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विधानसभा चुनाव: वामो-कांग्रेस की नजर अल्पसंख्यक वोटरों पर

कोलकाता: राज्य में करीब 34 वर्षों तक सत्ता में काबिज रहने वाली वाममोरचा सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए वर्ष 2011 में कांग्रेस ने अपना हाथ तृणमूल कांग्रेस से मिलाया था. करीब पांच वर्षों में स्थिति बदली. कांग्रेस का हाथ तृणमूल से छूटा. अब अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल को […]

कोलकाता: राज्य में करीब 34 वर्षों तक सत्ता में काबिज रहने वाली वाममोरचा सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए वर्ष 2011 में कांग्रेस ने अपना हाथ तृणमूल कांग्रेस से मिलाया था. करीब पांच वर्षों में स्थिति बदली. कांग्रेस का हाथ तृणमूल से छूटा. अब अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल को सत्ता से बेदखल करने के लिए वाममोरचा और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल किया गया है.

इसे कई आला वामपंथी नेता बोझा-पोड़ा का नाम दे रहे हैं तो कांग्रेस खेमे के कई नेता इसे आम लोगों का समझौता बता रहे हैं. वाममोरचा और कांग्रेस के अप्रत्यक्ष गठजोड़ (तालमेल) के लिए तृणमूल किले में सेंध लगाना आसान नहीं है. यही वजह है कि वाममोरचा और कांग्रेस की नजर अल्पसंख्यक वोटरों पर है. उनकी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा अल्पसंख्यक वोट का फायदा उन्हें मिले.

कवायद तेज : राज्य के कई क्षेत्रों में मुस्लिम वोट ही निर्णायक स्थिति में हैं. इनमें मुर्शिदाबाद, मालदा, वीरभू, दक्षिण 24 परगना जैसे जिले का नाम प्रमुख है. सूत्रों के अनुसार मुर्शिदाबाद की जनसंख्या का करीब 63 प्रतिशत भाग अल्पसंख्यकों की आबादी है. मालदा में यह 50 प्रतिशत के आसपास है. इसके अलावा उत्तर दिनाजपुर में 47.36 प्रतिशत, वीरभूम में करीब 35 प्रतिशत और दक्षिण 24 परगना जिला में 33 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यकों की है. इस बाबत राजनीतिक दलों ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को उम्मीदवार बनाये जाने की कवायद भी तेज की है. तृणमूल कांग्रेस ने होने वाले विधानसभा चुनाव में करीब 57 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. विगत विधानसभा चुनाव में तृणमूल की ओर से 38 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव के मैदान में उतरे थे. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि विगत विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के हाथ में सत्ता पहुंचाने में अल्पसंख्यक वोटरों ने अहम भूमिका निभायी थी. यही वजह है कि विपक्ष तृणमूल के इस वोट बैंक को तोड़ने पर ज्यादा ध्यान दे रहा है.
अल्पसंख्यक वोट काफी अहम
सूत्रों की माने तो राज्य की कुल आबादी का लगभग 27 से 29 प्रतिशत भाग अल्पसंख्यकों का है. विगत विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस करीब 39 प्रतिशत वोट जुटा पाने में कामयाब रही थी. वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने में तृणमूल सफल रही थी. तृणमूल की जीत में अल्पसंख्यक वोटरों की भूमिका काफी अहम थी. ऐसे में वाममोरचा और कांग्रेस की कोशिश है कि यदि अल्पसंख्यक वोट का पाला इनके पास आ गया तो तृणमूल का वोट बैंक करीब पांच प्रतिशत कम करने में वे कामयाब हो सकते हैं.

हालांकि राह आसान नहीं है. तृणमूल कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बढ़ायी है. जमायत उलेमा ए हिंद के नेता सिद्दिकुला चौधरी को भी टिकट दिया है. साथ ही माकपा से निष्कासित नेता अब्दुल रज्जाक मोल्ला भी तृणमूल के पक्ष से चुनाव लड़ेंगे. सिद्दिकुला चौधरी अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े संगठन के काफी धाकड़ नेता माने जाते हैं. सूत्रों की माने तो नयी दिल्ली में जमायत उलेमा ए हिंद के सम्मेलन में कुछ आला माकपा नेता भी शामिल हुए थे. वहां कथित तौर पर भाजपा व आरएसएस की नीतियों की जमकर आलोचना भी की गयी थी. विश्लेषकों की मानें तो जमायत उलेमा ए हिंद के सम्मेलन में वामपंथी नेताओं की मौजूदगी मुस्लिम संगठनों को अपने पक्ष में करने की कोशिश माना जा सकता है.

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