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डॉ अंबेडकर दामोदर प्रकल्प के निर्माता, लेकिन डीवीसी की वेबसाइट व इतिहास में नहीं है जिक्र : भंते तिस्सावरो

– मंत्री अठावले के नेतृत्व में केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह को देंगे ज्ञापन अजय विद्यार्थी@कोलकाता केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के रचयिता डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के सामाजिक न्याय और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता व एक मजबूत और समृद्ध भारत के निर्माण में योगदान को याद करते हुए गुरुवार को उनके महापरिनिर्वाण दिवस […]

– मंत्री अठावले के नेतृत्व में केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह को देंगे ज्ञापन

अजय विद्यार्थी@कोलकाता

केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के रचयिता डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के सामाजिक न्याय और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता व एक मजबूत और समृद्ध भारत के निर्माण में योगदान को याद करते हुए गुरुवार को उनके महापरिनिर्वाण दिवस (6 दिसंबर) का पालन पूरे देश में किया, लेकिन केंद्रीय सरकार की संस्था दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के अधीन दामोदर प्रकल्प, जिनके निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर थे.

उसी डीवीसी ने बाबा साहेब अंबेडकर को भुला दिया है. उनकी वेबसाइट पर या उनके इतिहास में कहीं भी दामोदर प्रकल्प के निर्माण और संस्थापक के रूप में बाबा साहेब के योगदान का कोई उल्लेख नहीं है. बुद्ध अवशेष बचाओ के संगठक व प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु भंते तिस्सावरो ने प्रभात खबर से बातचीत करते हुए ये आरोप लगाया.

डॉ भंते ने बताया कि डॉ बाबा साहेब ब्रिटिश काल में 1942 से 1946 तक कैबिनेट मंत्री थे. उन्होंने दामोदर नदी की भयानक स्थिति को देखते हुए दामोदर प्रकल्प निर्माण के बारे में सोचा. इस संदर्भ में दामोदर प्रकल्प पर तीन जनवरी, 1945 को (कलकत्ता के सचिवालय) में पहली बैठक हुई. इसमें बंगाल सरकार, बिहार सरकार और तत्कालीन केंद्रीय मध्यवर्ती सरकार के कई प्रतिनिधि भी शामिल हुए.

डॉ बाबा साहेब ने दामोदर नदी प्रकल्प पर आयोजित तीन परिषदों का नेतृत्व किया. इस परिषद में बाढ़ नियंत्रण और उससे सुरक्षा के बारे में क्या योजना होनी चाहिए, प्रकल्प के कारण नदी का नियंत्रण कैसा होना चाहिए, सूखे से कैसे निपटेंगे, विद्युत निर्माण कैसे किया जायेगा. इस विषय पर डॉ बाबा साहेब ने विस्तृत मार्गदर्शन किया था.

बौद्ध भक्षु श्री भंते कहते हैं कि डॉ आंबेडकर के नेतृत्व में डैम निर्माण की परियोजना ने अच्छी प्रगति की और इसके लिए प्रांतीय सरकार की भी मदद मिली थी. इसके लिए 1944 में निर्णय हुआ और प्राथमिक अभियांत्रिकी का खाका अगस्त, 1945 में तैयार होकर उसे मान्यता भी मिली थी. उन्होंने कहा कि मतभेद दूर करते हुए अगस्त 1947 में प्रांतीय सरकारों ने दामोदर प्रकल्प के लिए आर्थिक सहायता देने की जवाबदेही ली और इसके लिए दामोदर नदी प्राधिकरण मंडल की स्थापना की.

दामोदर प्राधिकरण का प्रस्ताव दिसंबर 1947 में लोकसभा में पेश कर फरवरी 1948 में यह विधेयक पारित हो गया. सात जुलाई, 1948 को कानून की मान्यता मिल गयी. डॉ बाबा साहेब ने इस डैम के श्रम विभाग के पुनर्वासन विषय की बैठक 22 अप्रैल, 1946 को की थी. उन्होंने इस बैठक में कहा था कि जिस किसान की खेती की जमीन गयी है, उनको बदले में जमीन मिलनी चाहिए. उनको खेती का उचित मुआवजा मिलना चाहिए और उस किसान के पारिवारिक सदस्य को नौकरी मिलनी चाहिए.

बौद्ध भिक्षु भंते का कहना है कि डॉ साहेब की पुनर्वास नीति को डीवीसी ने सही ढंग से पालन नहीं किया. अभी भी पुनर्वासन की समस्या बनी हुई है. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि एक ओर केंद्र सरकार और राज्य सरकार डॉ अंबेडकर के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर रही है, दूसरी ओर, उनके द्वारा निर्मित दामोदर प्रकल्प में उन्हें ही भूला दिया गया है. दामोदर प्रकल्प के निर्माण में डॉ अंबेडकर के योगदान की कहीं भी उल्लेख नहीं है और न ही डॉ आंबेडकर के प्रकल्प में योगदान का कोई उल्लेख है.

दामोदर घाटी निगम की वेबसाइट में भी डॉ आंबेडकर के योगदान का कोई उल्लेख नहीं है. यह बहुत ही दुखद है. इस बाबत न केवल डीवीसी को, वरन केंद्र सरकार को भी पहल करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि बंगाल राज्य को भी दामोदर प्राधिकरण का पूरा लाभ मिल रहा है. बंगाल सरकार को डॉ आंबेडकर का एक भव्य स्मारक बनाना चाहिए, जिसमें डॉ आंबेडकर से संबंधित पुस्तकों का संग्रह हो, सभागृह हो तथा विद्यार्थियों व शोधकर्ताओं के लिए स्टडी हॉल होना चाहिए.

इस संबंध में बुद्ध अवशेष बचाओ के संगठक भंते तिस्सावरो, मगध क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अमरदीप कुमार, ब्रह्माण संगठन, गया के रंजीत पांडेय, बिहार-झारखंड प्रधानाध्यापक संघ के शंकर मास्टर, बिहार-झारखंड नाविक समाज के प्राचार्य दुलाल ठाकुर का प्रतिनिधिमंडल सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले के नेतृत्व में केंद्रीय बिजली मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आरके सिंह से मुलाकात कर ज्ञापन देंगे तथा डॉ अंबेडकर के दामोदर प्रकल्प में योगदान को रेखांकित करने तथा इतिहास में उनका उल्लेख करने की मांग करेंगे.

कौन हैं भंते तिस्सावरो

भंते तिस्सावरो यूं तो बौद्ध भिक्षु हैं, पर भारतीय धरोहरों को सुरक्षित और संरक्षित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. भारतीय पुरात्व विभाग भारतीय धरोहरों की पड़ताल के लिए देश के कई स्थानों पर खुदाई कर रहा है. इसी माध्यम से भंते तिस्सावरो बुद्ध विचार का प्रचार-प्रसार करते हैं और गांवों में अहिंसा का प्रचार करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के श्री भंते कट्टर समर्थक माने जाते हैं. उनके वक्तव्यों में कई बार प्रधानमंत्री श्री मोदी का नाम आता है. इसी कारण पलामू और मगध क्षेत्र में तीन बार नक्सलियों ने श्री भंते पर हमला किया था.

इसके खिलाफ उनके समर्थकों ने जुलूस निकाला था तथा उन्हें पुलिस संरक्षण देने की मांग की थी. श्री भंते ने कहा कि झारखंड के मंत्री सरयू राय ने भी उनको पुलिस संरक्षण देने के लिए पत्र लिखा था लेकिन कुछ हुआ नहीं. श्री भंते का कहना है कि ऐसी स्थिति में गांव-गांव में केंद्र सरकार की योजना के प्रचार में बाधा आ रही है. भंते तिस्वावरो बाबा साहेब और महात्मा ज्योतिबाबू फूले के कट्टर समर्थक हैं तथा रिपलब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए)के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं.

क्या का कहना है डीवीसी के अधिकारी का

दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी डीएस सहाय का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. इस बाबत वह वरिष्ठ लोगों से बातचीत व जानकारी हासिल कर ही कोई टिप्पणी कर पायेंगे.

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