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भाषा-साहित्य से कट रही युवा पीढ़ी

केएनयू के बंगला विभाग का दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आसनसोल : काजी नजरूल विश्वविद्यालय के विद्या चर्चा भवन के सेमिनार हाल में बंगला विभाग का दोदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार मंगलवार से शुरू हुआ. इसका विषय -‘स्वाधीनता उत्तर बांगला साहित्य’ था. पदम भूषण सम्मान से सम्मानित बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय के बंगला विभाग के प्रोफेसर एमेरिटास एनीसूज्जामान […]

केएनयू के बंगला विभाग का दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार
आसनसोल : काजी नजरूल विश्वविद्यालय के विद्या चर्चा भवन के सेमिनार हाल में बंगला विभाग का दोदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार मंगलवार से शुरू हुआ. इसका विषय -‘स्वाधीनता उत्तर बांगला साहित्य’ था.
पदम भूषण सम्मान से सम्मानित बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय के बंगला विभाग के प्रोफेसर एमेरिटास एनीसूज्जामान ने संबोधित किया. जातीय कवि काजी नजरूल इस्लाम विश्वविद्यालय, त्रिशाल बांग्लादेश के कुलपति प्रो. मोहित उल आलम, ढाका विश्वविद्यालय के बंगला विभाग के प्रो. विश्वजीत घोष, बर्दवान विश्वविद्यालय के बंगला विभाग के प्रो. शिवब्रत चटोपाध्याय, बर्दवान विश्वविद्यालय के बंगला विभाग की प्रो. सुनीता चक्रवर्ती, काजी नजरूल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ साधन चक्रवर्ती, बंगला विभाग के प्रधान डॉ दयामय मंडल,संयोजक सह बंगला विभाग की सहायक प्रोफेसर मोनालिसा दास तथा कोलकाता से आये प्रो. सह कवि सुबोध सरकार आदि उपस्थित थे.
आरंभ में संगीत प्रस्तुत किया गया. डॉ मंडल ने अतिथियों का स्वागत किया. वक्ताओं ने कहा कि बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में बंगला भाषा साहित्य को विकसित और बेहतर ढंग से प्रचारित किये जाने की जरूरत है.
आधुनिकता के चकाचौंध में लोग अपनी मातृ भाषा, संस्कृति, साहित्य को भूलते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि काजी नजरूल ने ब्रिटिश औपनेवेशिक माहौल में अपनी भाषा की लड़ाई जारी रखी थी.
कवि श्री सरकार ने बताया कि आजादी के पहले व आजादी के बाद साहित्य व संस्कृति की अलग-अलग प्राथमिकताएं थी. फलस्वरूप साहित्य सृजन इससे प्रभावित रहा. पराधीन देश के साहित्यकारों के समक्ष स्वतंत्रता मुख्य था. फलस्वरूप अधिक साहित्य इसी को केंद्र कर लिखे गये.
पराधीन समय में साहित्य, मन के भाव की खुल कर व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं थी. हालांकि विद्रोही कवि नजरूल ने खुल कर अपने साहित्य में ब्रिटिश विरोधी साहित्य और संस्कृति क ा सृजन किया था. उन्होंने बताया कि 1947 के बाद दोनो ही देश भारत के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में अलग अलग साहित्यिक परिस्थितियां थीं. उस समय शरणार्थी समस्या, जातिगत समस्या, मार काट और अलगाववाद की प्रबल समस्या थी.
दोनों ही देशों में बंगला संस्कृति, भाषा, इतिहास के उन्नयन के बीना इन देशों का उन्नयन संभव नहीं है. श्री सरकार ने कार्यक्रम के दौरान उपस्थित स्टूडेंट्स की संख्या पर खुशी जताते हुए कहा कि कोलकाता तथा जादवपुर विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में इतने स्टूडेंट्स की संख्या नहीं जुटती है. नयी पीढ़ी बांग्ला को अधिक महत्व नहीं देती है. उनके लिए अंग्रेजी काफी महत्वपूर्ण हो गयी है. कैरियर की दौड़ में भाषा का महत्व कम हो गया है. इसलिए वे ऐसे कार्यक्रमों में भागीदारी नहीं करते हैं.

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