कोलकाता: श्रमण परम्परा के प्रमुख संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज ने स्थानीय बेलगछिया उपवन मंदिर में विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मानव के अंदर मानवता को प्रतिष्ठापित करना ही धर्म का मूल लक्ष्य है.
इस संदर्भ में हमारे आचायों गहन चिंतन किया और हमें एक आचार पद्धति दी जो भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विरासत है. जो मानवीय मूल्यों को आत्मसात करता है जिसका जीवन मानवीय गुणों से अनुप्राणित रहता है. वही गृहस्थ सदगृहस्थ बनता है.
सदगृहस्थ बनते ही धर्म की भूमिका दिनों-दिन मजबूत होती जाती है. उसकी धार्मिक चेतना का विकास होने लगता है. गृहस्थ न्यायमूलक धन अजिर्त करे, वह गुणों की उपासना करें, अपनी वाणी में मिठास रखे, धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थो में सम्यक संतुलन रखे, मन में दुष्कर्म व पाप कार्यो के प्रति हमेशा शर्म रखे. अपने आहार-विहार में विवेकपूर्ण व्यवहार करे, संतजनों का समागम करते हुए धर्म की कथा को निरंतर सुनता रहे और अपनी इंद्रियों तथा मन पर नियंत्रण रखे.