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मरीजों को दूध में पानी या पानी में दूध!
कोलकाता महानगर में राज्य सरकार के कई बड़े मेडिकल कॉलेज व अस्पताल हैं. इनमें सुपर स्सेशियलिटी एसएसकेएम (पीजी) अस्पताल भी शामिल हैं. इन अस्पतालों में इलाज के राज्य से बाहर के लोग भी आते हैं, लेकिन इन बड़े अस्पतालों में मरीजों के भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिये जाने का आरोप है. शिव कुमार […]
कोलकाता महानगर में राज्य सरकार के कई बड़े मेडिकल कॉलेज व अस्पताल हैं. इनमें सुपर स्सेशियलिटी एसएसकेएम (पीजी) अस्पताल भी शामिल हैं. इन अस्पतालों में इलाज के राज्य से बाहर के लोग भी आते हैं, लेकिन इन बड़े अस्पतालों में मरीजों के भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिये जाने का आरोप है.
शिव कुमार राउत
कोलकाता : राज्य के बड़े-छोटे सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दिये जा रहे भोजन की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं. इस मामले में राज्य के सबसे बड़े और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल एसएसकेएम (पीजी) का भी हाल अच्छा नहीं है. वहां दूध में पानी या पानी में दूध मिला कर मरीजों को दिया जाता है, यह कहना मुश्किल है. आरोप है कि वहां लगभग 150 लीटर दूध में लगभग 250 लीटर पानी मिलाया जाता है. अन्य अस्पतालों की तरह यहां भी मरीजों को दिये जानेवाले आहार की गुणवत्ता से खिलवाड़ किये जाने का आरोप है. महानगर में एक से बढ़ एक सरकारी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में इन अस्पतालों की अपनी अलग पहचान है. इन अस्पतालों में इलाज के लिए दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं, लेकिन अस्पतालों में मरीजों को परोसे जानेवाले भोजन की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ किया जाना उनकी साख पर दाग लगानेवाला है.
नियमानुसार सरकारी अस्पतालों में मरीजों को तीन वक्त का भोजन दिया जाता है. सुबह के नास्ते में दूध, पाव रोटी, एक अंडा व एक केला दिया जाता है. मधुमेह के मरीजों को केला की जगह खीरा दिया जाता है. पर, मरीजों को इतनी बुरी स्थिति में भोजन परोसा जाता है, जिससे मरीज मजबूरी में ही उसे ग्रहण करते हैं.
आरोप है कि पीजी में भी मरीजों के भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है. अस्पताल में 150 लीटर दूध में लगभग 250 लीटर पानी मिलाकर उसे 400 लीटर कर दिया जाता है. मरीजों की संख्या के अनुपात में दूध में पानी मिलाने की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है. सरकारी अस्पतालों में भोजन पहुंचाने का जिम्मा विभिन्न ठेकेदारों पर होता है. इन ठेकेदारों को सरकार की ओर से भोजन मुहैया कराने के लिए फुल डायट व हाफ डायट के लिए अलग-अलग दर पर भुगतान किया जाता है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, सरकार इन ठेकेदारों को 50 रुपये, 48.50 रुपये व 51 रुपये की दर से भुगतान करती है.
मरीजों को मिलनेवाला भोजन
नाश्ता के बाद दोपहर में चावल, दाल सब्जी व अंडा या मछली दी जाती है. रात में भी इसी मेन्यू को दोहराया जाता है. मधुमेह के मरीजों को चावल की जगह रोटी दी जाती है. नियमानुसार मरीजों को मूंग की दाल दी जानी चाहिए, लेकिन उन्हें मटर की दाल दी जाती है. पीजी में मरीजों को कभी-कभार चिकेन भी परोसा जाता है.
दूध में पानी मिलाने की जानकारी नहीं : डॉ मंजू
हमने इस विषय में ज्यादा जानने के लिए पीजी की निदेशक प्रो डॉ मंजू बनर्जी से बात की. उन्होंने हमें यह बताया कि अस्पताल में भरती मरीजों को भोजन पहुंचाने का जिम्मा प्रबंधन का नहीं है. टेंडर के माध्यम से ठेकेदारों को भोजन मुहैया कराने का जिम्मा सौंपा जाता है. सबसे कम दर पर भोजन मुहैया करवानेवाले ठेकेदार का चुनाव किया जाता है. दूध में पानी मिलाने के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसकी जानकारी उनके पास नहीं है.
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