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हावड़ा स्टेशन पर प्राइवेट का चलता है जादू!

कोलकाता: भारतीय रेलवे के ‘प्राइवेटाइजेशन’ को लेकर वाद-विवाद चलता रहता है, लेकिन हावड़ा स्टेशन पर ‘प्राइवेट’ का दबदबा चौंकानेवाला है. ‘प्राइवेट’ शब्द हावड़ा के रेलवे टिकट काउंटर के समक्ष प्रचलित है. इस शब्द से हावड़ा रेलवे स्टेशन पर कार्यरत कर्मचारी से लेकर रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के जवान तक वाकिफ हैं. यह वह शब्द है, […]

कोलकाता: भारतीय रेलवे के ‘प्राइवेटाइजेशन’ को लेकर वाद-विवाद चलता रहता है, लेकिन हावड़ा स्टेशन पर ‘प्राइवेट’ का दबदबा चौंकानेवाला है. ‘प्राइवेट’ शब्द हावड़ा के रेलवे टिकट काउंटर के समक्ष प्रचलित है. इस शब्द से हावड़ा रेलवे स्टेशन पर कार्यरत कर्मचारी से लेकर रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के जवान तक वाकिफ हैं. यह वह शब्द है, जो रिजर्वेशन के लिए जादू की तरह काम करता है. निराश-हताश यात्री को बर्थ दिला देता है. इसकी एवज में यात्री को केवल जेब ढीली करनी पड़ती है. ‘करंट रिजर्वेशन’ के काउंटर के इर्द-गिर्द जादू की झपकी देनेवाले खड़े रहते हैं. यानी हम और आप जिसे ‘टिकट दलाल’ के नाम से जानते हैं, उनका अब स्टेशन पर कोड नेम है ‘प्राइवेट.’


रविवार की शाम हमारा पाला इस ‘प्राइवेट’ शब्द और उसके असर से पड़ा. 1971 के भारत-बांग्लादेश के युद्ध में वीरगति प्राप्त शहीद अलवर्ट एक्का की पवित्र मिट्टी अगरतला से रांची ले जा रहे बीएसएफ के जवान की रिपोर्टिंग (खबर लेने) के सिलसिले में हावड़ा स्टेशन गया था. उक्त जवान को हटिया-हावड़ा एक्सप्रेस से रांची जाना था. चूंकि उन्हें औचक रांची जाना पड़ रहा था, इसलिए ट्रेन में उनका आरक्षण नहीं हो पाया था. उन्होंने अाग्रह किया कि यदि संभव हो, तो बर्थ की व्यवस्था में मदद कर दें, ताकि सोमवार की सुबह वह रांची पहुंच कर शहीद एक्का की पवित्र मिट्टी सौंप सकें.

उनके आग्रह के बाद बर्थ की जानकारी के लिए हावड़ा स्टेशन के न्यू कंप्लेक्स के दूसरे तल्ले पर स्थित ‘करंट रिजर्वेशन’ काउंटर के पास पहुंचा. बर्थ की बाबत पूछने पर काउंटर पर बैठे रेलकर्मी ने उपरोक्त ट्रेन में बर्थ उपलब्ध होने से इनकार कर दिया. काउंटर से मुंह फेरते ही अगल-बगल खड़े कई ‘प्राइवेट’ (दलालों) ने 800 से लेकर 1000 रुपये देने पर उक्त ट्रेन में बर्थ उपलब्ध करा देने की पेशकश की. उस समय उनकी बातों को अनसुना कर दिया. इसके बाद इसी तल्ले पर स्थित टीटी कक्ष में फरियाद लगायी, लेकिन कोई भी टीटी कुछ भी सुनने के लिए तैयार ही नहीं हुआ. टिकट की बात करने से पहले ही टिकट नहीं होने की बात कह कर टाल दिया गया.

उस समय लगभग रात आठ बजे थे. वहां बैठे एक टीटी ने कहा कि लगभग नौ बजे हावड़ा-हटिया ट्रेन में जानेवाले टीटी साहब आयेंगे. उनसे बात कर लीजिएगा, शायद कोई हल निकले. उक्त बीएसएफ जवान को ट्रेन में सीट दिलाने के लिए अब आरपीएफ की शरण ली. आरपीएफ के अधिकारी को पूरा किस्सा कह सुनाया और उनसे उक्त जवान के रांची तक जाने की व्यवस्था करने का आग्रह किया. उसी समय उक्त आरपीएफ अधिकारी ने अपने सहकर्मियों को ‘प्राइवेट’ को बुला कर लाने का निर्देश दिया और जो ‘प्राइवेट’ उनके पास पहुंचा, वह और कोई नहीं, वरन काउंटर के समक्ष बर्थ दिलाने का वादा करनेवाला ‘दलाल’ ही था. हालांकि उसकी जादुई सेवा मैंने नहीं ली. बाद में बीएसएफ के उस जवान को आरपीएफ की मदद से भीड़ भरे कंपार्टमेंट में बैठने की सीट मिली.

इस बाबत जब रेलवे के कुछ अधिकारियों से पूछा गया, तो उनका कहना था कि इस तरह की जानकारी उन लोगों के पास नहीं है. यदि कोई शिकायत मिलती है, तो इसकी जांच करेंगे और इस संबंध में कार्रवाई करेंगे. रेलवे व रेलवे सुरक्षा बल की ओर से दलालों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जाता रहा है तथा टिकट बुक कराने के नियम में लगातार संशोधन हो रहा है, ताकि इनका लाभ टिकट के दलाल नहीं उठा सकें.

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