मियाजाकी प्रजाति के एक आम की कीमत 10,000 रुपये तक होती है.
प्रवीण मुंडा. जापान का मियाजाकी आम दुनिया का सबसे महंगा आम है. बताया जाता है कि मियाजाकी प्रजाति के एक आम की कीमत तकरीबन 10,000 रुपए तक होती है. जबकि एक किलो आम की कीमत जापान में ढाई से तीन लाख रुपये तक है. भारत में भी यह आम काफी महंगे दाम में बिकता है. जाहिर है कि इसे खरीदना आम आदमी के बस की बात नहीं. पर रांची में कुछ लोग हैं जिन्होंने मियाजाकी आम का पौधे लगाया है. कमाल की बात यह है कि डेढ़-दो साल पहले लगाये गये आम के पौधे अब बड़े हो गये हैं और इनमें फल भी आ गये हैं. सिर्फ आम ही नहीं रांची में अब सेब भी उगाये जा रहे हैं. अमूमन सेब का उत्पादन ठंडे इलाके में होता है, लेकिन रांची में उगाये जानेवाले सेब यहां के मौसम के अनुकूल हैं और गर्मियों में फल भी रहे हैं.हवाईनगर में रहनेवाले मनोरंजन बिरुआ ने मियाजाकी आम लगाया है. मनोरंजन ने बताया कि 2023 में मियाजाकी आम के दो पौधे लगाये थे. दोनों पौधे अब बड़े हो गये हैं और इस साल दोनों में ही मंजर आये. एक पौधे में कीड़े लगने से आम नहीं हो पाया, लेकिन दूसरे पौधे में फल आ गये हैं. थोड़े बैगनी और लालिमा लिए ये फल न सिर्फ देखने में अनूठे हैं. बल्कि स्वाद में भी खास हैं.
कोकर निवासी आलोक जोजोवार के यहां भी मियाजाकी का पौधा लगा हुआ है. आलोक ने कहा कि इतने महंगा आम खरीदकर खाना संभव नहीं था. इसलिए इसका पौधा ही खरीद लिया. पिछले वर्ष अगस्त में एक पौधा लगाया था और इस साल फल भी आ गये हैं. आलोक ने कहा कि अब और पौधे लगाने का इरादा है.एक आम लगभग 350 ग्राम का होता है
मियाजाकी आम जापान में होता है. इसे एग ऑफ सन तथा जापानी में ताईयो नो तोमागो भी कहते हैं. यह लगभग 350 ग्राम वजन का होता है. बैगनी और गहरे लाल रंग के ये आम स्वादिष्ट भी होते हैं. लंबे समय तक दुर्लभ किस्म के यह आम सिर्फ जापान में ही मिलता था. हाल के कुछ वर्षों में इनके पौधे बंगाल में लाये गये, जहां इनके बागान हैं. रांची में जो पौधे मिल रहे हैं, वे बंगाल से ही आ रहे हैं. ट्राइब कार्ट के मनीष आईंद की नर्सरी में इनके पौधे उपलब्ध हैं.रांची और खूंटी में सेब का भी हो रहा उत्पादन
कांके ब्लॉक के पास रहनेवाले मैकलीन लकड़ा के यहां सेब की फसल लहलहा रही है. घर में चार पौधे लगाये थे, जिसमें तीन बचे थे जो अब बड़े हो गये हैं. दो पौधों में सेब फले हुए हैं. एक पेड़ में करीब 40-45 सेब हुए हैं जबकि दूसरे में 8-10. मैकलीन इससे काफी उत्साहित हैं. उन्होंने कहा : अब अपने कर्रा गोविंदपुर स्थित गांव में बड़े पैमाने पर सेब के पौधे लगाने की सोच रहा हूं. खूंटी के दिलबर केरकेट्टा ने बताया कि सेब का तीन पौधा लगाया था. 2021 में लगाये गये पौधे अब बड़े हो गये हैं. इन पौधों में सिर्फ गोबर के खाद का ही इस्तेमाल किया था. एक पेड़ में लगभग 30 फल लगे. अन्य पेड़ों में आठ दस फल आये हैं. उन्होंने बताया कि तोरपा में भी एक व्यक्ति सेव की खेती कर रहे हैं. पलांडू के पास रहनेवाले रिचर्ड प्रदीप तोपनो के लगाये सेव के पौधें भी अब फल देने लगे हैं. डॉ राजन ने ओरमांझी स्थित बिमला हरिहर इंस्टीट्यूट ऑफ फॉर्मेसी में सेब के 15 पौधे लगाये हैं. ये हनी क्रिस्प वेराइटी के हैं. दो साल हो गये हैं. उन्होंने कहा कि यह किस्म चौथे साल से फल देने लगती है. रांची, और खूंटी में जिन सेब का उत्पादन हुआ है, उनमें ज्यादातर माइकल प्रजाति की है. इसके अलावा एना, डोरसेट गोल्डेन और ट्रॉपिक स्वीट तथा हनी क्रिस्प वेराइटी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है