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हम से ज्यादा सरकार को है पैसों की जरूरत

रांची : मजदूर दिवस पर एक मई के दिन लातेहार जिला के मनिका प्रखंड के मजदूरों ने मनरेगा की मजदूरी में बढ़े एक रुपये राज्य सरकार को लौटा दिये. ग्राम स्वराज मजदूर संघ और मनरेगा वाच, मनिका के बैनर तले प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यांद्रेज व बलराम जी की अगुआई में जुटे मजदूरों ने इसके लिए सरकार […]

रांची : मजदूर दिवस पर एक मई के दिन लातेहार जिला के मनिका प्रखंड के मजदूरों ने मनरेगा की मजदूरी में बढ़े एक रुपये राज्य सरकार को लौटा दिये. ग्राम स्वराज मजदूर संघ और मनरेगा वाच, मनिका के बैनर तले प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यांद्रेज व बलराम जी की अगुआई में जुटे मजदूरों ने इसके लिए सरकार की निंदा की.
मौके पर आयोजित कार्यक्रम के बाद इस संबंध में सामूहिक रूप से एक पत्र मुख्यमंत्री को भेज मजदूरों ने कहा है कि वर्ष 2016 में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी में झारखंड सरकार ने मात्र पांच रुपये बढ़ाये थे, उस दौरान भी नाराज मजदूरों ने प्रधानमंत्री को वो पैसे विरोध स्वरूप लौटा दिये थे. पर इस वर्ष उसे और भी कम कर एक रुपये की वृद्धि की गयी. इस कारण एक बार फिर नाराज मजदूर वह पैसे मुख्यमंत्री को लौटा रहे हैं. इस दौरान मुख्यमंत्री को संबोधित एक पत्र भी लिखा गया है.
क्या लिखा है मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में
आज (एक मई) अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है. पिछले वर्ष 2016 में इसी दिन मामूली रूप से मनरेगा के मजदूरी दर में वृद्धि की गयी थी. झारखंड में मात्र पांच रुपये बढ़ाये गये थे. इससे आक्रोशित मजदूरों ने उस वक्त विरोध में प्रधानमंत्री को पांच-पांच रुपये वापस कर दिये थे. पुन: इस वर्ष सरकार ने मनरेगा की मजदूरी सिर्फ एक रुपये बढ़ायी है. यह देश के करोड़ों मनरेगा मजदूरों के साथ धोखा है.
एक तरफ राज्य के विधायकों के वेतन मद में, जो पहले ही एक लाख से अधिक है, लगातार बढ़ोतरी की जा रही है, ऊपर से लग्जरी गाड़ी, शानदार बंगले व अन्य सुविधाएं भी, वहीं हम मजदूरों को सिर्फ एक रुपये की बढ़ोतरी क्यों? मनरेगा में अत्यंत कम मजदूरी होने एवं उसका अनियमित भुगतान होने से मजदूरों की रुचि मनरेगा के प्रति नकारात्मक होने लगी है. हम इतनी कम बढ़ी हुई मजदूरी को लेकर बहुत चिंतित हैं.
हमें लगता है कि सरकार के पास पैसे की कमी हो रही है, वरना मनरेगा की मजदूरी कम से कम राज्य की न्यूनतम मजदूरी तक तो जरूर बढ़ती (याद रहे झारखंड में अभी न्यूनतम मजदूरी 224 रुपये है). कम मजदूरी देना पूरी तरह अन्याय और अवैधानिक है. कम से कम राज्य सरकार तो राज्य मद से न्यूनतम मजदूरी का भुगतान कर ही सकती थी. हमें ऐसा लगता है कि हमसे ज्यादा राज्य सरकार को इस एक रुपये की जरूरत है.
आखिर सरकार के खर्च भी तो इतने सारे हैं. कंपनियों को टैक्स व अन्य प्रकार की छूट देने और सस्ते दाम पर जमीन व अन्य संसाधन देने में भी तो सरकार का पैसा जाता होगा. यह सब सोचते हुए हम मनरेगा श्रमिक सामूहिक निर्णय ले राज्य में बढ़ी हुई मनरेगा मजदूरी, अर्थात एक रुपये सरकार को वापस कर रहे हैं. आशा है कि हम सब मजदूरों द्वारा लौटाये गये पैसे से आप अपने कंपनी मालिक दोस्तों व कर्मचारियों को और खुश कर पायेंगे.

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