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आखिर कहां जा रहे सिक्के

कोलकाता: महानगर में चिल्लर की कमी का रोना इन दिनों हर कोई रो रहा है, लेकिन यह केवल कृत्रिम किल्लत है, जो मुट्ठी भर कालाबाजारियों ने पैदा की है. दरअसल, इस किल्लत की आड़ में वे कमीशनखोरी का धंधा चल रहा है. प्रशासन भी खामोशी से यह तमाशा देख रहा है. कहने को महानगर में […]

कोलकाता: महानगर में चिल्लर की कमी का रोना इन दिनों हर कोई रो रहा है, लेकिन यह केवल कृत्रिम किल्लत है, जो मुट्ठी भर कालाबाजारियों ने पैदा की है. दरअसल, इस किल्लत की आड़ में वे कमीशनखोरी का धंधा चल रहा है. प्रशासन भी खामोशी से यह तमाशा देख रहा है. कहने को महानगर में चिल्लर की किल्लत से पूरी आबादी परेशान है, लेकिन बाजार में 20 प्रतिशत अधिक देकर जितना चाहे उतना सिक्का आसानी से उपलब्ध है.

बांग्लादेश में सिक्कों का बन रहा ब्लेड
आरबीआइ के खुलासे के अनुसार भारत के सिक्के बांग्लादेश में तस्करी हो रहे हैं. सीमा सुरक्षा बल ने सीमा से हाल में दो बार बांग्लादेश के नागरिकों के पास से भारतीय सिक्कों से भरी थैलियां जब्त की गयी हैं. पकड़े गये लोगों ने स्वीकारा : सिक्के की धातु को शेविंग ब्लेड और स्टील के गहने बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.

राज्य पुलिस ने भी एक रु पये, दो रु पये और पांच रु पये के सिक्कों वाले बैग भारत-बांग्लादेशी सीमा पर कई बार जब्त किये हैं. सूत्र से मिली खबर के अनुसार एक रुपये के सिक्के से वहां तीन से चार ब्लेड बनाये जा रहे हैं और एक ब्लेड दो रु पये का बिकता है. एक और खबर के अनुसार दो और पांच रुपये के सिक्कों को गला कर देवी-देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां बनायी जा रही हैं. इसके वहां और भारत में ज्यादा दाम मिल जाते हैं. आरआई ने पश्चिम बंगाल को एक गोपनीय रिपोर्ट में लिखा कि पूर्वी भारत से कुछ संगठित गैंग सिक्के गायब कर रही है और इसके लिए वह सिक्के जमा करनेवालों को 10 से 15 फीसदी देते हैं.

हर रोज लाखों के सिक्के देता है आरबीआइ
रिजर्व बैंक प्रतिदिन आम जनता को सिक्के उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पांच से छह लाख रु पये के सिक्के काउंटर से बांटता है. इन काउंटरों से कोई भी व्यक्ति कितने भी सिक्के ले सकता है. एक और दो रु पये के सिक्के स्टील के बने होते हैं, जबकि पांच रु पये का सिक्का कॉपर और निकल धातु का. सर्वाधिक मांग एक व दो रु पये के सिक्कों की है.

सिक्कों को पिघला कर बनाते हैं सिल्ली
सूत्रों के मुताबिक, तस्करी करने वाले एक व दो के सिक्कों को बाजार से हासिल करने के बाद उसे गला कर पहले उनकी सिल्लियां बनाते हैं. इसके बाद ब्लेड बनाने के लिए उन्हें बांग्लादेश या मुंबई भेजा जाता है. सिक्कों की कालाबाजारी करने वाला गिरोह के सदस्य 10 प्रतिशत कमीशन पर काम करते हैं और बैंक से सिक्के लेकर गिरोह के सरगना को सौंप देते हैं जो उन्हें गला कर सिल्लियां बनाने का काम करता है तथा इन सिल्लियों को आगे भेज दिया जाता है. महानगर में पुलिस ने कई फैक्टरियों पर छापे मारे थे और उन्हें सिक्के पिघलाने के सबूत मिले. अब भारतीय सीमा में पुलिस निगरानी बढ़ने के कारण यह कम हो गया है.

कालाबाजारी से हो रही जेब खाली
आम आदमी की जेब से खुल्ले पैसे की कमी के चलते प्रतिमाह 300 रुपये तक अतिरिक्त खर्च हो रहे हैं. यह अनुमान प्रतिदिन 10 रुपये खर्च होने से लगाया गया है. एक आम आदमी चाय, सब्जी, नाश्ता, रेल टिकट, बस टिकट, पेट्रोल व अन्य में प्रतिदिन 10 रुपये तो खर्च कर ही देता है. स्टेशन के टिकट खिड़की, बिजली बिली काउंटर व अन्य काउंटर पर खुल्ले लाने को कहा जाता है. इसके लिए बाजार में चक्कर काटने पड़ते हैं और फिजूल के खर्च करने या फिर छुट्टे बिना लिये लौटना पड़ता है. इसके अलावा सब्जी, दूध, किराना दुकान से खरीदी करने पर या फिर होटलों पर भोजन करने, नाश्ता करने के बाद बिल संख्या यदि उक्त संख्या जैसी है तो आपको खुल्ले पैसे के स्थान पर गुटखा, माचिस, टॉफी, सिगरेट और कूपन मिलेंगे.

क्या कर रहा प्रशासन
ब्लेड बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड होने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक व केन्द्रीय बैंक ने कड़ी निगरानी शुरू कर दी है. भारतीय मुद्रा को नष्ट करना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है, इसलिए ऐसे मामलों को देशद्रोह व रासुका (एनएसए) के तहत दर्ज करने की सिफारिश की गयी है. गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले रिजर्व बैंक की शिकायत के बाद पुलिस ने रिजर्व बैंक के बाहर से चार महिलाओं सहित 22 लोगों को 220 किलो सिक्कों के साथ गिरफ्तार किया था. मामले की तह तक जाने के लिए वित्त मंत्रलय और रिजर्व बैंक ने मिल कर आरबीआइ के डिप्टी गर्वनर केसी चक्र बर्ती की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है.

यह समिति अगले माह रिपोर्ट पेश कर सकती है. वित्त मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस मामले पर पहले भी तीन बैठक हो चुकी हैं लेकिन सिक्के गायब होने का ठोस कारण पता नहीं लगाया जा सका है.

भिखारियों से
सिक्कों के बाजार से गायब होने का असर व्यापार पर होता है. क्योंकि छुट्टे देने के लिए पैसों की कमी पड़ जाती है. कई लोग और सिक्कों के व्यापारी रिजर्व बैंक के बाहर नोटों के एवज में सिक्कों के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते हैं. रिजर्व बैंक से सिक्के जमा करने वाली पार्वती दास का धंधा अच्छा चल रहा है. 12 साल पहले जब मैंने यह काम शुरू किया तो मुङो एक एक के 100 सिक्के बेचने पर 102 रु पये मिलते थे. सात साल पहले 103 रु पये मिलते थे लेकिन अब मैं इस एक थैली को 110 रु पये में बेचती हूं. पिछले पांच साल में सिक्कों की मांग तेजी से बढ़ी है.

सिक्कों की इतनी कमी है कि व्यापारी भिखारियों से सिक्के मांग रहे हैं. कोलकाता की ट्रेनों में भीख मांगने धेनू मंडल बताते हैं, 90 एक रु पये के लिए सिक्के देने पर मुङो सौ रु पये मिलते हैं. मेरे लिए यह अच्छा सौदा है.

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