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साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष की दासतां थे हो ची मिन्ह : गीतेश

कोलकाता. वियतनाम समाजवादी गणराज्य के महास्वप्न को साकार करनेवाले जननायक के रूप में ही हो चि मिन्ह जाने जाते हैं. उनका नाम आज भारत समेत पूरे विश्व में समता, न्याय और स्वतंत्रता के लिए अथक संघर्ष करनेवाले जनयोद्धा, मार्क्स क्रांति के प्रबल पुरोधा तथा मार्क्स, एंजिल्स, लेनिन और स्टालिन के समकक्ष के रूप में आदर […]

कोलकाता. वियतनाम समाजवादी गणराज्य के महास्वप्न को साकार करनेवाले जननायक के रूप में ही हो चि मिन्ह जाने जाते हैं. उनका नाम आज भारत समेत पूरे विश्व में समता, न्याय और स्वतंत्रता के लिए अथक संघर्ष करनेवाले जनयोद्धा, मार्क्स क्रांति के प्रबल पुरोधा तथा मार्क्स, एंजिल्स, लेनिन और स्टालिन के समकक्ष के रूप में आदर के साथ लिया जाता है. उनका जीवन सर्वहारा क्रांति तथा राष्ट्रवादियों के लिए विश्व की तत्कालीन साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष की अद्भुत दास्तां हैं.

उन्होंने ही वियतनाम की मुक्ति युद्ध में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों को हार का मुंह दिखाया. वियतनाम की मुक्ति के बाद जब अमेरिकी साम्राज्यवाद का हमला शुरू हुआ तो उन्होंने जन बल से उसे भी पराजित कर दिया. उनकी कुटनीति व कुशलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जब वे वर्ष 1946 में हो चि मिन्ह कलकत्ता (मौजूदा समय में कोलकाता) भी आये थे. जब फ्रांस वियतनाम पर बमबारी कर रहा था तो वे पेरिस में वार्ता के जरिये तत्कालीन समस्या का समाधान ढूंढ़ने मेें लगे थे और वे सफल भी रहे. पूरे विश्व की मौजूदा स्थिति में हो चि मिन्ह के आदर्श का अनुसरण जरूरी है. वे सांस्कृतिक विकास को देश के विकास से अलग नहीं समझते थे. समय के साथ वियतनाम और भारत का रिश्ता मजबूत और प्रगाढ़ भी हुआ है. ये बातें वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार गीतेश शर्मा ने शुक्रवार को इंडो-वियतनाम सॉलिडैरिटी कमेटी और भारत में एसआर वियतनाम दूतावास द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित करने के दौरान कहीं.

इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर नेशनल लाइब्रेरी के महानिदेशक डॉ अरुण कुमार चक्रवर्ती, आइसीसीआर के आंचलिक निदेशक गौतम दे, देश में एसआर वियतनाम दूतावास की पहली सचिव फुओंग वु, दीपिका पोखरना, कोलकाता में नेपाली दूतावास के कौंसुल जनरल इकनारायण अर्याल, कोलकाता में रूस के दूतावास के अधिकारी मिथेल समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे. नेशनल लाइब्रेरी के महानिदेशक डॉ अरुण कुमार चक्रवर्ती ने कहा कि भारत-वियतनाम के संबंध को और मजबूत करने और दोनों देशों की साहित्य-संस्कृति को करीब लाने के इरादे से नेशनल लाइब्रेरी में वियतनाम से संबंधित पुस्तकों का एक अलग कॉर्नर बनाया जायेगा. कार्यक्रम का स्वागत भाषण कवयित्री और इंडो-वियतनाम सॉलिडैरिटी कमेटी की संयोजक कुसुम जैन ने किया. सं‍चालन प्रोफेसर प्रभामयी सामंत राय ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ अनुवादक व कमेटी के संयोजक प्रेम कपूर ने किया.

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