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10 में से नौ बच्चों के आहार में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी

कोलकाता : आमतौर पर यह कहा जाता है कि अपने पड़ोसियों के मुकाबले भारत आर्थिक व सामाजिक के साथ-साथ हर क्षेत्र में काफी आगे है. हालांकि 2016 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स कुछ और ही सच्चाई बयान कर रहा है. दुनिया के 118 देशों में भूख के स्तर पर हुए इस शोध में भारत की एक […]

कोलकाता : आमतौर पर यह कहा जाता है कि अपने पड़ोसियों के मुकाबले भारत आर्थिक व सामाजिक के साथ-साथ हर क्षेत्र में काफी आगे है. हालांकि 2016 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स कुछ और ही सच्चाई बयान कर रहा है. दुनिया के 118 देशों में भूख के स्तर पर हुए इस शोध में भारत की एक भयानक तसवीर सामने आयी है. महानगर में प्रकाशित इस शोध के अनुसार ग्लेबल हंगर इंडेक्स की तालिका में भारत 97वें पायदान पर है, जबकि पड़ोसी चीन 29वें स्थान पर है.
भारत से अच्छी हालत तो नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका आैर बांग्लादेश की है. इस तालिका में नेपाल 72वें, म्यांमार 75वें, श्रीलंका 84वें व बांग्लादेश 90वें स्थान पर है. जबरदस्त आर्थिक विकास के बावजूद भारत 184 मिलियन कुपोषित लोगों का देश है, जिनमें से बड़ी संख्या बच्चे भुखमरी के कारण खराब स्थिति में हैं.
हाल ही में बेंगलुरु में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग से संबंध रखनेवाले 634 स्कूली छात्रों के बीच एक अध्ययन किया गया. इसमें यह पाया गया कि 95 प्रतिशत से अधिक बच्चों को पर्याप्त मात्रा में माइक्रोन्यूट्रेंट नहीं मिल रहा है. वहीं, 70 प्रतिशत बच्चे चार अथवा उससे अधिक माइक्रोन्यूट्रेंट ग्रहण करने में व्यर्थ हैं. इस अध्ययन में जिन पोषक तत्वों का सबसे कम सेवन हुआ, वह थे विटामिन ए, फोलेट, विटामिन बी 12 व आयरन. जो बच्चों के इम्यून सिस्टम को कमजोर, ऊर्जा स्तर में कमी, एनिमिया से ग्रस्त व भूख के कारण होनेवाले अन्य विनाशकारी प्रभाव छोड़ रहा है.
दुर्भाग्यवश अधिकांश अभिभावक छिपी हुई भूख के लक्षण से अवगत ही नहीं हैं. मुंबई में किये गये एक अध्ययन में यह पाया गया कि अधिकतर महिलाआें को यह पता ही नहीं है कि उनके बच्चे का वजन अधिक या कम है. यह शोध यह दर्शाता है कि भारतीय माताएं आमतौर पर मोटे बच्चे को स्वस्थ मानती हैं. सरकार कुपोषण पर नियंत्रण के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रही है.
पर इस संबंध में अभिभावकों को जागरूक होने की जरूरत है, क्योंकि उनकी कोशिश ही इस दिशा में एक बड़ा अंतर पैदा कर सकती है. इस समस्या का आसान समाधान अभिभावकों की खरीदारी की आदतों में सुधार में सहायता करना है. विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों को वह विशेष आहार खिलाना उचित है, जिसमें विभिन्न प्रकार के अनाज (सिरिअल्स), फलिया, फल, सब्जी आैर पशु-स्रोत खाद्य हों.

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