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रिम्स : छह लाख की सर्जरी हुई मुफ्त में

रांची : बोकारो की रहनेवाली साढ़े चार साल की मूक-बधिर सृष्टि अब सुन आैर बोल सकेगी. उसके कान में कॉक्लर लगने के बाद यह संभव हो पाया है. सोमवार को रिम्स के इएनटी विभाग में देश के प्रसिद्ध कॉक्लर इंप्लांट विशेषज्ञ डॉ राजेश विश्वकर्मा की देखरेख में सृष्टि का ऑपरेशन किया गया. ऑपरेशन में रिम्स […]

रांची : बोकारो की रहनेवाली साढ़े चार साल की मूक-बधिर सृष्टि अब सुन आैर बोल सकेगी. उसके कान में कॉक्लर लगने के बाद यह संभव हो पाया है. सोमवार को रिम्स के इएनटी विभाग में देश के प्रसिद्ध कॉक्लर इंप्लांट विशेषज्ञ डॉ राजेश विश्वकर्मा की देखरेख में सृष्टि का ऑपरेशन किया गया. ऑपरेशन में रिम्स के इएनटी विभाग के चिकित्सकों की टीम भी शामिल थी. कॉक्लर इंप्लांट के बाद बच्ची पूरी तरह स्वस्थ है.

रिम्स के इएनटी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ पीके सिंह ने बताया कि बच्ची जन्म से बोल नहीं पाती थी. बोकारो से बच्ची को रिम्स रेफर किया गया था. यहां प्रारंभिक जांच के बाद उसके कान में कॉक्लर डालने का निर्णय लिया गया. बच्ची के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. सरकार की ओर से मिले आर्थिक मदद से उसका आॅपरेशन संभव हुआ. ऑपरेशन में डॉ पीके सिंह, डॉ संदीप कुमार सहित एनेस्थिसिया के चिकित्सक व ऑडियोलॉजिस्ट की टीम शामिल थी. ओटी के बाहर इएनटी विभाग के डॉ रणवीर कुमार पांडेय, डॉ चंद्रकांति बिरुआ, डॉ राजेश कुमार चौधरी, डॉ विनाेद कुमार सिन्हा आदि मौजूद थे.
ऐसे काम करता है कॉक्लर इंप्लांट
डॉ विश्वकर्मा ने बताया कि कॉक्लर इंप्लांट को कृत्रिम कान कहते हैं. यह कंप्यूटराइज्ड चिप होता है. इसे रिसीवर स्टीम्युलेटर कहते हैं. इलेक्ट्रोड को मध्य कान के आगे कॉक्लिया के अंदर कान के सुननेवाली नस के साथ जोड़ दिया जाता है. स्पीच प्रोसेसर पहुंचाया जाता है. इससे मरीज के सुनने की क्षमता जागृत हो जाती है.
बिहारशरीफ के रहने वाले है डॉ विश्वकर्मा
डॉ राजेश विश्वकर्मा बिहार के बिहारशरीफ के रहनेवाले हैं. वे वर्तमान में अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज में सेवा दे रहे हैं. देश में मूक-बधिर बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह जीवन देने के लिए वह सरकार के साथ मिल कर सहयोग कर रहे हैं. विभिन्न राज्यों में जा कर वह कॉक्लर इंप्लांट की सर्जरी करते हैं.
आता है छह लाख का खर्च : अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ राजेश विश्वकर्मा ने बताया कि कॉक्लर इंप्लांट काफी खर्चीला होता है. इंप्लांट का खर्च ही 5. 80 लाख रुपये होता है, जबकि अन्य प्रक्रिया में 20 हजार रुपये अलग से खर्च होते हैं. यह इंप्लांट भारत में तैयार नहीं की जाती है, इसलिए एक गरीब परिवार के लिए यह संभव नहीं है. भारत सरकार गरीबाें को सहायता के लिए डिपार्टमेंट ऑफ परर्सन फाॅर डिसएबिलिटी (एडीआइपी) नामक कार्यक्रम शुरू किया है. इस कार्यक्रम के तहत गरीब बच्चे-बच्चियों काे सहायता पहुंचायी जाती है. इंप्लांट का पूरा खर्च सरकार वहन करती है.

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