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झारखंड की धरोहरों की कहानी बयां कर रही ‘बियॉन्ड दी फॉरेस्ट’ नामक पुस्तक

दी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स झारखंड चैप्टर ने एक रिसर्च टीम के सहयोग से पुस्तक ‘बियॉन्ड दी फॉरेस्ट’ जारी की है. इस टीम में अभिषेक कुमार, अनिला सुरीन, रोनाल्ड टोप्पो और अमन आर खाखा शामिल थे.

रांची : दी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स झारखंड चैप्टर ने एक रिसर्च टीम के सहयोग से पुस्तक ‘बियॉन्ड दी फॉरेस्ट’ जारी की है. इस टीम में अभिषेक कुमार, अनिला सुरीन, रोनाल्ड टोप्पो और अमन आर खाखा शामिल थे. इन्होंने आइआइए झारखंड के चैप्टर के पेट्रॉन अमित बारला, संदीप कुमार झा, अनुराग कुमार, अरुण कुमार, लेफ्टिनेंट डॉ डीजे बिश्वास, अपूर्ब मिंज और जिला उल रहमान के मार्गदर्शन में झारखंड के पहाड़,

जंगल, ग्रामीण इलाकों और शहर के बीचोबीच स्थित एतिहासिक धरोहरों की पहचान की है. हालांकि, कई इमारतों में समय के साथ हुए बदलाव की वजह से इन्हें अब तक राष्ट्रीय धरोहर में शामिल नहीं किया जा सका है. पर इनके ऐतिहासिक प्रमाण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

सात खंडों में ऐतिहासिक संदर्भ

पुस्तक में समाहित धरोहरों को सात खंडों में बांटा गया है. इनमें प्रागैतिहासिक काल, आदिवासी जनजातियों की कहानी, जंगल-पहाड़ में स्थित मंदिर, मुगल और स्थानीय साम्राज्य काल में बने ऐतिहासिक स्थल, ब्रिटिश और मिशनरी के आने पर बनी इमारतों, आजादी और जीवन को बयां करती इमारतें और झारखंड बनने के बाद बनी 130 आकर्षक इमारतों का जिक्र है.

इन खास आर्किटेक्ट को समझने की जरूरत

पिठोरिया मस्जिद

इस ईदगाह की नींव 1540 से 1545 के बीच रखी गयी थी. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी ने यह ईदगाह बनवायी थी. उस समय स्थानीय लोग यहां इकट्ठा होकर नमाज अदा करते थे.

तेलियागढ़ किला

तेली जमींदार ने इसे गेटवे ऑफ बंगाल के रूप में तैयार किया था. उस वक्त छोटानागपुर प्रवेश करनेवालों को इस किले पास से होकर गुजरना पड़ता था. 20वीं शताब्दी के शुरुआत में किले के चारों ओर बुद्ध की आकृति बने स्तंभ मिले थे. किला पूरी तरह काले पत्थरों और ईंट से बने होने के कारण काले रंग का दिखायी देता है.

गोंडवाना हाउस, रांची

राजधानी रांची में कांके रोड स्थित सीएमपीडीआइ परिसर में गोंडवाना हाउस स्थित है. इसे वर्ष 1900 में गोंदा

के राजा ने तैयार कराया था. इसे वर्ष 1975 में भारत सरकार ने सीएमपीडीआइ को सौंप दिया.

जामी मस्जिद, साहिबगंज

16वीं शताब्दी में राजा मान सिंह को राजा अकबर का संरक्षण प्राप्त था. 1592 में इसे बंगाल की राजधानी घोषित किया गया था. मुगल वास्तुकला की यह मस्जिद से ईंट बनी है. इसके मुख्य प्रांगण में प्रवेश के लिए तीन रास्ते हैं.

हिलटॉप किला, सिसई

नवरत्नगढ़ किले के उत्तर-पूर्वी पहाड़ पर एक किला स्थित है. इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं ने कराया था. पहाड़ पर बना यह किला जोगीमठ से भी दिखता है. लाहौरी ईंट और सुर्खी से बना यह किला बंगाल वास्तुकला का नमूना है. इसे संभवत: नवरत्नगढ़ के साम्राज्य पर नजर रखने के लिए बनाया गया था.

स्टेपवेल नवरत्नगढ़

17वीं शताब्दी में नगवंशी राजाओं ने आसपास के गांवों में पानी की व्यवस्था करते हुए बावड़ी या सीढ़ीनुमा डोभा (स्टेपवेल) का निर्माण कराया था. मूलत: इसे जल संचयन के लिए बनाया गया था. सुर्खी और ईंट से निर्मित बावड़ी को उत्तर भारतीय वास्तुकला में तैयार किया गया था.

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