कोलकाता. जो महानगर की आपाधापी व भागमभाग में भी ग्रामनिष्ठा व मातृभक्ति की बदौलत ‘कल्पतरु की उत्सवलीला’ जैसा कालजयी ग्रंथ रच दे और इससे मिले अपार यश से बेपरवाह रहते हुए अपनी ही धुन में महाप्राण निराला को गुनगुनाने लगे, तो समझिये कि उस असाधारण साहित्य शिल्पी की बुढ़ौती पर तरुणाई का निखार आ गया है. हम बात कर रहे हैं अपने जीवन के 84 वसंत देख चुके मूर्धन्य साहित्यकार डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र की, जिन्होंने अपने जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर माना कि वह साहित्य में जो कुछ कर पाये हैं, वह किसान परिवार की कर्मनिष्ठा और मां से अगाध स्नेह के चलते संभव हुआ है.
बकौल डॉ मिश्र, कोलकाता समेत पूरे देश से मिले बेपनाह प्यार से अभिभूत हूं और इस बुढ़ापे पर जवानी की जीवंतता छा गयी है. मौका था शैली पब्लिकेशंस की ओर से डॉ मिश्र के 85वें जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर भारतीय भाषा परिषद में आयोजित विचार गोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण का. गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए बारासात विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अरुण होता ने श्री मिश्र के समग्र साहित्य में अपने समय की युगीन चेतना को रेखांकित किया और कहा कि जितनी सहजता से ठाकुर रामकृष्ण परमहंस की प्रासंगिकता को उन्होंने स्थापित कर दिखाया है, वो आह्लादकारी है. उनके मुताबिक कई मायनों में राम विलास शर्मा और डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र में समानताएं हैं. जैसे रामविलास जी यात्राएं नहीं के बराबर करते थे और सभा-समारोहों में नहीं जाने का उन्होंने प्रण कर रखा था. डॉ मिश्र चूंकि प्रेम की डोर के आगे विवश हो जाते हैं, लिहाज़ा कार्यक्रमों में चले जाते हैं. इससे पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रोफेसर राजश्री शुक्ला ने कहा कि डॉ मिश्र के साहित्य में भारत की प्राचीन मनीषा का वही सिद्धांत निहित है, जिसमें आचार समर्थित विचार और चरित्र समर्थित आचरण को महत्ता दी गयी है. गोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रोफेसर डॉ वसुमति डागा ने कहा कि श्री मिश्र का पूरा वांगमय अंधेरे की ताकतों के खिलाफ आम लोगों को पूरे दमखम के साथ खड़े होने का आह्वान करता है. जहां पत्रकारिता पर आपका शोध-प्रबंध उदीयमान पत्रकारों का गवेषणात्मक मार्गदर्शन करता है, तो आपके ललित निबंध, श्रेण्य भाषा व वैचारिक प्रवाह में संतुलन दर्शाते हैं. गोष्ठी में डॉ मिश्र की दो नयी पुस्तकों सप्रे संग्रहालय, भोपाल से प्रकाशित ‘मूल्य मीमांसा’ और शैली पब्लिकेशंस, कोलकाता से प्रकाशित ‘सम्बुद्धि’ का लोकार्पण डॉ राजश्री शुक्ला ने किया. कार्यक्रम का संचालन और आखिर में धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद शाह नफीस ने किया.
कार्यक्रम में मौजूद गणमान्य लोगों में आरके जौहरी, राकेश सिन्हा, सुशील कुमार सिंह, देवाशीष ठाकुर, ओम प्रकाश अश्क, कवि नवल, नंदलाल शाह, कपिल आर्य, मणि प्रसाद सिंह, किरण सिपानी, दुर्गा व्यास, डॉ सत्य प्रकाश तिवारी, अारपी सिंह, विजय भूत, गिरिधर राय, पारस बोथरा, नंदलाल सेठ, रमेश मोहन झा, रमेश चंद्र मिश्र, लखन कुमार सिंह, हेमेंदु पांडेय, रणजीत भारती व श्रीमोहन तिवारी आदि शामिल थे.