रांची: नेशनल इलेक्शन वाच के झारखंड चैप्टर (मंथन युवा संस्थान) एवं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(एडीआर)नयी दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जाने की संभावनाएं और चुनौतियां पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. होटल ट्राइडेंट इन में आयोजित उक्त संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए एडीआर के राष्ट्रीय समन्वयक अनिल वर्मा ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराये जाने पर व्यापक मंथन की जरूरत है.
कुछ लोगों का मानना है कि इससे चुनाव खर्च कम आयेगा और विकास कार्यों में तेजी आयेगी, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह भारत के संघीय ढांचा के खिलाफ है और इससे केंद्र सरकार को ही लाभ मिलने की संभावना अधिक है. उन्होंने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि 1999 से 2014 के बीच जिन राज्यों में संसद और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं, वहां केंद्र में रहनेवाली पार्टी को फायदा पहुंचा है. उन्होंने कहा कि एडीआर देश के अलग–अलग राज्यों में परिचर्चा का आयोजन कर रहा है, ताकि इस मुद्दे पर सघन चर्चा हो सके और इसका नफा–नुकसान नागरिक कर सके.
राज्यसभा के पूर्व सांसद अजय मारू ने कहा कि प्रारंभिक 20 सालों में एक साथ चुनाव होते रहे हैं. 1970 के बाद अलग–अलग कराये जाने की स्थिति बनी. उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराये जाने के कई फायदे हैं. इसमें खर्च कम होता है और आचार संहिता की अवधि कम होने से विकास कार्य बाधित नहीं होता है. देश में 1900 राजनीतिक पार्टियां हैं, जिनमें से 400 पार्टियां कभी चुनाव नहीं लड़ी. ऐसी पार्टियां अपने फंड काे मैनेज करने के लिए कार्य करती हैं, इसलिए ऐसी पार्टियों का पंजीकरण रद्द किया जाना चाहिए.
संसदीय अध्ययन केंद्र के अयोध्या नाथ मिश्र ने कहा कि जरूरत है कि भौगोलिक क्षेत्र और परिस्थिति के आधार को ध्यान में रखते हुए दोनों चुनाव एक साथ कराये जाने पर व्यापक सहमति बनायी जाये. दूसरे सत्र में रांची के पूर्व विधायक डॉ जेपी गुप्ता ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराया जाना आज के समय में बड़ा मुद्दा नहीं है. उन्होंने कहा कि आज देश में कई अन्य जरूरी मुद्दे हैं, जिनपर कार्य करने की जरूरत है. झामुमो के सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि यदि केंद्र से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ थोपा गया तो देश में अधिनायकवाद का जन्म होगा. सीपीआइएमएल के भुवनेश्वर केवट ने कहा कि दोनों चुनाव एक साथ कराये जाने का मामला खास तरह की विचारधारा और संघवाद से प्रेरित है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव का मुद्दा एक जैसा नहीं हो सकता. अंतिम सत्र में सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों ने दोनों चुनाव एक साथ कराये जाने के मुद्दे पर अपनी राय दी. इसमें लीड्स के एके सिंह, विकास भारती के निखिलेश मैती, आद्री के दिलीप कुमार,पीयूसीएल पीएचआरएन के हलधर महतो ने भी अपने विचार रखे. संगोष्ठी को सफल बनाने में मंथन युवा संस्थान के रंजीत, सुरेश यादव, अनूप झा, श्वेता कुमारी, मेघा,सुधीर पाल आदि की सक्रिय भूमिका निभायी.