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झारखंड : 14 साल में बेच दिया 93 हजार करोड़ का पत्थर

सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ का, राजस्व सिर्फ 81 करोड़, बाकी पैसा कहां गया? झारखंड में पत्थर माफिया राज कर रहे हैं. एक तरफ ये पहाड़ को काट कर खत्म कर रहे हैं, वैध के साथ-साथ अवैध खुदाई कर रहे हैं, पर्यावरण को नष्ट कर लोगों के जीवन से खेल रहे हैं. दूसरी तरफ झारखंड […]

सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ का, राजस्व सिर्फ 81 करोड़, बाकी पैसा कहां गया?
झारखंड में पत्थर माफिया राज कर रहे हैं. एक तरफ ये पहाड़ को काट कर खत्म कर रहे हैं, वैध के साथ-साथ अवैध खुदाई कर रहे हैं, पर्यावरण को नष्ट कर लोगों के जीवन से खेल रहे हैं. दूसरी तरफ झारखंड सरकार को देनेवाले राजस्व की चोरी भी कर रहे हैं. यह बड़ा अपराध है.
इन लोगों ने 14 साल में 93 हजार करोड़ रुपये का पत्थर बेच दिया और सरकार को राजस्व दिया सिर्फ 515 करोड़. बाकी पैसा खुद खा गये. इस समय झारखंड में 20 हजार जगहों पर वैध-अवैध तरीके से खुदाई चल रही है. अभी सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ तक पहुंच गया है और सरकार के खाते में सिर्फ 81 करोड़ जा रहा है.
नेता-अफसर और पत्थर माफिया की सांठगांठ अपना करिश्मा दिखा रहा है. राज्य के कुछ जिलों में अफसरों ने छापामारी की और अवैध क्रशर को पकड़ा भी. यह साबित करता है कि कितने बड़े पैमाने पर अवैध खुदाई हो रही है. अगर वैध तरीके से खुदाई होती, तो सरकार के खजाने में हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये आते, जिनका उपयोग जनकल्याण के लिए होता. महालेखाकार तक ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि सिर्फ रामगढ़ जिले में 1955 करोड़ रुपये के उत्खनन का राजस्व सरकार को नहीं मिला. ऐसे-ऐसे झारखंड में 24 जिले हैं. अंदाजा लगा लीजिए कि कितनी बड़ी राशि सरकार के खजाने में जमा नहीं की जा रही है.
रांची : झारखंड में पत्थर व्यवसायियों ने 14 साल में लगभग 93 हजार करोड़ का पत्थर बेच दिया. इसमें वैध और अवैध तरीके से निकाला गया पत्थर दोनों शामिल है. वैध तरीके से पत्थर व्यवसाय करनेवालों की संख्या की तुलना में अवैध कारोबारियों की संख्या कई गुना ज्यादा है.
इसी का परिणाम है कि झारखंड से कई पहाड़ गायब हो गये और कई गायब होने की स्थिति में हैं. ताकतवर गिरोह द्वारा इसका संचालन किया जा रहा है, जिसमें राजनेता भी शामिल हैं. यही कारण है कि सरकार को बड़े राजस्व की क्षति होने के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लग पाया है.
प्रभात खबर की टीम ने जो जानकारी हासिल की है, उसके अनुसार, झारखंड में इस समय पत्थरों का सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ तक पहुंच गया है. इस धंधे में जुड़े लोग, अफसर और कारोबारियों से मिली जानकारी के अनुसार, इस 20 हजार करोड़ में से 17 हजार करोड़ के पत्थर अवैध रूप से खोदे और बेचे जाते हैं.
इनका कोई सरकारी रिकार्ड नहीं होता. लेकिन हाइवे के किनारे या फिर जंगलों में खुदाई करते देखा जा सकता है. राज्य बनने के बाद से 14 साल में जो 93 हजार करोड़ का पत्थर बेचा गया है, उससे सरकार को सिर्फ 515 करोड़ का ही राजस्व मिला है. अवैध माइंस के कारण झारखंड सरकार को अभी की खुदाई के अनुसार, हर माह 30 करोड़ (वार्षिक 360 करोड़) के राजस्व का अलग से नुकसान हो रहा है.
सरकार ने पिछले वर्ष जो राजस्व वसूला है, उसके मुताबिक लगभग तीन हजार करोड़ का सालाना कारोबार है. पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार ने 81 करोड़ रुपये राजस्व की वसूली की. झारखंड बनने के तुरंत बाद यानी वर्ष 2001 में पत्थरों से केवल आठ करोड़ रुपये का ही राजस्व मिलता था. बाद में पत्थरों का कारोबार लगातार तेजी से बढ़ा. इसके साथ ही राजस्व भी बढ़ा है.
एक पत्थर व्यवसायी के अनुसार वर्ष 2001 में पत्थरों का कारोबार एक हजार करोड़ का था जो 14 साल में 20 गुना बढ़ कर 20 हजार करोड़ से अधिक का हो गया है. जो वैध माइंस है भी, उनसे भी सही राजस्व नहीं मिल पाता. दस ट्रक पत्थर निकालने के बाद दो-तीन ट्रक ही दिखाया जाता है.
पांच हजार से अधिक अवैध माइंस : सूचना के अनुसार, राज्य के अलग-अलग जिलों में पांच हजार से अधिक अवैध स्टोन माइंस व क्रशर चल रहे हैं. इनका भी कारोबार करोड़ों में है. इन अवैध माइंस से सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है. यही नहीं, राज्य के पत्थर वैध व अवैध तरीके से पटना, नालंदा, भागलपुर, दरभंगा, कोलकाता, वर्दवान और बांग्लादेश तक जाते हैं. जानकार बताते हैं कि पाकुड़ और साहेबगंज के पत्थर बांग्लादेश में भी तस्करी कर भेजे जाते हैं. इसके अलावा सरकारी कार्यो में भी कई बार बिना चालान के ही पत्थरों की ढुलाई की जाती है.
कैसे होती है कमाई : स्टोन व्यवसायियों के सूत्रों ने बताया कि झारखंड में लगभग 20 हजार स्टोन माइंस व क्रशर हैं. एक माइंस का कारोबार कम से कम एक करोड़ रुपये सालाना (औसतन) का होता है. यानी राज्य में पत्थर का कारोबार 20 हजार करोड़ से भी अधिक का है. साथ ही करीब पांच हजार ऐसी माइंस हैं, जो अवैध तरीके से प्रत्येक जिले में चोरी-छिपे चलायी जाती हैं.
इनका भी कारोबार करोड़ों में है, जो अवैध तरीके से माइनिंग करते हैं और सरकार को राजस्व की चपत भी लगाते हैं. बताया गया कि पांच एकड़ तक की एक माइंस से प्रतिदिन 10 ट्रक स्टोन चिप्स निकाले जाते हैं. एक ट्रक से सरकार को करीब 378 रुपये रॉयल्टी मिलती है. एक ट्रक में 200 सीएफटी तक स्टोन चिप्स ढोये जाते हैं. पर ज्यादातर माइंस संचालक फाइलों में एक से दो ट्रक चिप्स ही दिखाते हैं.
जिसके चलते राजस्व की उगाही ज्यादा नहीं हो पाती. एक ट्रक स्टोन चिप्स की कीमत बाजार में छह से सात हजार रुपये तक है, जिसमें स्टोन माइंस मालिक को 1500 रुपये से दो हजार रुपये तक की शुद्ध कमाई होती है. यानी प्रतिदिन एक माइंस संचालक 20 हजार रुपये तक की कमाई करता है. यानी महीने में पांच से छह लाख और साल में तो उसकी आय 70 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक की है. इसके अलावा वर्क्‍स डिवीजन द्वारा भी अक्सर बिना चालान के ही पत्थर ढोये जाते हैं. पकड़े जाने पर इसके एवज में दोगुना रॉयल्टी वसूली जाती है.
राज्य में करीब पांच हजार से अधिक अवैध माइंस से प्रतिदिन 50 हजार ट्रक स्टोन चिप्स निकलते हैं. इनसे सरकार को रॉयल्टी नहीं मिलती. इस तरह सरकार को प्रतिमाह लगभग 30 करोड़ रुपये राजस्व की क्षति होती है.
रांची में हुई थी छापामारी
हाल ही में रांची में छापामारी कर 40 अवैध माइंस को बंद कराया गया था. ऐसी माइंस की भी आय करोड़ों में थी, जिसका आंकड़ा विभाग के पास भी नहीं है. कुछ माह पहले हजारीबाग में छापामारी कर अवैध तरीके बैठाये गये क्रशर को बंद कराया गया था.
रामगढ़ में 1955 करोड़ के उत्खनन का राजस्व नहीं मिला
महालेखाकार की वित्तीय वर्ष 2010-11 की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि केवल रामगढ़ जिले में ही स्टोन चिप्स के कारोबार से सरकार को 1955 करोड़ रुपये की हुई खुदाई का राजस्व नहीं मिला. रिपोर्ट में लिखा गया था कि रामगढ़ में बिना किसी वैधानिक लीज या परमिट के ही 8.49 करोड़ मीट्रिक टन चिप्स का उत्खनन किया गया. इसकी कीमत उस समय 1955 करोड़ रुपये थी.
क्या है स्टोन माइंस लेने की प्रक्रिया
खान विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, झारखंड गठन के समय या उससे पूर्व पत्थर का कारोबार बेतरतीब ढंग से होता रहा है. आज भी लगभग यही नियम है. कोई भी व्यक्ति आवेदन देकर पत्थर की माइंस आवंटित करा सकता है.
सबसे पहले जहां पत्थर के पहाड़ हैं, उसे कोई भी व्यक्ति चिह्न्ति कर सकता है. यदि गैर मजरूआ है, तो सरकार को भूमि के लीज के लिए आवेदन देना होगा. यदि रैयती है, तो उसे उक्त भूमि को खरीदना होगा. सबसे पहले आवेदन देना होता है कि संबंधित जगह से पत्थर निकालना चाहते हैं. उसमें लिखना होगा कि भूमि गैर मजरूआ है या रैयती. पांच हजार का आवेदन शुल्क जमा करना होता है.
साथ ही सेल्फ एफिडेविट देना होता है कि वह भारत का निवासी है. आवेदन के साथ ही ग्राम सभा की अनुमति पत्र, पैन कार्ड और स्थायी पता का प्रमाण पत्र देना होता है. जिस स्थान का पट्टा लेना है, उस स्थान का विलेज मैप भी देना होता है. आवेदन मिल जाने के बाद जिला खनन पदाधिकारी आवेदन को अंचलाधिकारी (सीओ) के पास भेज कर एनओसी लेता है. इसके बाद संबंधित जिले के वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) से एनओसी ली जाती है. एनओसी मिलते ही लीज दे दी जाती थी. इसके बाद समय-समय पर संबंधित पत्थर खदान की जांच कर पता किया जाता है कि कितनी गाड़ी पत्थरों की ढुलाई हो रही है.
इसके अनुरूप राजस्व की वसूली होती है. बताया गया कि मई 2014 तक इसी प्रक्रिया से पत्थर खदान मिलते थे. फिर एनजीटी के निर्देश के बाद पत्थर खदानों को भी पर्यावरण की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गयी है. खान विभाग द्वारा 30.5.2014 को सरकुलर जारी कर माइनिंग प्लान और पर्यावरण स्वीकृति के कागजात भी अनिवार्य कर दिये गये हैं. यानी अब सारे पत्थर के खदानों से माइनिंग प्लान लिये जा रहे हैं. पत्थर खदानों से पर्यावरण स्वीकृति की मांग भी की जा रही है.
सरकार के राजस्व के अनुसार होता है
कुल राजस्व (2014-15) : 81 करोड़
रॉयल्टी दर : 378 रुपये प्रति 200 सीएफटी या एक ट्रक (आठ टन)
कुल ट्रक (200 सीएफटी वजन) : 2142857 प्रति वर्ष
कुल पत्थर निकाला गया : 428571400 सीएफटी
प्रति दिन ट्रक : 5952
कुल सालाना कारोबार : 1412.20 करोड़ रुपये (प्रति ट्रक 6500 रुपये की दर से)
कुल कार्य विभाग से मिला राजस्व
यह वह राजस्व है, जो कार्य विभाग ने चालान नहीं होने की स्थिति में खान विभाग को दोगुना रॉयल्टी के साथ भुगतान किया है. यह आंकड़ा खान विभाग के पास उपलब्ध है. इसका राजस्व प्रति ट्रक 756 रुपये की दर से वसूला गया है.
कुल राजस्व : 175.00 करोड़
कुल इस्तेमाल ट्रक : 2287581 प्रति वर्ष
कुल पत्थर निकाले गये : 457516339 सीएफटी
प्रति दिन ट्रक : 6354
एक दिन का कारोबार : 41.30 करोड़ (6500 रुपये प्रति ट्रक के हिसाब से)
कुल सालाना कारोबार : 1507.57 करोड़ (41.30 गुना 365)
कैसे हुआ 20 हजार करोड़ का कारोबार (पत्थर व्यवसायी के अनुसार)
राज्य में कुल स्टोन माइंस व क्रशर की संख्या 20 हजार
एक स्टोन माइंस/क्रशर का न्यूनतम सालाना कारोबार 70 लाख से एक करोड़ (अनुमानित)
20 हजार माइंस व क्रशर हैं तो कारोबार हुआ 20 हजार करोड़ सालाना (अनुमानित)
सरकार द्वारा वर्ष 2014-15 में वसूली गयी राजस्व 81 करोड़ (पत्थर खदानों से)
वर्क्‍स डिवीजन के वैसे कार्य जिनका चालान नहीं लिये 175 करोड़
जाने पर दोगुना फाइन लेकर वसूली गयी राजस्व
2014-15 में कुल कारोबार से सरकार को राजस्व 2999.17 करोड़
यानी लगभग 17 हजार करोड़ रुपये के पत्थर का अवैध कारोबार हो रहा है.
कैसे चलता है अवैध धंधा
– पत्थरों का अवैध कारोबार जिला प्रशासन और खान विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से होता है
– जानबूझ कर उत्खनन कम दिखा कर राजस्व कम दिया जाता है
– बिना पर्यावरण स्वीकृति या वैध लाइसेंस के भी मिलीभगत कर क्रशर या स्टोन माइंस चलायी जाती हैं
प्रत्येक जिले में अवैध खनन रोकने के लिए उपायुक्त की अध्यक्षता में टास्क फोर्स बनी हुई है. पर जब यह टास्क फोर्स सक्रिय होती है, तो स्टोन व्यवसायी कारोबार को धीमा कर देते हैं. इनकी ओर से सुस्ती बरतने पर कारोबार तेज हो जाता है
गणना विधि
वार्षिक राजस्व/रॉयल्टी प्रति ट्रक = प्रति वर्ष ट्रकों की संख्या
प्रति वर्ष ट्रकों की संख्या/12 = प्रति माह ट्रकों की संख्या
प्रति माह ट्रकों की संख्या/30= प्रति दिन ट्रकों की संख्या

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