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खरीद कर पुस्तकें पढ़नेवालों की कमी
रांची : झारखंड के पांच आदिवासी रचनाकारों की पुस्तकों का लोकार्पण शनिवार को हुआ़, इनमें आदित्य कुमार मांडी का हिंदी कविता संग्रह ‘जंगल महल की पुकार’, जोवाकिम तोपनो का हिंदी-मुंडारी नाटक ‘डीड़गर इपिल’, अगस्टिन महेश कुजूर का कुड़ुख-हिंदी काव्य संकलन ‘पूंप पून’, डॉ सिकरादास तिर्की का ‘झारखंड का इतिहास’ और वंदना टेटे का हिंदी कविता […]
रांची : झारखंड के पांच आदिवासी रचनाकारों की पुस्तकों का लोकार्पण शनिवार को हुआ़, इनमें आदित्य कुमार मांडी का हिंदी कविता संग्रह ‘जंगल महल की पुकार’, जोवाकिम तोपनो का हिंदी-मुंडारी नाटक ‘डीड़गर इपिल’, अगस्टिन महेश कुजूर का कुड़ुख-हिंदी काव्य संकलन ‘पूंप पून’, डॉ सिकरादास तिर्की का ‘झारखंड का इतिहास’ और वंदना टेटे का हिंदी कविता संग्रह ‘कोनजोगा’ शामिल है. यह कार्यक्रम सूचना भवन सभागार में हुआ़ इन सभी पुस्तकों को प्रकाशन प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन ने किया है़
इस अवसर पर सृजनधर्मी अशोक पागल ने कहा कि पुस्तकों का प्रकाशन दुरूह कार्य है़ लेखक हिम्मत से लिखते है़ येन केन प्रकारेण अपनी पुस्तकें प्रकाशित भी करा लेते हैं, पर कई बार उन्हेें खरीदार नहीं मिलते़ पढ़ने और खरीद कर पढ़ने वालों की संख्या में काफी कमी है़ स्थितियां बदलनी चाहिए़ डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने कहा कि आदिवासी सृजन में सरल-सहज बिंब हाेते है़ं आदिवासी साहित्य में उनका इतिहास बोलता है़
कवयित्री जसिंता केरकेट्टा ने जंगल महल की पुकार, कलावंती सिंह सुमन ने कोनजोगा, मुंडारी के विद्धान रेव्ह टीएस सिरिल हंस ने डीड़गर इपिल, मुंडारी लेखक कृष्णमोहन सिंह मुंडा ने झारखंड का इतिहास और कुड़ुख के विद्वान डाॅ नारायण उरांव ने पूंप पून पर अपने विचार रखे़
प्रश्नोत्तर सत्र भी हुआ़ कार्यक्रम में शरण उरांव, जीतू उरांव, श्रावणी, ज्योति लकड़ा, अजय कंडुलना, डॉ सावित्री बड़ाईक, वंदना टेटे, अश्विनी कुमार पंकज, अनीमा बिरजिया, एमआर किस्कू, डॉ शांति खलखो, डॉ सुनीता व अन्य मौजूद थे़ आयोजन झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा ने किया़
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