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घातक है नेताओं का चारित्रिक पतन

रांचीः पिठौरिया के इल्ताफ हुसैन उन चंद जीवित लोगों में हैं, जिन्होंने 1940 के रामगढ़ कांग्रेस में भाग लिया था. अपनी उम्र सौ साल बतानेवाले इल्ताफ हुसैन सरकारी शिक्षक हुआ करते थे. कहते हैं कि अब देशभक्ति कहां रही. देशभक्ति तो रामगढ़ अधिवेशन (1940) में दिखी थी, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू भाषण दे रहे […]

रांचीः पिठौरिया के इल्ताफ हुसैन उन चंद जीवित लोगों में हैं, जिन्होंने 1940 के रामगढ़ कांग्रेस में भाग लिया था. अपनी उम्र सौ साल बतानेवाले इल्ताफ हुसैन सरकारी शिक्षक हुआ करते थे. कहते हैं कि अब देशभक्ति कहां रही. देशभक्ति तो रामगढ़ अधिवेशन (1940) में दिखी थी, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू भाषण दे रहे थे. बारिश होने लगी. बारिश से बचने के लिए जब लोग भागने लगे, तो पंडितजी ने कहा-बारिश से भागिएगा तो कैसे आजादी के लिए लड़ेंगे? इसके बाद लोगों ने भारी बारिश में उनके भाषण को सुना.

वे कहते हैं-देश तो आजाद हो गया, पर लोग आजादी के सही अर्थ को समझ नहीं सके .यह कैसी आजादी है,जहां लोग किसी की बात को नहीं सुनते हैं. नेता देश को लूटने में लगे हैं. जिसे जहां मौका मिल रहा है, लूटने से पीछे नहीं रहता. नेताओं का चारित्रिक पतन देश के लिए घातक है. अब नेता कहां रह गये हैं, वे तो ठेेकेदार बन कर देश को लूट रहे हैं. देश को जाति-धर्म में बांट दिया है. इससे देशप्रेम गौण हो गया है. एक समय था, जब नेता को लोग आदर्श मानते थे. उनकी बात को सुनते थे. उनमें गुणों की भरमार थी. आज के नेताओं में गुण कम और अवगुण ज्यादा हैं.

युवा वर्ग को देश की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए. सच को सच कहने का साहस अब शायद ही किसी में बचा है. जो यह करता है, सच्चा देशभक्त तो वही है. श्री हुसैन को तकलीफ तब और ज्यादा होती है, जब कोई सच्चा देशभक्त का मजाक उड़ाता है. यही कारण है कि सच्चे देशभक्त पीछे छूटते जा रहे हैं. वे बताते हैं कि आज की पीढ़ी आजादी को समझ ही नहीं सकी है. इसने संघर्ष नहीं किया, कुछ देखा/सहा नहीं, इसलिए आजादी की कीमत को नहीं समझती.

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