नाव का सहारा लेना पड़ता है. इस कारण कई दिन कॉलेज छूट जाता है. ड्रेस भी गंदा हो जाता है. कई दिन तो वह नदी किनारे से वापस लौट जाती है. दीपिका कहती है कि उसके जैसे सैकड़ों विद्यार्थी प्रतिदिन जान जोखिम में डाल नाव के सहारे नदी पार कर स्कूल व कॉलेज पढ़ने जाते हैं. क्योंकि गांव से रांची आने के लिए दूसरा कोई साधन नहीं है. कई बार विद्यार्थी नाव पर चढ़ने के क्रम में गिर जाते हैं. किताब-कॉपी भी भीग जाती है. अधिक बारिश होने पर नाव भी नहीं चलती है. गांव के लाेगों ने सांसद व विधायक के पास अपनी समस्या रखी, पर अब कोई समाधान नहीं निकला.
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समस्या: नदी पार कर रांची पढ़ने आते हैं विद्यार्थी
रांची: राजधानी रांची से 15 किलोमीटर दूर बीआइटी मेसरा से सटे तुरुप गांव (सालहन पंचायत) की दीपिका कुमारी चाह कर भी प्रतिदिन कॉलेज नहीं आ पाती है. वह उर्सुलाइन इंटर कॉलेज से आइकॉम कर रही है. गांव से रांची आने के लिए स्वर्ण देखा नदी को पार करना पड़ता है, लेकिन नदी पर पुल नहीं […]
रांची: राजधानी रांची से 15 किलोमीटर दूर बीआइटी मेसरा से सटे तुरुप गांव (सालहन पंचायत) की दीपिका कुमारी चाह कर भी प्रतिदिन कॉलेज नहीं आ पाती है. वह उर्सुलाइन इंटर कॉलेज से आइकॉम कर रही है. गांव से रांची आने के लिए स्वर्ण देखा नदी को पार करना पड़ता है, लेकिन नदी पर पुल नहीं होने के कारण बरसात में परेशानी होती है.
दो नाव के सहारे आते-जाते हैं लोग
नदी में दो नाव चलती है. इसके सहारे लोग आना-जाना करते हैं. एक बार नदी पार करने के लिए पांच रुपये लगते हैं. वहीं साइकिल के लिए पांच व मोटरसाइकिल के लिए 20 रुपये देने पड़ते हैं. मो अफरोज अंसारी की दुकान गोंदली पोखर में है. वे मेसरा से प्रतिदिन गोंदलीपोखर जाते हैं. अफरोज ने बताया कि अगर वह खेलगांव, टाटीसिल्वे होते हुए गोंदली पोखर आता है, तो उसे लगभग 24 किलाेमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. वहीं नदी के रास्ते मात्र नौ किलोमीटर की दूरी तय कर वह अपनी दुकान पहुंच जाता है.
इन गांवों के लोगों को होती है परेशानी : नदी पर पुल नहीं होने से सालहन पंचायत के तुरुप, हेसल, नवा टोली, सालहन, कटहर टोली व चिलदाग के लोग प्रतिदिन जान जोखिम में डाल नदी पार करते हैं.
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