पद्मश्री पंडित विश्वमोहन भट्ट
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खुशियों का उत्सव है पोइला बैशाख
पद्मश्री पंडित विश्वमोहन भट्ट मोहनवीणा वादक वैसे तो मैं राजस्थान से हूं और राजस्थान की मिट्टी में पला-बढ़ा हूं, लेकिन बंगाल की धरती से मेरा बहुत ही खास संबंध रहा है.प्राय: ही शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बंगाल आना-जाना लगा रहता है. बंगाल का संगीत और सुर के साथ खास रिश्ता है […]
मोहनवीणा वादक
वैसे तो मैं राजस्थान से हूं और राजस्थान की मिट्टी में पला-बढ़ा हूं, लेकिन बंगाल की धरती से मेरा बहुत ही खास संबंध रहा है.प्राय: ही शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बंगाल आना-जाना लगा रहता है. बंगाल का संगीत और सुर के साथ खास रिश्ता है और यदि पोइला बैशाख हो, तो बंगाल के लोगों के लिए यह उत्सव कुछ खास ही हो जाता है.
कई अवसर ऐसे आये, जब पोइला बैशाख के उत्सव को काफी करीब से देखने को मिला है. केवल बंगाल ही नहीं, वरन बंगाल के बाहर भी बंगाली समुदाय इस उत्सव को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं. पोइला बैशाख बंगाली जीवन के सुर-ताल की संगत है.
बंगाल के लेखकों, कवियों, रचनाकारों, गीतकारों व संगीतकारों ने पोइला बैशाख को लेकर अपनी रचनाओं में पोइला बैशाख को उर्द्धत किया है. बंगाल के गीत, संगीत, कविताओं, लेखों और रचनाओं में पोइला बैशाख का जिक्र मिलता है. कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी रचनाओं में प्रकृति के साथ पोइला बैशाख के संबंध को भी बखूबी दर्शाया है.
पोइला बैशाख खुशी का उत्सव है और यह जीवन को नयी उर्जा प्रदान करता है. चूंकि यह खुशी का त्योहार है. पोइला बैशाख के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में उत्सव व खुशी के राग बसंत या बहार आदि प्राय: गाये जाते हैं.
पोइला बैशाख का गीत और संगीत से बहुत ही गहरा नाता है. इस अवसर पर कई संगीतकार अपने गीतों का नया एलबम भी जारी करते हैं और देश-विदेशों में बंगाली समुदाय पोइला बैशाख पर कार्यक्रम का भी आयोजन करता है.
बंगाल के गीत-संगीत का प्रभाव देश के गीत संगीत पर भी पड़ा है. इसके पहले भी मैं कई बार पोइला बैशाख के अवसर पर शास्त्रीय कार्यक्रम पेश कर चुका हूं. इस वर्ष अमेरिका में रहने वाले प्रवासी बंगाली समुदाय ने मुझे पोइला बैशाख पर एक शास्त्रीय कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है. यह कार्यक्रम 26 अप्रैल को अमेरिका में होगा.
इस कार्यक्रम को लेकर मैं काफी उत्साहित हूं, क्योंकि इस तरह के कार्यक्रमों से न केवल भारतीय गीत-संगीत का प्रचार-प्रसार होता है, वरन विदेश की मिट्टी में रहने वाले भारतीय खुद को अपनी मिट्टी से जुड़ा महसूस करते हैं. मैं मानता हूं कि हम भारत में रहकर अपने अपने उत्सवों, अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति जितने उतावले नहीं होते हैं.
उससे ज्यादा विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय अपने उत्सव,अपनी परंपरा और संस्कृति को लेकर ‘नोस्टालजिक’ होते हैं और अपनी संस्कृति को गहराई से याद करते हैं और उनसे जुड़ा रहना चाहते हैं.
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