सुप्रीमो सह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी काफी चिंतित थी.
ममता ने पहाड़ पर गोरखालैंड आंदोलन को हवा देकर बंगाल में भाजपा की ताकत में सेंधमारी कर कुटनीति में सफल भी हुई है. इस कुटनीति चाल के बाद ही पहाड़ पर आंदोलन ने हिंसक रूप धारण कर लिया और यह आंदोलन आज भी जारी है. पहाड़ पर आंदोलन का बिगुल बजते ही बंगाल में भाजपा हेविवेट नेता-मंत्रियों का लगातार दौरा भी अचानक बंद हो गया. इस आंदोलन के बाद कोई भी केंद्रीय नेता यहां तक कि भाजपा सांसद एसएस अहलुवालिया खुद अपने संसदीय क्षेत्र दार्जिलिंग आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे. राजनैतिक विश्लेषक श्री सिंह का कहना है कि ममता यह अच्छी तरह से जानती है कि भाजपा कभी भी अलग राज्य गोरखालैंड के समर्थन में नहीं है और भाजपा इस मुद्दे पर पहाड़ की भोलीभाली जनता की भावनाओं के साथ विश्वासघात कर रही है.

पहाड़ पर आंदोलन की वजह से जहां ममता सरकार बंगाल में एकबार भाजपा की बढ़ती ताकत को कमजोर करने में सफल हुई वहीं, गोरखालैंड आंदोलन शुरु होने से पहले तक छिन्न-भिन्न हो चुकी मोरचा को पूरी शक्ति दे दी और मोरचा सुप्रीमो विमल गुरुंग एकबार फिर पूरी ताकत के साथ उभर उठे. ममता के हाथों मोरचा को मिले टॉनिक से विमल गुरूंग इसबार फिर आंदोलन की आड़ में अपनी ताकत बढ़ाने में काफी हद तक कामयाब भी हो रहे हैं. लेकिन मोरचा की कामयाबी के बाद पहाड़ पर तृकां की शक्ति को ममता ने खुद ही पहाड़ पर दमन कर दिया. यही वजह है कि गोरखालैंड के मुद्दे पर पहाड़ पर तृकां के जनप्रतिनिधि और नेता-कार्यकर्ता लगातार ममता का दामन छोड़ते जा रहे हैं.

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