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संतों का न करें अपमान : पं. श्रीकांत शर्मा

कोलकाता. किसी भी संत को मन से गुरु मानें. संतों का कभी अपमान न करें. संत का चरित्र पढ़ें. संत अमर होते हैं. संतों को काल नहीं मार सकता. संत मिले तो समझो गोविंद की कृपा हो गयी. यह कहना है बाल व्यास पं. श्रीकांत शर्मा का. आनंदलोक के तत्वावधान में साॅल्टलेक स्थित मेवाड़ बैंक्वेट […]

कोलकाता. किसी भी संत को मन से गुरु मानें. संतों का कभी अपमान न करें. संत का चरित्र पढ़ें. संत अमर होते हैं. संतों को काल नहीं मार सकता. संत मिले तो समझो गोविंद की कृपा हो गयी.
यह कहना है बाल व्यास पं. श्रीकांत शर्मा का. आनंदलोक के तत्वावधान में साॅल्टलेक स्थित मेवाड़ बैंक्वेट सभागार में आयोजित 108 श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन पं. श्रीकांत शर्मा ने कहा कि जीवन में पैसा की प्रधानता होने से ही पाप बढ़ने लगता है. जीवन में पैसा गौण है, परमात्मा प्रधान है. हमारे ऋषि-मुनियों ने धन को साधन माना है. धन साध्य नहीं है, धन साधन है. धन की आवश्यकता है. पैसा से सुख मिलता है, यह बात सत्य है. जिसके पास पैसा है, उसको भी दुख भोगना पड़ता है. जो सुख भोगता है उसे भी दुख भोगना पड़ता है.
कृष्ण के सखा सुदामा गरीब होते हुए भी महान ज्ञानी हैं, तपस्वी हैं, इसके बावजूद सुदामा ने कृष्ण को महत्व दिया, धन को नहीं. कृष्ण सुदामा को अतिथि मित्र का सम्मान दिया, साथ ही उन्हें श्री सम्पन्न किया. उन्होंने कहा कि यदुवंशियों को धन-सुख बहुत था, इसलिए उनकी बुद्धि बिगड़ गयी. किसी साधु, ब्राह्मण की परीक्षा करना ठीक नहीं है.
आपकी श्रद्धा न हो तो दूर से प्रणाम करें. एक बार यदुवंशियों ने पिण्डारक तीर्थ में बैठे ऋषियों के साथ उपहास किया. साम्ब को स्त्री का रूप बनाकर पूछा कि इसके गर्भ में कौन-सा बच्चा है. ऋषिगण सब समझ गये, कुपित होकर बोले कन्या नहीं, बालक नहीं, वंश का विनाश करनेवाला मूसल निकलेगा. यही श्राप यदुवंश के विनाश का कारण बना.
उन्होंने कहा कि दत्तात्तेय जी ने राजा यदु को उपदेश दिया, कहा- जगत में जड़ और चेतन दो तत्व है. इसमें चेतन श्रेष्ठ है. आज से जो दिखता है वह जड़ है. आज को देखने की शक्ति जो दी वह चेतन है. मेरे भगवान नारायण चेतन है. मैं चेतन परमात्मा के साथ प्रेम करता हूं. मुझे अनेक गुरु मिले हैं, उनको गुरु माना है.
दीक्षा गुरु एक, शिक्षा गुरु अनेक, जहां जो गुण दिखता है, उस गुण के लिए मैंने उन्हें गुरु माना है. श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से ज्ञान, वैराग्य, भक्ति और मोक्ष की सहज प्राप्ति होती है. कार्यक्रम का संचालन संजय मस्करा ने किया.

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