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दोषियों पर कार्रवाई करे पुलिस

कोलकाता : राज्य निर्वाचन आयुक्त एके सिंह ने पुलिस प्रशासन से विभिन्न जिलों में पंचायत चुनाव नामांकनों को लेकर हुई झड़पों में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. वाममोर्चा, कांग्रेस और भाजपा ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर विपक्षी दलों को पंचायत चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करने से रोकने के लिए […]

कोलकाता : राज्य निर्वाचन आयुक्त एके सिंह ने पुलिस प्रशासन से विभिन्न जिलों में पंचायत चुनाव नामांकनों को लेकर हुई झड़पों में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. वाममोर्चा, कांग्रेस और भाजपा ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर विपक्षी दलों को पंचायत चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करने से रोकने के लिए आतंक का सहारा लेने का आरोप लगाया. तृणमूल कांग्रेस ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया. सिंह ने सभी पुलिस आयुक्तों और जिलों के पुलिस अधीक्षकों को बीती रात पत्र लिखा.
पत्र में उन्होंने कहा : विभिन्न जिलों में ( पंचायत चुनावों के सिलसिले में ) झड़पें होने का पता चला हैं. मैं आपसे इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध करता हूं अन्यथा यह फिर से हो सकता है. कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल को राज्य में पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी थी.
पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर स्टे बरकरार
कोलकाता : राज्य पंचायत चुनाव की प्रक्रिया के ऊपर कलकत्ता हाइकोर्ट ने स्थगनादेश को बहाल रखा है. बुधवार को न्यायाधीश सुब्रत तालुकदार की अदालत ने स्पष्ट किया कि मामले के जल्द निपटारे व समय पर मामले की सुनवाई के लिए अदालत में कोई हलफनामा तलब नहीं किया जा रहा है. लेकिन सभी पक्षों को वक्तव्य संक्षिप्त तौर पर रखने के लिए कहा गया है. बुधवार को मामले की सुनवाई में तृणमूल की ओर से सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि भाजपा द्वारा दायर मामले का कोई आधार नहीं है.
नामांकन पत्र जमा देने को लेकर जो आरोप विरोधी लगा रहे हैं वह आधारहीन है. किसने किसे मारा इसे लेकर मेडिकल व पुलिस रिपोर्ट अदालत में जमा नहीं की गयी है. विरोधियों ने पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर चलने का जो आरोप लगाया है वह भी आधारहीन है. किसने विरोधियों को मारा है उसका प्रमाण कहां है? बगैर प्रमाण के अदालत कैसे मामले की सुनवाई कर सकती है? इस संबंध में अदालत ने कल्याण बनर्जी से जानना चाहा कि हाइकोर्ट क्या सुप्रीम कोर्ट का निर्देश मानने के लिए बाध्य नहीं है?
अदालत कैसे उस निर्देश पर काम न करे? कल्याण बनर्जी ने चुनाव संबंधी हिंसा के तथ्य अदालत के सामने रखे. उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 में 137 आरोप लगे थे. 2008 में 82 आरोप आये थे. दोनों ही चुनाव वाममोर्चा के शासनकाल में हुए. 2013 में 77 शिकायतें आयीं. इस वर्ष शिकायतों का परिमाण और भी कम है. लिहाजा यह कहा जा सकता है कि वाममोर्चा के शासनकाल की तुलना में तृणमूल के शासनकाल में कानून भंग कम हुए हैं. इस पर अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद नौ अप्रैल को राज्य चुनाव आयोग ने नामांकन जमा देने की समयसीमा को बढ़ाया था. लेकिन अगले दिन उसे वापस ले लिया गया.
यदि किसी मतदाता को लगता है कि आयोग का यह फैसला गलत है और आयोग अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से नहीं निभा पा रहा है तो ऐसे मामले में आम आदमी की बात कौन सुनेगा? कल्याण नबर्जी ने कहा कि चुनाव आयोग का अधिकार संविधान के तहत है और यह आम लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के कानून में नहीं आता. लेकिन समयसीमा बढ़ाने को लेकर कल्याण बनर्जी ने आयोग पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि समयसीमा बढ़ाने का अधिकार आयोग के पास है लेकिन नामांकन की तिथि खत्म हो जाने के बाद वह कैसे उसे आगे बढ़ा सकता है. नामांकन दोपहर तीन बजे खत्म हुआ और उसके छह घंटे बाद समयसीमा बढ़ाने की विज्ञप्ति दी गयी. यह कैसे संभव है.
दूसरी तरफ माकपा की ओर से विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि अदालत में मामले की ग्रहणयोग्यता के संबंध में तृणमूल जो सवाल उठा रही है वह आधारहीन है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए इसे हाइकोर्ट में भेजा है. मामला यदि स्वीकार योग्य न होता तो सुप्रीम कोर्ट मामले को खारिज कर देता. उन्होंने राज्य चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाया और कहा कि आयोग राज्य सरकार के निर्देश पर चल रहा है. आयोग ने सर्वदलीय बैठक में विज्ञप्ति की बात नहीं बतायी. बाद में सत्ताधारी पार्टी के निर्देश पर चुनाव की तारीख की घोषणा की गयी.
उन्होंने यह भी कहा कि सभी राजनीतिक दलों को नामांकन जमा देने का अधिकार है. आम लोगों के मतों से उम्मीदवार चुने जायेंगे. यही असली लोकतंत्र है. संविधान के तहत आयोग को अधिकार मिले हैं. उसके ही तहत समयसीमा बढ़ायी गयी. यह फैसला गलत है या सही इसका फैसला कोई राजनीतिक दल नहीं कर सकता. अदालत का समय समाप्त हो जाने के बाद मामले की सुनवाई गुरुवार को निर्धारित की गयी है.

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