कोलकाता: साढ़े तीन वर्ष के तृणमूल कांग्रेस की सरकार के खिलाफ वाम मोरचा का अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा में 142 के मुकाबले 51 मतों से गिर गया. हालांकि अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उपस्थित नहीं थीं. इसका विरोध करते हुए कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया.
पूर्व निर्धारित नहीं रहने के बावजूद मंगलवार की सुबह विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के नेतृत्व में बिजनेस एडवाइजरी (बीए)कमेटी की बैठक हुई. बैठक में तय किया गया कि विपक्ष के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्र द्वारा पेश किये गये अविश्वास प्रस्ताव पर मंगलवार को ही बहस होगी. बीए कमेटी की बैठक के प्रस्ताव को स्वीकृति के लिए विधानसभा में पेश किये जाने पर कांग्रेस ने विरोध किया और सारे दिन के लिए सदन का बहिष्कार किया. कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक डॉ मानस भुइंया ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सदन की नेता हैं, लेकिन वह सदन में उपस्थित नहीं हैं. हालांकि उनकी अनुपस्थिति में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होना गैर कानूनी नहीं है, लेकिन यह विधानसभा की परंपरा के खिलाफ है. इसके साथ ही कांग्रेस ने पहले अविश्वास प्रस्ताव जमा दिया था, लेकिन माकपा के साथ सांठगांठ कर कांग्रेस के प्रस्ताव को लंबित रख दिया गया, जो स्वत: आज वामो के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद खारिज हो गया है. कांग्रेस इसका विरोध करती है.
तृणमूल सरकार को ही हटा कर सांप्रदायिकता का मुकाबला संभव : सूर्यकांत
अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए विपक्ष के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि वर्तमान सरकार को हटा कर ही राज्य में सांप्रदायिकता से मुकाबला संभव है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री दिल्ली धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए गयी थी, लेकिन उनकी गतिविधियों से स्पष्ट हो गया है कि उनका उद्देश्य क्या था. तृणमूल कांग्रेस राज्य में सांप्रदायिकता में घी डाल रही है. उन्होंने कहा कि वास्तव में मुख्यमंत्री की ही इस सरकार पर आस्था नहीं है, इस कारण ही वह उपस्थित नहीं हैं. मुख्यमंत्री ने अगले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का अनुरोध किया था, ताकि वह रह सकें, लेकिन चूंकि उनकी बातों पर विश्वास नहीं है. इस कारण वे लोग अगले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने पर राजी नहीं हुए. उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था की स्थिति में गिरावट आयी है. महिला उत्पीड़न के मामले में बंगाल नंबर वन हो गया है. राज्य सरकार ने सारधा मामले की सीबीआइ जांच में सर्वोच्च न्यायालय में सहयोग का आश्वासन दिया था, लेकिन कानून मंत्री सीबीआइ कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन कर रही थीं. राज्य में रोजवैली को छोड़ कर 136 चिटफंड कंपनियों ने 60 हजार करोड़ रुपये की लूटपाट की है. उन्होंने कहा कि वे लोग जानते हैं कि इस अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को हटाया नहीं जा सकता, लेकिन वह सरकार को सचेत करना चाहते हैं.
राज्य को अशांत करने की कोशिश : पार्थ
अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस में भाग लेते हुए राज्य के संसदीय व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य में शांति है और विकास हो रहा है. लेकिन विरोधी दल राज्य को अशांत करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने विधानसभा में पारित चिटफंड विरोधी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए 29 अक्तूबर, 2014 को तथा 26 सितंबर, 2014 को राजनाथ सिंह को पत्र लिखा था, लेकिन पत्र पाने की स्वीकृति के सिवा कोई जवाब नहीं आया. इसके पहले भी पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे व पी चिदंबरम को राज्य सरकार पत्र लिख चुकी है, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को विशेष कार्य से दिल्ली जाना पड़ा, इस कारण वह अविश्वास प्रस्ताव में उपस्थित नहीं रह सकीं. उन्होंने अगले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने का अनुरोध किया था, जिसे विपक्ष नहीं माना. उन्होंने कहा कि वह प्रस्ताव दे रहे हैं कि 1980 से राज्य की चिटफंड कंपनियों को लेकर एक प्रस्ताव पेश हो. इससे विपक्ष के कई नेता पर गाज गिर जायेगी. उन्होंने कहा कि यह अविश्वास प्रस्ताव राजनीतिक उद्देश्यप्रेरित, जनसमर्थनहीन है. राज्य के लोग इसके लिए विपक्ष को शिक्षा देंगे.