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अब उठेगी पुरुषों के अधिकारों की आवाज
मुश्ताक खान कोलकाता : पुरुषों के अधिकारों की आवाज अब जोरदार तरीके से उठायी जानेवाली है. इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुंबई में देश भर से 50 स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि सेव इंडियन फैमिली (एसआइएफ) के बैनर तले इकट्ठा होंगे. उनके अलावा देश भर से लगभग 200 सामाजिक कार्यकर्ता भी संगठन के इस सातवें […]
मुश्ताक खान
कोलकाता : पुरुषों के अधिकारों की आवाज अब जोरदार तरीके से उठायी जानेवाली है. इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुंबई में देश भर से 50 स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि सेव इंडियन फैमिली (एसआइएफ) के बैनर तले इकट्ठा होंगे. उनके अलावा देश भर से लगभग 200 सामाजिक कार्यकर्ता भी संगठन के इस सातवें वार्षिक सम्मेलन में भाग लेंगे और सरकारों के पुरुष विरोधी रवैये के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे.
इस सम्मेलन के माध्यम से लिंग तटस्थ कानूनों की भी वकालत की जायेगी. संगठन के संयोजक अमित गुप्ता का कहना है कि दुनिया भर में यह गलत मिथक बनाया गया है कि भारत में महिलाओं पर बेहद अत्याचार किया जाता है. यह भी कहा जाता है कि भारत पुरुष प्रधान देश है और यहां केवल पुरुषों की ही चलती है, जबकि हकीकत इसके विपरीत है. वर्तमान में स्थिति यह है कि पुरुष पूरी तरह हाशिये पर चले गये हैं.
कानून भी ऐसे बनाये गये हैं, जिसमें पुरुषों के अधिकारों की पूरी तरह उपेक्षा की गयी है और केवल महिलाओं को केंद्रित कर ही कानून बनाये गये हैं, जिसके कारण देश में पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है. अत्यधिक दबाव के कारण पुरुषों का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है. महिलाओं के मुकाबले उन्हें चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिलती है. श्री गुप्ता के अनुसार, सम्मेलन में पुरुष स्वास्थ्य भी एक अहम मुद्दा होगा.
पुरुषों की दयनीय स्थिति एक और आंकड़े से साफ पता चलती है. आत्महत्या करनेवाली कुल महिलाओं में से 39 प्रतिशत 30-60 वर्ष की उम्र की थीं, जबकि इसी उम्र के 55 प्रतिशत पुरुषों ने अपनी जान दी. यह आयु वर्ग भारत की जीडीपी में सबसे अधिक योगदान कर रहा है. ऐसे में पुरुषों में बढ़ता खुदकुशी का रुझान न केवल एक सामाजिक त्रासदी है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचा रहा है.
श्री गुप्ता के अनुसार यह भी एक विडंबना है कि महिला व शिशु कल्याण विभाग ने 2007 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में यौन शोषण का शिकार प्रत्येक 100 बच्चों में से 53 लड़के थे, लेकिन देश में अभी भी दुष्कर्म का कानून केवल महिलाओं के लिए है. यह कानून किसी पुरुष की रक्षा नहीं करता है. दुष्कर्म के झूठे मामलों के कारण भी बड़ी संख्या में पुरुष आत्महत्या करते हैं.
श्री गुप्ता का कहना है कि हर कानून में महिलाओं को विशेष अधिकार दिये जाते हैं. महिलाओं के विकास के लिए मंत्रालय तक बनाये गये हैं, लेकिन शोषण व अत्याचार का शिकार होने के बावजूद पुरुषों की रक्षा के लिए कानून बनना तो दूर की बात है, उनके अधिकार भी एक तरह से उनसे छीने जा रहे हैं. इस सम्मेलन के माध्यम से हम लोग तटस्थ कानून बनाने एवं पुरुषों के हितों की रक्षा के लिए एक पुरुष कल्याण मंत्रलय के गठन की मांग कर रहे हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 के आंकड़े भी भारतीय पुरुषों की सामाजिक व मानसिक स्थिति को दर्शा रहे हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 5.9 मिनट में एक पुरुष घरेलू विवाद के कारण आत्महत्या कर रहा है. वहीं प्रत्येक 12.36 मिनट पर एक महिला खुदकुशी करती है. 2014 में देश भर में 89129 पुरुषों ने एवं 27064 महिलाओं ने आत्महत्या की थी. आत्महत्या करनेवाले पुरुषों में 59744 विवाहित थे, जबकि आत्महत्या करनेवाली विवाहित महिलाओं की संख्या उनसे काफी कम 59744 थी.
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