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बंद इइएफ से 30 मशीनें गायब

आदेश : 34 माह बाद ताला खुलने पर कई सामान गायब देख सन्न रह गये लोग रांची : बिजली बिल बकाया मामले में निलामवाद को लेकर चार मई 2012 से बंद इइएफ, टाटीसिलवे का ताला शनिवार को खोला गया. करीब 34 माह तक सीलबंद रहे कारखाने में अब कुछ नहीं बचा है. इस दौरान कारखाने […]

आदेश : 34 माह बाद ताला खुलने पर कई सामान गायब देख सन्न रह गये लोग
रांची : बिजली बिल बकाया मामले में निलामवाद को लेकर चार मई 2012 से बंद इइएफ, टाटीसिलवे का ताला शनिवार को खोला गया. करीब 34 माह तक सीलबंद रहे कारखाने में अब कुछ नहीं बचा है.
इस दौरान कारखाने में हो रही चोरी की खबरें प्रभात खबर में लगातार छपती रही हैं. ताला खुलने पर जब प्रभारी महाप्रबंधक जयकांत साह, यूनियन के लोग व कर्मचारी अंदर गये, तो सन्न रह गये. कारखाने के फर्श पर लगी करीब 30 मशीनें गायब थीं. ट्रांसफॉरमर के टेस्टिंग सेक्शन व दो स्टोर, सहित पूरे प्लांट में कुछ नहीं बचा था. सिर्फ मशीनों के हेवी पार्ट्स, क्रेन ही वहां मौजूद हैं. छत पर एल्यूमिनियम फ्रेम में लगा शीशा तोड़ कर फ्रेम गायब कर दिया गया है.
गौरतलब है कि झारखंड उच्च न्यायालय ने कारखाना प्रबंधक द्वारा दायर याचिका (6507/10) पर 12 नवंबर 2014 को आदेश पारित किया था. इसमें इइएफ, टाटीसिलवे तथा हाइटेंशन इंसुलेटर कारखाना, सामलौंग को उनकी इनवेंट्री (सामानों की सूची) बना कर सील मुक्त करने का आदेश था. इसी आलोक में उपायुक्त सह दंडाधिकारी रांची ने दंडाधिकारी नियुक्त कर हाइटेंशन को 26 फरवरी तथा इइएफ को सात मार्च को खोलने का आदेश दिया था. हाइटेंशन तय तिथि को खुल चुका है.
इधर, शनिवार को नामकुम सीओ कुमुदनी टुडू ने बतौर दंडाधिकारी कारखाने का ताला खुलवाया. बिजली बोर्ड के अभियंता व टाटीसिलवे पुलिस भी उनके साथ थी. कारखाने को सुबह 10 बजे खोला जाना था, लेकिन सीओ करीब 12.30 बजे टाटीसिलवे पहुंचीं. इसके बाद पहले बाहर से कारखाने की चहारदीवारी का निरीक्षण हुआ व फोटोग्राफी हुई. फिर पहले मुख्य द्वार व प्लांट का ताला खोला गया. इसके बाद कारखाने के अंदर की फोटोग्राफी की गयी. समय नहीं रहने से यह तय हुआ कि कारखाने की इनवेंट्री अगले दो-तीन दिनों में तैयार होगी. इसके बाद बिजली बोर्ड इइएफ प्रबंधक को कारखाना हैंड ओवर करेगा.
थाना प्रभारी ने लिखा पत्र
इइएफ की स्थिति देखते हुए टाटीसिलवे थाना प्रभारी ने वरीय पुलिस अधिकारियों को पहले ही पत्र लिखा है. उन्होंने लिखा है कि मई 2012 को इइएफ को सीलबंद करते वक्त इसकी इनवेंट्री नहीं बनी थी. वहीं बाद में भी इसका प्रयास नहीं किया जाना शक पैदा करता है. अपनी बात पुख्ता करने के लिए उन्होंने प्रभात खबर में छपी दो खबरों की छाया प्रति भी अपने पत्र में संलगA की है. इनमें इइएफ : 30 लाख की गड़बड़ी तथा 14 ट्रांसफॉरमर नौ हजार में बेच दिये जैसी खबरों का जिक्र है.
तकनीकी भूल
मई 2012 में इइएफ को सीलबंद करते वक्त बिजली बोर्ड ने कारखाने में रखे सामानों की सूची (इनवेंट्री) नहीं बनायी थी. इधर कारखाना प्रबंधक का कहना है कि बोर्ड ने एक तरह से कारखाना कर्मियों को जबरन बाहर कर आनन-फानन में तालाबंदी की थी, इसलिए इनवेंट्री नहीं बन सकी. अब सवाल उठ रहा है कि बगैर इनवेंट्री के गायब सामानों का हिसाब कैसे होगा?

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