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झारखंड में प्रिंट रेट से अधिक पर बिकती है शराब, माफिया ने कमाये 100 करोड़
विवेक चंद्र रांची : झारखंड में शराब माफिया और उत्पाद विभाग के अधिकारियों का गंठजोड़ लोगों को लूट रहा है. राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत और मुद्रित (प्रिंट) रेट को शराब व्यापारी नहीं मानते. शराब व्यापारी सरकार से अलग अपनी रेट लिस्ट जारी करते हैं. प्रिंट रेट को बेकार बताते हुए स्वयं तय की गयी कीमत […]
विवेक चंद्र
रांची : झारखंड में शराब माफिया और उत्पाद विभाग के अधिकारियों का गंठजोड़ लोगों को लूट रहा है. राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत और मुद्रित (प्रिंट) रेट को शराब व्यापारी नहीं मानते. शराब व्यापारी सरकार से अलग अपनी रेट लिस्ट जारी करते हैं. प्रिंट रेट को बेकार बताते हुए स्वयं तय की गयी कीमत पर शराब बेचते हैं.
प्रिंट रेट से अधिक कीमत पर शराब बेच कर सिंडिकेट ने वर्ष 2009-10 से (इसी साल से राज्य में प्रिंट रेट पर शराब की बिक्री शुरू करने का फैसला किया गया था) अब तक 100 करोड़ रुपये से अधिक का अनुमानित मुनाफा कमाया है. शराब खरीदनेवालों से ली गयी अधिक राशि पर सिंडिकेट को इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स और टीडीएस भी नहीं देना पड़ता है. प्रिंट रेट से अधिक मूल्य पर शराब बेच ठगी कर कमाये गये मुनाफे की पूरी जानकारी होने के बावजूद उत्पाद विभाग उन पर कार्रवाई नहीं करता.
क्या है लूट का हिसाब-किताब : राज्य में शराब की बिक्री का कोटा ढाई लाख पेटी (15548740 एलपी) प्रति वर्ष निर्धारित है.
इसी तरह बियर के लिए भी राज्य भर में तीन लाख पेटी (24185700 बल्क लीटर) का कोटा तय है.यानी शराब और बियर की मिला कर कम से कम 5.5 लाख पेटी शराब पर राज्य सरकार को हर हाल में टैक्स मिलता है. सिंडिकेट की दुकानों में एक निप (क्वार्टर) शराब और एक बियर की बोतल पर प्रिंट रेट से 11 से 30 रुपये अधिक तक वसूली जाती है.
एक निप में औसतन 11 रुपये अधिक वसूली मानने पर एक पेटी शराब या बियर (12 बोतल) प्रिंट रेट से अधिक में बेच कर सिंडिकेट 500 रुपये मुनाफा कमाता है. यानी, सिंडिकेट एक वर्ष में ठगी कर 25 करोड़ रुपये कमा रहा है. गुजरे चार वर्षो में सिंडिकेट के साङोदारों ने इसी तरह से 100 करोड़ रुपये से अधिक का विशुद्ध मुनाफा कमाया है. हालांकि, राज्य सरकार को शराब के बोतल पर अंकित प्रिंट रेट पर ही टैक्स चुकाया जाता है.
चलती है सिंडिकेट की रेट लिस्ट
शराब के धंधे में सिंडिकेट की मनमानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शराब की दुकानों में सिंडिकेट की अपनी रेट लिस्ट चलती है. बोतल पर प्रिंट रेट में कहीं भी शराब नहीं बिकती. शराब के दुकानदार सिंडिकेट द्वारा प्रिंट करा उपलब्ध करायी गयी रेट लिस्ट के मुताबिक ही शराब की बिक्री करते हैं.
राज्य सरकार ने शराब बेचने के साथ बिल भी उपभोक्ता को देने का नियम बनाया गया है. बावजूद इसके किसी भी दुकानदार द्वारा ग्राहक को बिल नहीं दिया जाता है. इस बारे में कई बार उत्पाद विभाग में शिकायत दर्ज करायी गयी है. बावजूद इसके जांच और कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती रही है.
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