आज है शिक्षक दिवस है. यह दिन देश के पूर्व राष्ट्रपति, विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है. डॉ राधाकृष्णन का जन्म 05 सितंबर 1888 को हुआ था. आज का दिन इसलिए अहम है कि क्योंकि हमें नैतिकता, ईमानदारी, दया और नम्रता के रास्ते पर स्थापित करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी शिक्षकों पर ही होती है. इस खास दिन पर पढ़िए लाइफ @ सिटी की विशेष प्रस्तुति.
डॉ केसी प्रसाद के नाम से गणित की दुनिया से वास्ता रखनेवाला हर शख्स वाकिफ होगा. पढ़नेवालों के अलावा भी एक शिक्षक के रूप में डॉ केसी प्रसाद को लोग जानते थे. आज भी 12वीं के कोर्स में इनकी किताब टेक्स्ट बुक ऑफ मैट्रिसेस एंड लाइनर अलजेब्रा की पढ़ाई होती है. इनकी किताब पढ़कर कई विद्यार्थियों ने पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया है. वहीं महान गणितज्ञ रामानुजम की जयंती सबसे पहले रांची में मनानेवालों में भी इनका नाम शुमार है. रांची विवि के पीजी मैथ्स विभाग की शान कहे जाने वाले डॉ केसी प्रसाद की अपनी अलग ही पहचान है.
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डॉ केसी प्रसाद ने रांची कॉलेज, जो वर्तमान में डीएसपीएमयू है, में मैथ्स के शिक्षक के रूप में 1966 में अपना योगदान दिया. जिसके बाद ये 1980 में रांची विवि के पीजी मैथ्स विभाग चले गये. यहां पर इन्होंने 1995 में पीजी विभागाध्यक्ष की कमान संभाली और इसके बाद लगातार 14 साल तक पीजी विभागाध्यक्ष के रूप में काम किया और सेवानिवृत्त हुए. इस दौरान ये एकेडमिक स्टाफ कॉलज के डायरेक्टर रहे और 2007 में साइंस डीन भी बने.
डिग्री लेवल पर 15 वर्ष और पीजी स्तर पर इन्होंने 30 वर्ष शिक्षण कार्य किया और कई विद्यार्थियों को तराशा. इनके विद्यार्थियों में जैक के चेयरमैन डॉ अनिल कुमार महतो, कोलाकाता यूनिवर्सिटी की डॉ सुतापा मुखर्जी, आइएसएम धनबाद के प्रोफेसर शिशिर गुप्ता सहित कई नाम शामिल हैं. 22 से अधिक इनके रिसर्च राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हैं.
डॉ केसी प्रसाद ने कहा कि आज के शिक्षकों को नया विषय सीखने का जुनून होना चाहिए और उन्हें बेहतर तैयारी करनी चाहिए, जिससे वह अपने विद्यार्थियों को पढ़ा सकें. लेकिन आज के शिक्षक नया पढ़ने से बचना चाहते हैं.
संस्कृत जैसी भाषा को युवाओं के लिए रुचिकर बनाने और इसे अलग पहचान दिलानेवाले रांची विवि के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो चंद्रकांत शुक्ल अब भी शिक्षा जगत में याद किये जाते हैं. यही वजह है कि वर्ष 2013 में इन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित भी किया. इन्हें राष्ट्रपति ने सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर दिया. इतना ही नहीं, भाषा के उत्थान के लिए इन्हें महामना संस्कृत सेवा सम्मान सहित हायर एडुकेशन एंड डेवलपमेंट अवार्ड, ओड़िशा संस्कृत एकेडमी द्वारा मनापत्रम, राष्ट्रीय संस्कृत परिषद द्वारा महाकवि भाषा संस्कृत सेवा सम्मान व विद्यासागर सम्मान से नवाजा गया.
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि के प्रोवीसी व प्रभारी वीसी रहे :
रांची विवि संस्कृत विभाग के अध्यक्ष के अलावा प्रो शुक्ल कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि के प्रतिकुलपति व प्रभारी कुलपति रह चुके हैं. लगभग 74 वर्षीय प्रो शुक्ल ने अपने निर्देशन में 26 से अधिक शोध कराया. वहीं 87 से अधिक रिसर्च पब्लिकेशन है. यूजीसी ने इनकी कार्यकुशलता को देखते हुए कालिदास साहित्य एवं कामकला पर माइनर व कालिदास साहित्य एवं धर्मशास्त्र पर मेजर प्रोजेक्ट भी दिया. इन्होंने सात से अधिक पुस्तकें भी लिखी हैं, जो विवि और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद हैं. वहीं एनसीइआरटी द्वारा भी इनकी पुस्तकें स्वीकार की गयी हैं. शांतस्वभाव वाले प्रो शुक्ल जितने प्रिय विद्यार्थियों के बीच रहे, उतने ही लोकप्रिय शिक्षकों के बीच भी रहे. आज भी वह पढ़ाई करने या कुछ लिखने से पीछे नहीं हटते हैं.
हिंदी साहित्य या तुलसी साहित्य की जब भी चर्चा होती है, तब रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ वचनदेव कुमार का नाम सबसे पहले आता है. बेगूसराय के रहने वाले डॉ वचनदेव ने अपनी लेखनी से एक अलग ही छाप छोड़ी है. इनके शिष्य रहे हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ जंगबहादुर पांडे कहते हैं : मेरे व्यक्तित्व निर्माण में उनका बहुत बड़ा योगदान है. वर्तमान समय में ऐसा गुरु मिलना मुश्किल है. डॉ वचनदेव कुमार ने एमए, पीएचडी और डी.लिट की डिग्री पटना विश्वविद्यालय हासिल की. 1976 में रांची विवि में योगदान दिया. वे हिंदी विभाग के तीसरे विभागाध्यक्ष बने. ्कवि की बात हो या समीक्षक की, डॉ वचनदेव कुमार हमेशा याद किये जायेंगे. इनके काव्य संकलन में ईहामृग, जो अजन्मा सुनो, कविताएं बेमौसम की, कविताएं धूप-छांव की, वचनदेव की व्यंग्य कविताएं और दर्द की तस्वीर शामिल है. वहीं शोध ग्रंथ में तुलसी के भक्त्यात्मक गीत और रामचरितमानस में अलंकार योजना शामिल है. व्याकरण और निबंध पर भी लिखा है, जिसमें व्याकरण भास्कर, वृहत व्याकरण भास्कर, निबंध भास्कर और वृहत निबंध भास्कर शामिल है.
अच्छा शिक्षक विद्यार्थी का नजदीकी मित्र भी होता है
– अरविंद राज जजवाड़े, 2018 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार
आर मित्रा डिस्ट्रिक्ट सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस, देवघर के शिक्षक अरविंद राज जजवाड़े कहते हैं कि एक अच्छा शिक्षक विद्यार्थी के पथ प्रदर्शक ही नहीं, उसका मित्र भी होता है. हालांकि, एक सच्चा शिक्षक बनना आसान नहीं है. शिक्षण पूर्णकालिक सेवा है. जो इसे पेशा समझते हैं, वे शिक्षक बन ही नहीं पाते हैं. शिक्षण कार्य कभी पूजनीय था, लेकिन आज लोग शिक्षकों की कर्तव्य निष्ठा पर सवाल उठाते हैं. समाज की बदलती सोच ही सबसे बड़ी चुनौती है. अरविंद राज को अपने छात्रों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखना पसंद है, ताकि वे खुलकर अपनी बातें रख सकें. वे कहते हैं : किशोरावस्था में छात्रों को मोबाइल और नशा से बचाना सबसे बड़ी चुनौती है.
शिक्षक को अपने अंदर के गुरु को बाहर लाना होगा
-मनोज सिंह, वर्ष 2021 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार
हिंदुस्तान मित्र मंडल मध्य विद्यालय गोलमुरी, जमशेदपुर के शिक्षक मनोज कुमार सिंह कहते हैं : आदर्श शिक्षक वे हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में अपने आदर्शों और मानकों के साथ काम करते हैं. शिक्षा को एक साक्षर, सशक्त और सद्गुणी समाज के निर्माण का माध्यम मानते हैं. आज गुरु-शिष्य संबंध भी बदल गया है. डिजिटल शिक्षा के आगमन से शिक्षा का तरीका बदल गया है. गुरु-शिष्य संबंध अब वर्चुअल प्लेटफाॅर्म के माध्यम से भी साकार हो रहे हैं. शिक्षकों को शिक्षा को नवाचारी तरीके से प्रदान करने के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है, जो उन्हें उनके छात्रों को सही दिशा में गाइड करने में मदद करता है. इसके बावजूद, गुरु-शिष्य संबंध की मूल भावना नहीं बदली है.