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दुर्गापुर : आस्था और विश्वास के साथ चित्रांसों ने की चित्रगुप्त पूजा
दुर्गापुर : यमलोक में मृत्युलोकवासियों का लेखा-जोखा रखने वाले कलम-दवात के आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा कंप्यूटर युग में भी उसी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है, जिस आस्था के साथ इसे कलम दवात के जमाने में की जाती थी. आज जमाने के साथ भले ही लेखन की परंपरा बदल गई है, […]
दुर्गापुर : यमलोक में मृत्युलोकवासियों का लेखा-जोखा रखने वाले कलम-दवात के आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा कंप्यूटर युग में भी उसी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है, जिस आस्था के साथ इसे कलम दवात के जमाने में की जाती थी.
आज जमाने के साथ भले ही लेखन की परंपरा बदल गई है, लेकिन वह आस्था कंप्यूटर युग में आज भी पूर्ववत् बरकरार है. कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की द्वितीया तिथि शनिवार को कायस्थ समाज के लोगों ने श्री श्री चित्रगुप्त महाराज की आराधना करने के साथ कलम-दवात की पूजा की. शिल्पांचल व इसके आसपास के इलाके में चित्रांसों ने अपने-अपने घरों में पूरे िवधि-िवधान के साथ श्री श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा की.
इसके अलावा श्री श्री चित्रगुप्त वेलफेयर सोसाइटी, दुर्गापुर के तत्वावधान में भी कायस्थ समाज के लोगों ने श्रीश्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा-अर्चना की गई. इस मौके पर संस्था के अध्यक्ष एसी निगम, सचिव पीके श्रीवास्तव सह सचिव दीपक प्रकाश सहित काफी संख्या में समाज के लोग उपस्थित थे. पूजा-अर्चना के बाद समाज के लोगों ने सहभोज में भाग लिया. खास बात यह कि इस दिन वे कलम को लेखनी के लिए स्पर्श तक नहीं करते हैं. हालांकि, बदलते जमाने में पूरे दिन कलम स्पर्श नहीं करने की मान्यता गौण हो गयी है.
पूजा में ही काम आती है दवात: एक समय था जब दवात की स्याही में कलम डुबोकर लिखने की परंपरा थी. तब दुकानदार को अपना लेखा-जोखा रखना होता था या बच्चों को अपनी पढ़ाई करनी होती थी, उसी का उपयोग होता था.
अब तो दवात की अहमियत केवल पूजा तक ही सिमट कर रह गई है. अब वह दिन कहां जब बच्चे दवात में कलम डुबोकर कापियों को अपनी लेखनी से भरा करते थे.
कैसे आया बदलाव: कंडा की कलम और दवात से शुरू परंपरा आज लीड व प्वाइंटर वाले पेन तक पहुंच गई है. कलम दवात के बाद पहले फाउंनटेन पेन(स्याही भरकर लिखने वाली नीब वाली कलम) का जमाना आया. फिर लीड व प्वाइंटर वाले पेन आये. यूज-थ्रो और फिर जेल पेन का जमाना आया और अब तो ब्रांडेड पेन भी आ गये हैं. इन सबसे अलग लेखनी की परंपरा ने कंप्यूटर के की-बोर्ड को भी अपना लिया.
भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कैसे: प्राचीन ग्रंथों के आधार पर कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के मुख्य से ब्रह्मण, बाहु से क्षत्रीय, उदर से वैश्य तथा पाव शुद्र की उत्पति हुई तथा इनके वर्ण के आधार पर कार्य संपादित होते रहे. ब्रह्मा जी की आज्ञा से धर्मराज जी सबका कार्य देखते रहे. काफी परेशानी के बाद ब्रह्मा जी 10 हजार वर्ष तक महाविष्णु जी का ध्यान लगाएं, जब ध्यान टूटा तो उनके सामने एक दिव्य पुरूष हाथ में कलम-दवात, छुरी तथा पीतांबर वस्त्र खड़े थे. यहीं अवतारी पुरूष भगवान चित्रगुप्त है.
पूजा में विशेष: चूंकि कायस्थ लोग भगवान चित्रगुप्त के वंशज है. चित्रगुप्त जी सभी जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं तथा कर्मों के आधार पर दण्ड की व्यवस्था करते हैं, इसलिए कलम, दवात की पूजा विशेष तौर पर की जाती है. लेखनी ही जीविकोपार्जन का मुख्य साधन रहा है. इसी मंत्र को लिखकर भगवान के प्रति समिर्पत करते हैं.
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